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SANDIP GARKAR

पाठ 1 इयत्ता चौथी

पाठ 1 इयत्ता चौथी

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SANDIP GARKAR

इयत्ता चौथी परिसर अभ्यास 2 शिवजन्मपूर्वीचा महाराष्ट्र

इयत्ता चौथी परिसर अभ्यास 2 शिवजन्मपूर्वीचा महाराष्ट्र #Talk

63 Views

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Abhishek Jain

 स्वाध्याय

स्वाध्याय #nojotophoto

5 Love

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रिया रूपेश पवार महाळुंगेकर

 तुझी साठवण

तुझी साठवण #nojotophoto

3 Love

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YumRaaj ( MB जटाधारी )

**यदि कश्चित् कथमपि अन्यस्य विषये अत्यन्तं उत्साहितः, प्रसन्नः, क्रुद्धः, दुःखितः वा भवति ।  अतः तस्य वा केनचित् कारणेन तस्मिन् व्यक्तिना क्रुद्धः, यदि च सुखी तदा केनचित् प्रकारेण वा, तदेव तस्य सुखस्य कारणं, यदि सः भावविक्षिप्तः अस्ति तर्हि सः अपि क्रुद्धः भवति, यदि च सः is sad then it is due to कारणं तस्य व्यक्तिस्य प्रति अत्यन्तं आसक्तिः।  तथा च आसक्तिः आसक्तिः वा कस्यचित् व्यक्तिस्य दुःखस्य मूलकारणं भवति!**

©YumRaaj YumPuri Wala
  #Dhund #स्वाध्याय
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Nitin Tongare

..साठवन..


खुप काही तुझ्यासाठी हृदयात साठवून ठेवल होत
खुप काही तुझ्यासाठी जपून ठेवल होत.😊
आयुष्याचे अनेक क्षण तुझ्या आठवणीने सजवले होते ..
पण हृदयाला तर कधी संधी सुद्धा नाही मिळाली 
साठवलेल बाहेर काढायला 
नाही जमलं ते सजवलेले क्षण पुन्हाआठवनीने  सजवायला 
नाही जमलं तुझ्यासोबत आयुष्याला मुक्त रंगानी रंगवायला .......

                                  Nitin Tongare 🍁🍁 साठवन ...

साठवन ... #poem

2 Love

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Jotiram Sapkal

🪣 पाण्याची टाकी साफ करणारा बिजनेस ग्रो करण्याची युनिक टेक्निक
#jotiramsapkal #mahagrowth
#marathibusinessowner
#digitalstrategy
#supportsmal

🪣 पाण्याची टाकी साफ करणारा बिजनेस ग्रो करण्याची युनिक टेक्निक #jotiramsapkal #mahagrowth #marathibusinessowner #digitalstrategy supportsmal #शिक्षण #OnlineBusiness #supportsmallbusiness #smallbusinessowner #localbusiness

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Sachin Zanje

तुमच्या पाहण्यावरून 
नाही तर
तुमच्या घेण्यावरून 
तुमची विध्वता समजते.
                सचिन.. पाहण्याची दृष्टि

पाहण्याची दृष्टि

5 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

7 Love

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HP

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

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HP

जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

छान्दोग्योपनिषद के सातवें अध्याय के 26वें खण्ड में बताया गया है
‘आत्मा से प्राण, आत्मा से आशा, आत्मा से स्मृति, आत्मा से आकाश, आत्मा से तेज, आत्मा से जल, आत्मा से आविर्भाव और तिरोभाव, आत्मा से अन्न, आत्मा से बल, आत्मा से विज्ञान, आत्मा से ध्यान, आत्मा से चित्त; आत्मा से संकल्प, आत्मा से मन, आत्मा से वाक्, आत्मा से नाम, आत्मा से मन्त्र, आत्मा से कर्म और यह सम्पूर्ण चेतन जगत ही आत्मा से आच्छादित है। इस आत्म-तत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले मनुष्य जीवन-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।’ आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

