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Babli Gurjar
दायरों की दहलीज लांघने लगे हैं सच अब बहुत कुछ हम भी जानने लगे हैं नहीं मिलेंगा किसी को फ़र्क का फायदा चल नहीं सकोगे कोई अब बेकायदा सूली पर टांगें रहे अपनी ही हस्ती इतनी भी अपनी औकात नहीं सस्ती फूल हूं गुलाब का कांटों से है गहरा नाता कमल भी अगर मै हूं तो गहरे जल में हूं सुंदर हूं सुगन्धित हूं हां सच में मै सुशिक्षित हूं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar सुशिक्षित
Er Naveen Saini
इस दौर ए सियासत का बस इतना सा फसाना है। कि बस्ती भी जलानी हैं और मातम भी मानना हैं।। ©Er Naveen Saini दीवान अभियंता।।
Keshav baba
तुम्हें पढ़ूँ तो महक जाऊँ तुम्हें लिखूँ तो चहक जाऊँ तुम्हें सोचूँ तो बहक जाऊँ तुम्हें देखूँ तो जी जाऊँ तुम्हें न देखूँ तो मर जाऊँ..! ©Keshav baba #mohabbat छोटे अभियंता @Abhi
अभियंता प्रिंस कुमार
मौन मानव ,मानवता रक्तरंजित युद्ध में क्रूरता , हृदय स्पंदित अब कराह रही है इंसानियत पर नही बदली किसी की नियत जीवन का हर क्षण तो युद्ध है, पर सफल जीवन हेतु वास्तविक योद्धा बनना ही जीवन है। ©अभियंता प्रिंस कुमार @अभियंता प्रिंस कुमार
Abhit khudarvi
जो आप खुद को खुदा समझते हो ओर हर बात में अपने झूठे कसीदे पढ़ते हो। ऐसा नही है कि हम समझते नही है पूरे शहर को इल्म है इस हालात का पर खामोस सब कुछ कहते नही है। बांट धर्म के बवंडर में जो आप खेल रहे हैं गलती हमने ही किया था जो आपको झेल रहे है। वक्क्त आने दो हम आपको आईना दिखायँगे ओर जितना ऊपर आप समझते है खुद को हम उतना नीचे गिरायँगे। ऐसा उत्पात मचेगा आप त्राहिमाम हो जायँगे और हर क्रोध एक ज्वाला बनेगा तब आपको आपकी अवकात दिखायँगे। #बेरोजगार
भगवान ukpedia
#Pehlealfaaz संघर्षों की लहरें नहीं, शांति का कगार लिखता हूँ, चमचमाते शहर नहीं, अंधकार का पहाड़ लिखता हूँ, ताजा समाचार नहीं, रात्रि छप जाने वाला अखबार लिखता हूँ, सपनों की कब्र पर महिनान्त मिलने वाली पगार लिखता हूँ, आज मैं बेगार लिखता हूँ.. प्रगति की मिश्री नहीं, ठप पड़ा कारोबार लिखता हूँ, बेखौफ गुनहगार और खौफजदा थानेदार लिखता हूँ, स्थिर मजदूर और गतिशील ठेकेदार लिखता हूँ, नीति का नवाचार नहीं, राजनीति का प्रतिकार लिखता हूँ, युवा हृदय के धधकते अंगार लिखता हूँ, आज मैं सरकार नहीं, बेरोजगार लिखता हूँ, आज मैं बेगार लिखता हूँ... #बेरोजगार
Mohit Dadhich
3000-3500 चिरागों को हवाओं में उछाला जा रहा है हवाओं पर भी रॉब डाला जा रहा है अरे हम ही तो बुनियाद है युवा भारत की और आज हमें ही बेरोजगार की उपाधि से नवाजा जा रहा हैं। बेरोजगार
पूर्वार्थ
खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए बेरोजगार हूँ साहब रोजगार चाहिए जेब में पैसे नहीं हैं डिग्री लिए फिरता हूँ दिनोदिन अपनी नजरों में गिरता हूँ. कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए टेलेंट की कमी नहीं हैं भारत की सड़कों पर दुनिया बदल देगे भरोसा करो इन लड़कों पर लिखते लिखते मेरी कलम तक घिस गई नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए दिन रात करके मेहनत बहुत करता हूँ सुखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं रिश्वत की कमाई खूब मजे से खा रहे है. नौकरी पाने के लिए यहाँ जुगाड़ चाहिए बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए ©पूर्वार्थ #बेरोजगार