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Parasram Arora
मन की गहराई की थाह पाना उतना ही कठिन है जितना समुन्दर से मोती निकाल लेना सरल है दर्द के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुए जीवन बीत रहा है लेकिन ये कवायद आदमी क़ो माजने के लिये कितनी अनुकूल है कभी कभी अनकही विवशताये अंतरतम क़ो छलनी कर देती है फिर भी आदमी सह लेता है क्योंकि उसका धरातल ही उसका सम्बल है जीबन की दुविधाओं क़ो शतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन धंसा कर झुठलाया नही जा सकता कभी कभी दर्द भी दवा बन कर रुग्ण काया क़ो निर्मल कर देता है ©Parasram Arora दर्द की परिक्रमा
Parasram Arora
निमंत्रण और आग्रह भरी उन नज़रो की उपेक्षा करना मेरे बस मे नही था और आज इसीलिए जिंदगी मे मस्ती और मदहोशी का आलम है भरोसे और प्रेम का गुदगुदाता हुआ वो प्रीत का मंत्र जीवन मे सुरम्य छंदो की बोँछार कर गया है तभी ये जिंदगी काव्य की परिक्रमा करते करते कविता बनने लगी है ©Parasram Arora काव्य की परिक्रमा
Sanu Chauhan Spn
गम को Delete करो खुशी को Save करो दोस्ती को Download करो प्यार को Incoming करो नफरत को OutGoing करो हंसी को Hold करो और अपनी मुस्कान को Send करो ❤️❤️ सानू सिंह चौहान❤️❤️ WhatsApp - 9454500732 गम को Delete करो खुशी को save करो दोस्ती को Download करो.......
Ajay Daanav
हृदय से उपजे विचार हो तुम शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम करती हुई झंकृत मन-वीणा सातों सुरों की झनकार हो तुम हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी कविता का मेरी सार हो तुम हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
Akash Chaudhary
प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते जो कभी वृक्ष के वक्ष से कलाएं करते थे, कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर गुजरी, मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया उनके पैरों के निशान, क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको परिभाषित करो, क्या नहीं बताना चाहते मुझे अपने प्रेम के विषय में, तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं, तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद आयी होगी, चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं जब चाहना तब दास्तां सुनाना......, तुम्हारा मौन समझता हूं मैं, तुम बता रहे हो शायद मुझे प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता वो होता है बस ,बस होता है।। ©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️
Gurpreet Singh प्रीत कि कलम
तैहरती थी मेरी कश्ती समुद्र के उस मुकाम पर जहा मंजिल मिलने वाली थी मेरी मेहनत के दाम पर दुश्मन ने पलटी है कश्ती समुद्र कि लहरो के मुकाम पर ऐ दुश्मन आने वाला हु मै लहरो के साथ मे तुझे और तेरी बस्ती ले जाऊगा साथ मे,, ©Gurpreet Singh प्रीत कि कलम किसी को नाकाम मत करो खुद को कामयाब करो,,