6 Love

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HP

कुछ दिन पूर्व इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में काफी लम्बी चर्चा चली थी और आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी उनके मत लिए गए थे जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दो ग्रेट डिजाइन’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक में उपसंहार करते हुए लिखा गया है—

‘यह संसार कोई आकस्मिक घटना नहीं लगता है। इसके पीछे कोई सुनियोजित विधान चल रहा है। एक मस्तिष्क, एक चेतन-शक्ति काम कर रही है। अपनी-अपनी भाषा में उसका नाम चाहे कुछ रख लिया जाय पर वह मनुष्य की आत्मा ही है।’

इसके अतिरिक्त जे. एन. थामसन, जे. बी. एम. हेल्डन, पी. गोइडेस, आर्थर एच. काम्पटन, सर जेम्स जोन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व में सहमति प्रकट की है। उसके प्रत्यक्ष ज्ञान के साधनों का पाश्चात्य देशों में भले ही अभाव हो, पर विचार और बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह अनुभव करना कठिन नहीं है कि यह जगत केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं वरन् उन्हें नियन्त्रित करने वाली कोई चेतना भी अवश्य काम कर रही है और उसे जानना मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

शास्त्रीय कथानकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, गुणों और क्रियाओं के सम्बन्ध में बड़ी ही ज्ञानपूर्ण चर्चायें की गई हैं। ऐसे कथानकों में नारद, ध्रुव आदि के वार्तालाप के साथ राजा चित्रकेतु की कथा भी बड़ी शिक्षाप्रद और वास्तविक तथ्यों से ओत प्रोत है।

चित्रकेतु एक राजा था जिसे महर्षि अंगिरा की कृपा से एक सन्तान प्राप्त हुई थी। बच्चा अभी किशोर ही था कि उसकी मृत्यु हो गई। राजा पुत्र-वियोग से बड़ा व्याकुल हुआ। अन्त में ऋषिदेव उपस्थित हुए और उन्होंने दिवंगत आत्मा को बुलाकर शोकातुर राजा से वार्तालाप कराया। पिता ने पुत्र से लौटने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया, ‘ए जीव! मैं न तेरा पुत्र हूँ और न तू मेरा पिता है। हम सब जीव कर्मानुसार भ्रमण कर रहे हैं। तू अपनी आत्मा को पहचान। हे राजन् ! इसी से तू साँसारिक संतापों से छुटकारा पा सकता है।’ अपने पुत्र के इस उपदेश से राजा आश्वस्त हुआ और शेष जीवन उसने आत्म-कल्याण की साधना में लगाया। राजा चित्रकेतु अन्त में आत्म-ज्ञान प्राप्त कर जीवन-मुक्त हो गया।

यह आत्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य जीवन में आती है। ऐसा संयोग उसे सदैव नहीं मिलता। शास्त्रीय अथवा विचार की भाषा में इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि जीवों की अपेक्षा मनुष्य को जो श्रेष्ठताएँ उपलब्ध है वे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही हैं जो आत्मज्ञान या अपने आपको जानना ही हो सकता है, आत्मज्ञान ही मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है जिससे वह जीवभाव से मुक्त होकर ईश्वरीय भाव में लीन हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

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sandy

 #सवय होती मला ,
#तुला ह्रदयात जपण्याची 
#सवय होती मला ,
#तुझे अबोल शब्द वेचण्याची ,
#सवय होती मला
#तुझ्यासोबत रोज नवं स्वपनं सजवण्याचि ,
#सव

#सवय होती मला , #तुला ह्रदयात जपण्याची #सवय होती मला , #तुझे अबोल शब्द वेचण्याची , #सवय होती मला #तुझ्यासोबत रोज नवं स्वपनं सजवण्याचि , सव #poem #nojotophoto

8 Love

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अमित शर्मा

कॉलेज_की_यादें..चौथी किश्त

कॉलेज_की_यादें..चौथी किश्त

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Aarya Rathod

रस्ता फक्त एकच असतो
      पन मार्ग 
   वेग वेगळे असतात ,
  फरक फक्त  एवढाच असतो
   कोंन्ही हसत हसत जातात
      तर कोंन्ही रडत रडत...
  
