Find the Latest Status about पाँचवीं अनुसूची from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, पाँचवीं अनुसूची.
Monika Gera jindagi. A poetess, writer, lyricist, singer,motivational speaker,Handwriting expert for three languages as to training + language teacher ( three languages).
Rajendrakumar Jagannath Bhosale
अध्य आत्म मध्य धाव, अंत्य स्थिती अष्ट भाव दश दिशा सोहं नाव, अनुभवे ll ध्रु ll रूप रंग स्वयं अंग, नाद दंग वेद संग थाट राग रची मंग , गुरुमुखे ll 1ll सम आधी तुर्या वाणी, अंतर्यामी हे निर्गुणी श्रीगुरु कृपेची गाणी राजे म्हणे ll 2ll गायक कवी श्री राजेंद्रकुमार जगन्नाथ भोसले मो. क्र.9325584845 ©rajendrakumar bhosale #अनुभूती #morningcoffee
Jitendra Kumar Som
पांचवीं पुतली लीलावती की कहानी पांचवे दिन राजा भोज सिंहासन पर बैठने की तैयारी कर ही रहे थे कि पांचवीं पुतली लीलावती ने उन्हें रोक दिया। लीलावती बोली, राजन, क्या आप विक्रमादित्य की तरह दानवीर और शूरवीर हैं? अगर हां, तब ही इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी होंगे। मैं आपको कथा सुनाती हूं परम दानवीर विक्रमादित्य की। एक दिन विक्रमादित्य दरबार में राजकाज निबटा रहे थे तभी एक विद्वान ब्राह्मण दरबार में आकर उनसे मिला। उसने कहा कि अगर वे तुला लग्न में अपने लिए कोई महल बनवाएं तो राज्य की जनता खुशहाल हो जाएगी और उनकी भी कीर्ति चारों तरफ फैल जाएगी। विक्रम को उसकी बात जंच गई और उन्होंने एक बड़े ही भव्य महल का निर्माण करवाया। कारीगरों ने उसे राजा के निर्देश पर सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात और मणि-मोतियों से पूरी तरह सजा दिया। महल जब बनकर तैयार हुआ तो उसकी भव्यता देखते बनती थी। विक्रम अपने सगे-सम्बन्धियों तथा नौकर-चाकरों के साथ उसे देखने गए। उनके साथ वह विद्वान ब्राह्मण भी था। विक्रम मंत्रमुग्ध हुए साथ ही वह ब्राह्मण मुंह खोले देखता रह गया। बिना सोचे उसके मुंह से निकला-'काश, इस महल का मालिक मैं होता!' राजा विक्रमादित्य ने यह सुनते ही झट वह भव्य महल उसे दान में दे दिया। ब्राह्मण के तो मानो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह भागता हुआ अपनी पत्नी को यह समाचार सुनाने पहुंचा। इधर ब्राह्मणी उसे खाली हाथ आते देख कुछ बोलती उससे पहले ही उसने उसे हीरे-जवाहरात और मणि-मुक्ताओं से जड़े हुए महल को दान में प्राप्त करने की बात बता दी। ब्राह्मण की पत्नी की तो खुशी की सीमा न रही। उसे एकबारगी लगा मानो उसका पति पागल हो गया और यों ही अनाप-शनाप बक रहा हों, मगर उसके बार-बार कहने पर वह उसके साथ महल देखने के लिए चलने को तैयार हो गई। महल की शोभा देखकर उसकी आंखे खुली रह गईं। महल का कोना-कोना देखते-देखते कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चला। थके-मांदे वे एक शयन-कक्ष में जाकर निढाल हो गए। अर्द्ध रात्रि में उनकी आंखें किसी आवाज से खुल गई। सारे महल में महक फैली थी और सारा महल प्रकाशमान था। उन्होंने ध्यान से सुना तो लक्ष्मी बोल रही थी। वह कह रही थी कि उनके भाग्य से वह यहां आई है और उनकी कोई भी इच्छा पूरी करने को तैयार है। ब्राह्मण दम्पति का डर के मारे बुरा हाल हो गया। ब्राह्मणी तो बेहोश ही हो गई। लक्ष्मी ने तीन बार अपनी बात दुहराई। लेकिन ब्राह्मण ने कुछ नहीं मांगा तो क्रुद्ध होकर चली गई। उसके जाते ही प्रकाश तथा महक- दोनों गायब। काफी