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Deepak Kurai

#BuddhaPurnima2021 गौतम बुद्ध की जीवनी #जीवन #विचार

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गौतम बुद्ध 

यह एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।

 इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय
 क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। 
 उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका
 इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन
 महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 
29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम
 नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर
 संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य
 दिव्य
 ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की
 ओर चले गए । 
 वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि
 वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से
 भगवान बुद्ध बन गए।

कई ग्रंथों में यह मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है.

©Deepak Kurai #BuddhaPurnima2021 

गौतम बुद्ध की जीवनी
#जीवन

Rakesh Kumar Dogra

दुनिया का सबसे मुश्किल काम है हाथ से पंखा झलना, मेरा बचपन और मां का आंचल से वो पंखा झलना।

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मेरे ख्याल़ो ख्वाबों का Helicopter रात crash हो गया,

मेरे सिरहाने के ऊपर लगा पंखा कल कोई उतार ले गया।

 #NojotoQuote दुनिया का सबसे मुश्किल काम है हाथ से पंखा झलना,
मेरा बचपन और मां का आंचल से वो पंखा झलना।

शिव झा

17 जुलाई/जन्म दिवस  
*भारतीयता के सेतुबंध बालेश्वर अग्रवाल*

भारतीय पत्र जगत में नये युग के प्रवर्तक श्री बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) में जेल अधीक्षक श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल एवं श्रीमती प्रभादेवी के घर में हुआ था।  

बिहार में हजारीबाग से इंटर उत्तीर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (इंजिनियरिंग) की उपाधि ली तथा डालमिया नगर की रोहतास  इंडस्ट्री में काम करने लगे। यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का व्रत अपना चुके थे।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र’ के सम्पादन का काम दिया गया।

बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही उससे जुड़ गये।

इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके। 

उन दिनों सभी पत्रों के कार्यालयों में अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे। बालेश्वर जी के प्रयास से नागरी लिपि के दूरमुद्रक का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन संचार मंत्री श्री जगजीवन राम ने दिल्ली में तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया। भारतीय समाचार जगत में यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। 

आपातकाल में इंदिरा गांधी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ पर ताले डलवा दिये; पर बालेश्वर जी शान्त नहीं बैठे। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास आदि के माध्यम से वे विदेशस्थ भारतीयों से सम्पर्क में लग गये। कालान्तर में बालेश्वर जी तथा ये सभी संस्थाएं प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच एक मजबूत सेतु बन गयी।

वर्ष 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का तथा 2000 में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ किया। प्रतिवर्ष नौ जनवरी को मनाये जाने वाले ‘प्रवासी दिवस’ की कल्पना भी उनकी ही ही थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन’ बनवाया। वे विदेशस्थ भारतवंशियों के संगठन और कल्याण में सक्रिय लोगों को सम्मानित भी करते थे। जिन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां उन्हें भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान मिलता था। कई राज्याध्यक्ष उन्हें अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। 

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रतिरूप बालेश्वर जी का न निजी परिवार था और न घर। अनुशासन और समयपालन के प्रति वे सदा सजग रहते थे। देश और विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया था। जीवन का अधिकांश समय प्रवास में बिताने के बाद वृद्धावस्था में वे ‘प्रवासी भवन’ में ही रहते हुए विदेशस्थ भारतीयों के हितचिंतन में लगे रहे। 23 मई, 2013 को 92 वर्ष की आयु में भारतीयता के सेतुबंध का यह महत्वपूर्ण स्तम्भ टूट गया। 

(संदर्भ : हिन्दू चेतना 16.8.10/प्रलयंकर 24.5.13/पांचजन्य 2.6.13) #जीवन #जीवनी #साहित्य #भारतीय #इतिहास #राष्ट्रीय #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ 

#IndiaLoveNojoto

paras Dlonelystar

भीगा जाती है ये काली रातें
यादों की बौछारों से ,कभी
कभी, रुला देती है यूँ ही
जब भी लगे हो 'तुम' अजनबी
मैं बैठ के वक़्त की नब्ज़ पे
तक़दीर तेरी धड़कनें सुनता हूँ
कभी गुनगुनाता हूँ वो आखरी लम्हा
और कभी खयालों में,हर ख़याल बुनता हूँ  खयाल
#पारस #वक़्त #तक़दीर #खयाल

शिव झा

7 अगस्त/जन्म-दिवस
पुरातत्ववेत्ता  : डा. वासुदेवशरण अग्रवाल

ऐतिहासिक मान्यताओं को पुष्ट एवं प्रमाणित करने में पुरातत्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। सात अगस्त, 1904 को ग्राम खेड़ा (जिला हापुड़, उ.प्र) में जन्मे डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ऐसे ही एक मनीषी थे,जिन्होंने अपने शोध से भारतीय इतिहास की अनेक मान्यताओं को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।

वासुदेव शरण जी ने 1925 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कक्षा 12 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तथा राजकीय विद्यालय से संस्कृत की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा देखकर उनकी प्रथम श्रेणी की बी.ए की डिग्री पर मालवीय जी ने स्वयं हस्ताक्षर किये। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम.ए. तथा कानून की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इस काल में उन्हें प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा. राधाकुमुद मुखर्जी का अत्यन्त स्नेह मिला।

