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रवि गुप्ता(RT)..i Like you RT

पंडितों की पंडिताई और मुल्लों की खुदाई ना जाने क्यों डाले हैं यह इंसानियत के नाम पर लड़ाई

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पंडितों की पंडिताई और मुल्लों की खुदाई ना जाने क्यों डाले हैं यह इंसानियत के नाम पर लड़ाई

i am Voiceofdehati

#पापा_की_परियों ध्यान दें #मुल्लों को #हिन्दू लड़कियां केवल #लव_जिहाद के लिए चाहिए होती हैं,, वरना वे तो #घर अपनी #बहनों के साथ भी बसा लेते #हिन्दुत्व #voice_of_village

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पापा की परियों ध्यान दें
मुल्लों को हिन्दू लड़कियां केवल लव जिहाद के लिए चाहिए होती हैं,,
वरना वे तो घर अपनी बहनों के साथ भी बसा लेते हैं। #पापा_की_परियों ध्यान दें
#मुल्लों को #हिन्दू लड़कियां केवल #लव_जिहाद के लिए चाहिए होती हैं,,
वरना वे तो #घर अपनी #बहनों के साथ भी बसा लेते

Thakur Sudhir//

मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं क्या लड़की हूँ, बस इसी लि #Quote #nojotophoto #JusticeForPriyankaReddy😢

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 मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी
मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं
क्या लड़की हूँ,
बस इसी लि

रजनीश "स्वच्छंद"

ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ। मेरा अप #Poetry #kavita #hindipoetry

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ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।।

एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।
दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ।

मेरा अपना कौन यहां बस अपनेपन का ढोंग रचा,
सायों संग जीता रहता हूँ, ऐसा एक संयोग सजा।
किससे कहना क्या क्या कहना शब्द नहीं बातों में,
मुख खोले तो कुछ भी बोले ज़हर घुली ज़ज़्बातों में।
एक परिंदा बनना चाहा, पर कतरा फिर बैठा हूँ,
कल तक था जो सूत्र एक, बन रस्सी मैं ऐंठा हूँ।

है पग पग मेरी अग्नि-परीक्षा, फ़ील वक़्त का सीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

किससे सीखूं, क्या मैं सीखूं, दूध धुला है कौन यहां,
रोज द्रौपदी हर ली जाती, पड़ी सभा है मौन यहां।
सच तो नहीं, ख़्वाबों में ही, चना भाड़ तो फोड़ेगा,
हाथों से नहीं, पर अश्कों से, ये कलंक तो धोएगा।
देख दशा इस कुनबे की, आंखे भर नहीं आतीं हैं।
शुष्क पड़े इस शरीर मे, आत्मा मर नही जाती है।

ज़ख्म पड़े हैं गहरे, अश्कों के रेशे बुन उन्हें सीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

इस ईमान का क्या करना जो बाज़ारों में बिकता है,
हाथ उठा जो प्रण लिया था, कहाँ कभी वो टिकता है।
मज़हब का भी हाल है देखा, पेट कहाँ भर पाता है,
ज्ञान यहां दरबारी बैठा, पंडित मुल्लों से डर जाता है।
शब्द बचे हैं जरा नहीं, काश हकीकत ख़्वाब ही होता,
धर्म के जो आड़ में बैठा, काश नशीहत शाप ही होता।

किस मुख बोलो कह दूं, मैं ही कुरान और गीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।।

एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।
दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ।

मेरा अप

हेमन्त जाट

देवियों और सज्जनों, कई घरों में अख़बार आते ही यह होड़ रहती है कि अख़बार सबसे पहले कौन पढ़ेगा? कुछ अख़बार प्रेमी तो ऐसे होते हैं कि अख़बार उनके अला #YourQuoteAndMine #हिंदी_साहित्य #अभिषेक_चौहान

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मै अक्सर अख़बार लिये सोचता हूं,
कल ये भी रद्दी के भाव हो जाएगा। देवियों और सज्जनों, कई घरों में अख़बार आते ही यह होड़ रहती है कि अख़बार सबसे पहले कौन पढ़ेगा?
कुछ अख़बार प्रेमी तो ऐसे होते हैं कि अख़बार उनके अला

Drx. Mahesh Ruhil

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