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Rajnish Shrivastava

#तटबंध जब टूटते हैं तो #शायरी

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Kulbhushan Arora

पुण्या.... स्नेह कीअविरल नदी है, तटबंधों की सीमा में बहती, सबके लिए सब तुम सहती, संबंधों को भी सम रखती, जीवन की अविरल नदी हो। बहती जाती बह #yqdidi #yqquotes #yqपुण्या #दाबू_की_पुण्या

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#दाबू_की_पुण्या  पुण्या....
 स्नेह कीअविरल नदी है,
तटबंधों की सीमा में बहती,
सबके लिए सब तुम सहती,
संबंधों को भी सम रखती,
 जीवन की अविरल नदी हो।
बहती जाती बह

Sunita Bishnolia

मैं नियरे बैठी गहरे सागर, फिर भी खाली है मन गागर। मन में उठती उन्माद लहर, तटबंधन तोड़ चली आतुर। उद्वेग का झरना बहता मन, शशि किरणें भी झुलसाए #सुनीता

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 मैं नियरे बैठी गहरे सागर,
फिर भी खाली है मन गागर।
मन में उठती उन्माद लहर,
तटबंधन तोड़ चली आतुर।
उद्वेग का झरना बहता मन, 
शशि किरणें भी झुलसाए

Sunita Bishnolia

#सागर मैं नियरे बैठी गहरे सागर, फिर भी खाली है मन गागर। मन में उठती उन्माद लहर, तटबंधन तोड़ चली आतुर। उद्वेग का झरना बहता मन, शशि किरणें भी #सुनीता

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#सागर

मैं नियरे बैठी गहरे सागर,
फिर भी खाली है मन गागर।
मन में उठती उन्माद लहर,
तटबंधन तोड़ चली आतुर।
उद्वेग का झरना बहता मन, 
शशि किरणें भी

i am Voiceofdehati

#बाढ़_पीड़ितों की मजबूरी व नेताओं के राजनीतिक हथकंडों को दर्शाती यह अवधी भाषा की कविता। बाढ़- यह शब्द सुनकर ही डर लगता है सभी अपने घरों में #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqthoughts #विजयंत_सिंह_सनातनी #yqsnatni #yqavadhi

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वाह क्या हवा है^_________^
(भाषा---अवधी)
एक तौ भादौ, दूजे मघा 
तीसर बहत तेज पुरवईया
चौथे भरा है पानी चहुंओर
हर तरफ कजरी कै है शोर
काली घनी अंधेरी रात
उपर से होई रही बरसात
केउ न समझै बाढ़ पीड़ित कै हाल
ताने है बंधा पर पन्नी औ तिरपाल
छोड़ी कै घर और दुआर, लै कै भागत हैं परिवार
इ एक दिन कै न हुअय हाल,यहय होत है साल हर साल
नेता बैठे हैं पांच सितारम
उनका लागय इ सब खुबसूरत नजारा
उनका चिंता है बस जीतय का चुनाव
लागी  कय कैसेव दाहीने बांव
केउ मरय चाहे जियव
बैठे लियंय मजा वै यही हवा कै
जउन वादा करिन रहा जनता से
उ सब उड़ीगा यही हवा मा ।। #बाढ़_पीड़ितों की मजबूरी व नेताओं के राजनीतिक हथकंडों को दर्शाती यह अवधी भाषा की कविता।
बाढ़- यह शब्द सुनकर ही डर लगता है
सभी अपने घरों में

Aprasil mishra

प्रारब्ध पर शैवालिनी रोती नहीं, निस्सीम तृष्णा की हदें होती नहीं. तटबंध के स्पर्श में सिमटी हुई, धारा अमिट विश्वास को खोती नहीं. #Struggle

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" नदी के किनारों की वेदनायें "  प्रारब्ध  पर  शैवालिनी  रोती  नहीं,
निस्सीम तृष्णा की  हदें  होती नहीं.
तटबंध  के   स्पर्श  में  सिमटी  हुई,
धारा अमिट विश्वास को खोती नहीं.