देर बाद ब्राह्मणी को होश आया तो उसने कहा- 'यह महल जरूर भुतहा है, इसलिए दान में मिला। इससे अच्छा तो हमारा टूटा-फूटा घर है जहां चैन की नींद सो सकते हैं।' ब्राह्मण को पत्नी की बात जंच गई। सहमे-सहमे बाकी रात काटकर तड़के ही उन्होंने अपना सामान समेटा और पुरानी कुटिया को लौट आए। ब्राह्मण अपने घर से सीधा राजभवन आया और विक्रमादित्य से अनुरोध करने लगा कि वे अपना महल वापस ले लें। पर दान दी गई वस्तु को वे कैसे ग्रहण कर लेते। काफी सोचने के बाद उन्होंने महल का उचित मूल्य लगाकर उसे खरीद लिया। ब्राह्मण खुशी-खुशी अपने घर लौट गया। ब्राह्मण से महल खरीदने के बाद राजा विक्रमादित्य उसमें आकर रहने लगे। वहीं अब दरबार भी लगता था। एक दिन वे सोए हुए थे तो लक्ष्मी फिर आई। जब लक्ष्मी ने उनसे कुछ भी मांगने को कहा तो वे बोले- 'आपकी कृपा से मेरे पास सब कुछ है। फिर भी आप अगर देना ही चाहती हैं तो मेरे पूरे राज्य में धन की वर्षा कर दें और मेरी प्रजा को किसी चीज की कमी न रहने दें।' सुबह उठकर उन्हें पता चला कि सारे राज्य में धन वर्षा हुई है और लोग वर्षा वाला धन राजा को सौंप देना चाहते हैं। विक्रमादित्य ने आदेश किया कि कोई भी किसी अन्य के हिस्से का धन नहीं समेटेगा और अपने हिस्से का धन अपनी सम्पत्ति मानेगा। जनता जय-जयकार कर उठी। इतना कहते ही पुतली लीलावती बोली, बोलो राजन, क्या इस कथा के बाद तुम इस सिंहासन के योग्य अपने आपको पाते हो? राजा भोज निराश हो गए और अपने कक्ष में लौट गए। अगले दिन राजा को रोका छठी पुतली रविभामा ने। ©Jitendra Kumar Som #City पांचवीं पुतली लीलावती की कहानी
Rakesh Sonker
कि माना तू दिल की ख्वाहिश थी लेकिन वो ख्वाहिश एक ख्वाब बन के रह गई ...!! करते थे तुझे दिलों जान से.. प्यार ए- मोहब्बत लेकिन इजहार करने से डरते थे...!! तुमको मेरी इन नादानियों से वाकिफ तो होना चाहिए....! अगर सक था मेरे कैरेक्टर पे तो पहले बताना चाहिए...!! #मेरी कलम से🖋️❣️ #NojotoQuote मेरी पांचवीं स्वरचित कुछ पंक्तियां🖋️❣️
Anamika Nautiyal
शख़्सियत कुछ यूँ बना जाओ तुम्हारे बाद भी तुम्हें याद रखा जाए शख़्सियत कुछ यूँ हो कि तुम्हारे बाद भी तुम्हारा नाम लिया जाए जीते जी जो सम्मान है जीने के बाद दो गुना हो जाए कर्म ऐसे करो की दुनिया तुम्हारा ज़िक्र दोहराए फलक तक कर ले नाम अपना बजाय इसके कि तू 'अनाम' कहलाए तुझे दोबारा देखने को दुनिया बेताब हो जाए कुछ कर ऐसा कि दुनिया तेरी मुरीद हो जाए । #रमज़ान_कोराकाग़ज़ पाँचवें दिन की रचना 🔅 श्रद्धा सुमन🔅
Sangeeta Patidar
मेरी राहों की मंज़िल, मेरी साँसों का बंधन सिर्फ़ तू, क्योंकि, अपना सा, सुन्दर सा, हर बंधन से परे अनमोल रिश्ता है तू।। ख़ुदा मान लूँ, शायद दुआ का असर थोड़ा ज़्यादा हो जायेगा, थोड़ा सा हिस्सा जो मेरा, शायद फिर पूरा ही मेरा हो जायेगा, मेरी ख़ुशियों की तलाश, दर्द की तसल्ली है सिर्फ़ तू, क्योंकि, अपना सा, सुन्दर सा, हर बंधन से परे अनमोल रिश्ता है तू।। तमाम अल्फ़ाज़ भी कम हैं, तेरी ज़रूरत बयाँ करने के लिये, खोया वक़्त तो पा लूँ , बस तू साथ रहे ज़ाया करने के लिये, मेरी सारी दास्ताँ, मेरी ज़िन्दगी की हँसी है सिर्फ़ तू, क्योंकि, अपना सा, सुन्दर सा, हर बंधन से परे अनमोल रिश्ता है तू।। मेरी राहों की मंज़िल, मेरी साँसों का बंधन सिर्फ़ तू, क्योंकि, अपना सा, सुन्दर सा, हर बंधन से परे अनमोल रिश्ता है तू।। -संगीता पाटीदार #रमज़ान_कोराकाग़ज़ रमज़ान पाँचवा दिन