कुछ समय उन्होंने वकालत तथा घरेलू व्यापार भी किया; पर अन्ततः डा. मुखर्जी के आग्रह पर वे मथुरा संग्रहालय से जुड़ गये। वासुदेव जी ने रुचि लेकर उसे व्यवस्थित किया। इसके बाद उन्हें लखनऊ प्रान्तीय संग्रहालय भेजा गया, जो अपनी अव्यवस्था के कारण मुर्दा अजायबघर कहलाता था।

1941 में उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय ने पाणिनी पर शोध के लिए पी-एच.डी की उपाधि दी। 1946 में भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख डा0 मार्टिमर व्हीलर ने मध्य एशिया से प्राप्त सामग्री का संग्रहालय दिल्ली में बनाया और उसकी जिम्मेदारी डा0 वासुदेव शरण जी को दी। 1947 के बाद दिल्ली में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय स्थापित कर इसका काम भी उन्हें ही सौंपा गया। उन्होंने कुछ ही समय बाद दिल्ली में एक सफल प्रदर्शिनी का आयोजन किया। इससे उनकी प्रसिद्धि देश ही नहीं, तो विदेशों तक फैल गयी।

पर दिल्ली में डा. व्हीलर तथा उनके उत्तराधिकारी डा. चक्रवर्ती से उनके मतभेद हो गये और 1951 में वे राजकीय सेवा छोड़कर काशी विश्वविद्यालय के नवस्थापित पुरातत्व विभाग में आ गये। यहाँ उन्होंने‘कालिज ऑफ़ इंडोलोजी’ स्थापित किया। यहीं रहते हुए उन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में लगभग 50 ग्रन्थों की रचना की। 

इनमें भारतीय कला, हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, मेघदूत: एक सांस्कृतिक अध्ययन, कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन, जायसी पद्मावत संजीवनी व्याख्या, कीर्तिलता संजीवनी व्याख्या, गीता नवनीत,उपनिषद नवनीत तथा अंग्रेजी में शिव महादेव: दि ग्रेट ग१ड, स्टडीज इन इंडियन आर्ट.. आदि प्रमुख हैं।

डा. वासुदेवशरण अग्रवाल की मान्यता थी कि भारतीय संस्कृति ग्राम्य जीवन में रची-बसी लोक संस्कृति है। अतः उन्होंने जनपदीय संस्कृति, लोकभाषा, मुहावरे आदि पर शोध के लिए छात्रों को प्रेरित किया। इससे हजारों लोकोक्तियाँ तथा गाँवों में प्रचलित अर्थ गम्भीर वाक्यों का संरक्षण तथा पुनरुद्धार हुआ। उनके काशी आने से रायकृष्ण दास के ‘भारत कला भवन’ का भी विकास हुआ।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के वंशज डा. मोतीचन्द्र तथा डा. वासुदेव शरण के संयुक्त प्रयास से इतिहास, कला तथा संस्कृति सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए। उनकी प्रेरणा से ही डा. मोतीचन्द्र ने ‘काशी का इतिहास’जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा। वासुदेव जी मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद अध्ययन, अध्यापन, शोध और निर्देशन में लगे रहते थे। इसी रोग के कारण 27 जुलाई 1966 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अस्पताल में उनका निधन हुआ। #जीवनी #जन्मदिन #इतिहास #जीवनअनुभव #जीवन #भारतीय #History #BirthDay 

#InspireThroughWriting

Kavita jayesh Panot

खयाल

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कोई मुझे मेरे जज्बातों का हिसाब दें दे
बिन बरसात  पानी पानी हे मेरी ज़मीं
ईस छलकते सैलाब को कोई,
दरयाऐ समन्दर मे मिला दे।
मै मिटती जा रही हूं ,
रेत के ढेर पर बनी तस्वीरो की तरह,
इन तस्वीरों में छुपे भावो को कोई, शिल्पकार दे दे,
मुठ्ठी भरी जज्बातों की बन्द कर चल रही हूं,
रेगिस्ताने इश्क की ईस जमी में, 
हर पल तृष्णा बन पल रही हूं सह
अंजाम तो पता नही मुझे ईन राहो का,
बस वर्षों से में उससे , 
 अटूट महोबत कर रही हू,
शायद इसीलिए खाक हो जाने पर भी,
उम्मीदों की रोशनी बन चल रही हूं।। खयाल

Lukesh Sahu

#खयाल

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उसे बाते कुछ बनावटी और मजाकिया पसंद थे,
मेरे अल्फ़ाज़ थोड़े शांत,गुमसुम,थोड़े गहरे रह गए,

बताकर मेरे खयालों को अरसे पुराने वो चली गई,
हा खयाल मेरे पुराने थे वो उसी पे ठहरे रह गए।





   Lukesh #खयाल

Jayshree Hatagale

#खयाल

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अच्छा लगता है...... 
कभी कभी यूँ अकेले रहना
खुद से बाते करना और
यूँही खयालों में बहना.... #खयाल

Rock🌟 Rohit

#खयाल

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ये तो बताओ 
खयाल किसका हैं
जिसके साथ हो उसका 
या जिसके साथ होना चाहीये था उसका #खयाल
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