   _ अरविंद राठोड जीव म्हणजे, पाण्याचा बुडबूड़ा...?

जीव म्हणजे, पाण्याचा बुडबूड़ा...?

22 Love

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Shravan Goud

नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है। नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है।

नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है।

0 Love

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hariom trivedi

 "मधुशाला"की चौथी रचना

"मधुशाला"की चौथी रचना #nojotophoto

10 Love

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Ek villain

कोविड-19 री लहर की तेजी से कम होने के साथ-साथ चौथी लहर के कयास भी लगाए जाने लग रहे हैं लेकिन बड़े भगवान व टीकाकरण और तीसरी लहर के दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में कम प्रभाव के कारण स्वास्थ्य मंत्रालय इसको लेकर आना निश्चित नजर आ रहे हैं मंत्रालय के लिए शीर्ष अधिकारी ने इस सवाल संबंध में पूछा गया तो उनकी चुटकी लेते हुए कहा कि यदि सरकार चार विशेषज्ञ को टीवी चैनलों पर खुलेआम बोलने की अनुमति दे दी थी यार तत्काल आ जाएगी दरअसल उनका इन विशेषज्ञों की ओर से हर दिन दिए जाने वाले अलग-अलग बयानों की ओर जिसने दूसरी लहर के दौरान लोगों को आश्वस्त करने के लिए बजाए अफरा-तफरी का माहौल बनाने में योगदान दिया इसके सबक लेते ही फिशरीज लहर के दौरान में हिंद विशेषज्ञों के बयानबाजी करने पर टीवी पर बहस में जाने के रोक दिया गया वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि इसकी वजह से तीसरे लहर के दौरान देश में कहीं भी अफरा-तफरी का माहौल देखने को नहीं मिला उनका आशीष साहब द कि चैनलों की टीआरपी की आधी दौड़ में सरकार एवं देने वालों को काबू में रखने की महत्वपूर्ण योजना उठा रही है

©Ek villain #चौथी लहर कब

#Nofear

#चौथी लहर कब #Nofear #Society

9 Love

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कवी - के. गणेश

निर्मळ मनाची प्रेमळ भावना
नात्यासाठी गुंफण असते..
अन् जगाच्या बाजारात,
संसाराचे कुंपण असते..! नात्याची गुंफण

नात्याची गुंफण

19 Love

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Chaitali Bhosale

उमेद जगण्याची.....

अधुरी स्वप्न उराशी बाळगून मी
आज पुन्हा चालते नविन्याकडे
साथ नसेल या जगाची पण
उमेद अजून ही कायम आहे......

.                 चैताली भोसले.... 💞💞

शुभ सकाळ .... 💖💖💖

©Chaitali Bhosale
  उमेद जगण्याची.....

उमेद जगण्याची..... #मराठीशायरी

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digital creator

ब्रह्मचारणी की शक्ति, आत्मा का अनमोल रत्न,
इंद्रियों का संयम, और आत्मा का निरंतर उत्थान।
स्वयं को समर्पित करें, ब्रह्मचारणी के रूप में,
ऊंचाइयों को छूने की दिशा, और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करें।

©digital creator
  #navratri #ब्रह्मचारणी
#आत्मसंयम
#ब्रह्मचरण
#सन्यास
#आत्मा
#ब्रह्मचर्यशक्ति
#ब्रह्मचारणीशक्ति
#स्वाध्याय
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R} Pandhare

मेरी चौथी कविता 
} हातोकि लकिरे {

मेरी चौथी कविता } हातोकि लकिरे { #nojotovideo

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