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Akshay Dixit
कलम और कागज़ सोचा ना था इतने जल्द ही बदल जाओगे पास रह कर भी साथ ना रह पओगे पहले बोला करते थे आप में खोजने पर भी बुराई नहीं मिलती आज सभी के सामने हमारी बुराई गिनाने लग जओगे सोचा ना था इतने जल्द ही बदल जाओगे #प्रथम दिल का विचार
Dharmendra Shukla
#OpenPoetry ॐ नमः शिवाय जय बुढ़ऊ बाबा सावन का प्रथम सोमवार
Elisan Tudu
नए विधालय के किस तरह रहना है जब मैंने नए विघालय के द्वार में प्रवेश किया। मैं चकित हो गया इसका परिसर आकार में विशाल था। विघालय भवन बहुत सुंदर था ©Elisan Tudu विधालय का प्रथम दिन
Ek villain
मानव जन्म विधाता का उत्कृष्ट वरदान है यह कहां और कब मिलेगा कोई नहीं जानता किंतु इसकी सफलता हमारे वश में है इसके लिए जिन मानवीय गुना के आवश्यकता होती है उसका उत्तरदायित्व परिवार और समाज पर है इसलिए बचपन से ही विभिन्न पाठ पढ़ाए जाते हैं किंतु यह पाठ व्याख्यातिक और सामाजिक जीवन में कितने उपयोगी सिद्ध होंगे इसका अनुशीलन आवश्यक है अन्यथा विपरीत परिणाम संभव है मनुष्य के प्रत्येक आचरण का प्रभाव समाज पर पड़ता है आते कोई भी पाठ समाज से अलग होकर नहीं देखा जा सकता ©Ek villain जीवन का प्रथम पाठ
Prashant Mishra
निश्छलता का प्रारूप है 'माँ' इस धरती पे स्नेह का सच्चा स्वरूप है 'माँ' इस धरती पे दुनिया में 'माँ' के जैसा नहीं कोई दूजा है भगवान का सच्चा रूप है 'माँ' इस धरती पे --प्रशान्त मिश्रा #"माँ" का रूप
अर्पिता
आज माँ का एक रुप देखा , दिनभर बच्चों के काम किये जा रही थीं, अपनी उलझने भुलाकर उन्हें सुलझाना सीखा रही थी, अपने खट्टे मीठे अनुभवों से उन्हें जीना सीखा रही थी, अपनी सहनशीलता का परिचय जता रही थी, नामचिन चाय की चुस्कियों के साथ दिन बनाये जा रही थी, उनके हर एक पल को तराशती जा रही थी, नाजुक सी कलियों को फूल बनना सीखा रही थी, अपनी सतयुग की कहानियां इस कलयुग में सुनाए जा रही थी, अपने भोलेपन से सभी के दिलों को जीतना सिखाए जा रही थी, सिर्फ वो ही ये सब करे जा रही थीं, अपने बच्चों को प्रत्यक्षता का ज्ञान कराए जा रही थी, अपनी ही ममता को लुटाये जा रही थी, बहुत प्यार दुलार से बात किये जा रही थी, और इन्ही बातो के जरिये सब कुछ सिखाये जा रही थी, ज़िन्दगी का मतलब बताये जा रही थी, इस संसार मे अपनी महत्वता को बनाये जा रही थी, थोड़ा ध्यान से देखा तो साक्षात देवी सी प्रतीत हो रही थी।। ©अर्पिता #माँ का रूप