Rupam Jha

आत्ममुग्धता के मारे क्या किसी की सुधि लेंगे,वो तो बस सत्ता की लिप्सा से ग्रसित हैं,बाकी भाषणबाजी जितना कर लें!पहले लू और अब बाढ़ की चपेट में #bihar #yqdidi #yqhindi #अनवरत #नवरूप #jhapost #बिहार_बाढ़

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व्यथित मन से कर रही हूं पुकार,
ये कैसा प्रलय झेल रहा है बिहार,
पहले सुखाड़ तत्पश्चात विकराल बाढ़,
मासूमों को छीन गया पहले ही चमकी बुखार,
दंश लू का चला ऐसा,जाने कितनी चली गयी,
रोई बिलखी माँओ की आँचल बस भींग के रह गयी,
कोई न सुना दुखड़ा, उनकी गोद सूनी हो गयी,
इलाज़ के अभाव में बच्चों को बेमौत मौत मिल गयी,
जाने क्या गलती हुई,क्यों कर रहा प्रकृति खिलवाड़,
और नेत्र मूंदे सत्ता पर मौन बैठी है यहां की सरकार,
जनता की कोई सुध नहीं है करती नहीं कोई प्रतिकार,
बच्चे-बूढ़े तड़प रहे हैं,मिल न रहा है उनको आहार,
सुशासन बाबू आत्ममुग्ध हो गए,अब आस ही न किया जाएं,
सोये रहने दे उन्हें,उनके तंद्रा को न भंग न किया जाएं,
बस प्रार्थना अब तुमसे करती हूं भगवन,दुःख मासूमों का सुना जाएँ,
बहुत हो गया इम्तेहान अब कुछ रहम भी तो किया  जाएं!🙏 आत्ममुग्धता के मारे क्या किसी की सुधि लेंगे,वो तो बस सत्ता की लिप्सा से ग्रसित हैं,बाकी भाषणबाजी जितना कर लें!पहले लू और अब बाढ़ की चपेट में

Nitu Singh जज़्बातदिलके

#विश्वकवितादिवस पर एक कविता पेश है। आप सभी को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻 #मेरी_नज़्म_अधूरी_है जब से देखा तुमको मैंने । पलकें झपकाना #Poetry #शायरी #shayeri #Shorts #नीतू #जज़्बात_दिल_के #singhnitu

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Anita Saini

समानांतर चलती मन मस्तिष्क की उथल पुथल से टकरा कर पनप जाती है कविता! यकायक फूट पड़ता है अनुराग का निर्झर!

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अनेक मनोभावों से पली 
बढ़ी होती हैं....
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में
उनका हमेशा संबंध नहीं होता। समानांतर चलती मन मस्तिष्क की
उथल पुथल से टकरा कर
पनप जाती है
कविता!

यकायक फूट पड़ता है
अनुराग का निर्झर!

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रेहन_ईप्सा जीवन का अभिज्ञ लिए, ​अनभिज्ञ रही मै, ​स्मृतियों की स्थिरता, ​तय करती रही, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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जीवन का अभिज्ञ लिए,
​अनभिज्ञ रही मै,
​स्मृतियों की स्थिरता,
​तय करती रही,
काल के प्रहार से विघटित,
​विस्मृत उम्र मेरी,

​रूढ़ियों के पौरुष से चिरप्रसूतिका मै,
​कभी कोई,
​अभिलाषा नही करूँगी गर्भित,
ना जन्मूंगी श्वाँस मात्र लिप्सा अपनी,
​पालने की रिक्तता,
​पुकारेगी मेरी ममता, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#रेहन_ईप्सा

जीवन का अभिज्ञ लिए,
​अनभिज्ञ रही मै,
​स्मृतियों की स्थिरता,
​तय करती रही,
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