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सुसि ग़ाफ़िल
फिर मुझे हर बार गलत ठहराया गया जब मैंने रिश्ता बचाने के लिए जानबूझकर गलती स्वीकार की थी, फिर मैं सिकुड़ता रहा इस रिश्ते में, इस तरह सिकुड़ना मेरी प्राथमिकता हो गई| फिर मुझे हर बार गलत ठहराया गया जब मैंने रिश्ता बचाने के लिए जानबूझकर गलती स्वीकार की थी, फिर मैं सिकुड़ता रहा इस रिश्ते में, इस तरह सि
Tushar Jangid
मां का आंचल भीगे उन्हें कोई गम नही सिपाही का बदन छिले उन्हे कोई गम नही उनके खातों का पेट सदा भरा हो बस फिर देश भी बिक जाए तो उन्हे कोई गम नहीं बिन खाए ये गरीब सोए उन्हें कोई गम नहीं युवा अपनी उम्मीद खोए उन्हें कोई गम नहीं एक बार ढोंग का जादू सीख जाएं बस फिर ईमान भी गिर जाए तो उन्हें कोई गम नहीं बेगुनाह मरे सलाखों में उन्हें कोई गम नहीं बेटियों की सांसें घुटें उन्हें कोई गम नहीं इक बार गद्दी पर तशरीफ़ जम जाए बस फिर वादे भी टूट जाएं तो उन्हें कोई गम नहीं कुछ खयाल है उनको इस गरीब के चेहरे पर पड़ी सिकुड़न का? . . . . .
Kulbhushan Arora
उम्मीद बैठी, सिकुड़ी हुई, ठिठुरती सर्दी में, इस विश्वास से.... कहीं से कोई, टुकड़ा भर धूप का मिल जाएगा.... उम्मीद बैठी सिकुड़ी हुई ठिठुरती सर्दी में इस विश्वास से कहीं से कोई टुकड़ा भर धूप का मिल जाएगा.... कुलभूषण
सुसि ग़ाफ़िल
खंडहर की कोख में जन्में दर्द को कोई नहीं छु पाया वो वहीं पड़ा रहा किसी कोने में सिकुड़ कर जो लगातार समंदर में डूब कर शांत होने की बात कह रहा था| खंडहर की कोख में जन्में दर्द को कोई नहीं छु पाया वो वहीं पड़ा रहा किसी कोने में सिकुड़ कर जो लगातार समंदर में डूब कर शांत होने की बात क
सुसि ग़ाफ़िल
भारी - भारी आंखें सुनसान सी है रातें! लौट कर ना आई इश्क़ की सौगातें! है मन मेरा अकेला अकेली मेरी बातें! सिकुड़ रही है मेरी दर्द से भरी बिछातें! सुशील तेरी आदत ना कम दर्द- दवातें! भारी - भारी आंखें सुनसान सी है रातें! लौट कर ना आई इश्क़ की सौगातें! है मन मेरा अकेला अकेली मेरी बातें!
{¶पारसमणी¶}
वर्षा की प्रतीक्षा में सिकुड़ती नदी जैसे फटे कपड़ों में देह छुपाने का प्रयत्न करती कोई स्त्री¡! आँचल में प्रेम में पूजी गई प्रतिमाओं के भग्नावशेष समेटे¡! देह पर नाखूनों से उकेरे और मिटाए गए पसंदीदा नाम पढ़कर रोती¡! मैंने पहली बार जाना स्त्री होना कितना त्रासदी भरा है¡! निर्जला होकर सर्व संसार को तृप्त करते चले जाना¡! शायर शुभ¡! वर्षा की प्रतीक्षा में सिकुड़ती नदी जैसे फटे कपड़ों में देह छुपाने का प्रयत्न करती कोई स्त्री¡! आँचल में प्रेम में पूजी गई प्रतिमाओं के भग्
पूजा निषाद
मैं चाहती हूं अब कोई मुझसे प्रेम न करे ! Read in caption मैं चाहती हूं अब कोई मुझसे प्रेम न करे कोई न लगाए पौधे मेरे दिल में सौहार्द के !
Pooja Nishad
मैं चाहती हूं अब कोई मुझसे प्रेम न करे ! Read in caption मैं चाहती हूं अब कोई मुझसे प्रेम न करे कोई न लगाए पौधे मेरे दिल में सौहार्द के !
Peeyush Umarav
चंद रोज ही तो जीना है पर माथे पे सिकुड़न, बदन पे पसीना है, हर कायदे में पाबंदी, जलता सीना है, ये कैसे दस्तूर, कैसा जीना है.. चाहत जो कभी थी