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ranjit Kumar rathour

ये एक इत्तेफाक था कि मैं 
अपने गांव में था
भागवत कथा चल रहा था
स्वभाव के विपरीत मैं वहा था
आदतन सुनता नही मैं
लेकिन गांव है मेरा
प्रवाचक ने शुरू किया
भाई से भाई के बटवारा हो
लेकिन संपत्ति का नही
सवाल था आखिर किसका?
जवाब प्रवाचक का आया
बिपत्ति का बटवारा हो
पता नही क्यो लगा कि
मैं गलत नही हूँ 
जब कि मैं उस वक्त तनाव में था
फिर मैं बीच मे ही चला गया
मजबूत और मजबूत होकर
पास ही अपने स्कूल मैदान
जहा से मैने ककहरा सीखा था
नमन किया उस मंदिर को
यही से हर संस्कार सीखे थे
 मैं भाई से मिलने आया था
उसकी तबियत ठीक नही थी
शायद किसी के लिए ये गलत था
मैं असमंजस में था
लेकिन संतुष्ट हो गया
आज मेरा कथा पंडाल आना
सार्थक हो गया
लगा आना चाहिए कभी कभी
ऐसी जगह शान्ति औऱ हल
दोनों मिल जाते है

©ranjit Kumar rathour
  विपत्ति का बटवारा
#संपत्ति का नही

विपत्ति का बटवारा #संपत्ति का नही #विचार

611 Views

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Mokshada mishra

mohabbat ki ahat ko
aur ishq ki likhawat ko
badal pana aasan nahi hai ae dost

ज़रा सी समझ की फेर में
अर्थ का अनर्थ कर देती हैं ।

कलम 
with mishraji

©Mokshada mishra अर्थ का अनर्थ

#Morning

अर्थ का अनर्थ #Morning #विचार

9 Love

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Vishnu K Keshri

विपत्ति का बटवरा

विपत्ति का बटवरा #समाज

126 Views

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Jiyalal Meena ( Official )

संपत्ति गई विपत्ति आई ? about life #Nojoto #jiyalalmeena #Motivation

संपत्ति गई विपत्ति आई ? about life #jiyalalmeena #Motivation #Motivational

4.91 Lac Views

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HP

अहंकार और स्वार्थ के वशीभूत होकर आपस में लड़ने झगड़ने लगे और उनकी प्रतिभा उन्हीं के लिए विपत्ति बन गई।









अखंड ज्योति विपत्ति

विपत्ति

9 Love

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HP

धन की तरह ही ख्याति और मान प्रतिष्ठा की महत्वाकांक्षा भी संसार में भारी विपत्ति उत्पन्न करने वाली सिद्ध होती है।






अखंड ज्योति विपत्ति

विपत्ति

8 Love

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Ankit Tripathi

आज हम ज्ञान विज्ञान की दुनिया में तेज गति से आगे बढ़ रहे है।प्रतिदिन नए खोज नए अविष्कार से हम मानव सभ्यता को विकसित कर रहे हैं ।विज्ञान के इस प्रगति के साथ ही मानव सभ्यता के सामने रोज नए खतरे सामने आ रहे है।ये खतरे कभी प्राकृतिक आपदा के रूप में तो कभी खतरनाक बीमारियों के रूप में हमारे सामने आ रही हैं।
मानव विकास  के पथ पर तेजी से अग्रसर है लेकिन क्या उसका विकास प्रकृति के साथ सामंजस्य बना पा रहा है?मानव ने विकास के माध्यम से सभ्य होने का दावा किया है  लेकिन क्या वास्तव में मनुष्य सभ्य हुआ है? आदि मानव की सभ्यता  से लेकर वर्तमान मानव सभ्यता के विकास का  माध्यम कितना व्यापक है, कितना अर्थपूर्ण है,कितना विनाशकारी , कितना अपरिपक्व है और कितना स्वार्थपरक है उसे समझना बहुत  जरूरी है। आग  का प्रयोग सीखना ,गोल चक्र का इस्तेमाल करना, जानवरों का प्रयोग अपने लाभ में करने की कला सीखना, अपने तन को ढकने की परंपरा सीखना, परिवार का निर्माण करना या यह कहें की प्रकृति का इस्तेमाल करके मानव ने धीरे-धीरे अपने सभ्यता का विकास करना सीखा है।मानव जाति को प्रकृति ने  बुद्धि विवेक में निपुण बनाकर पृथ्वी पर एक अद्भुत रचना किया ।उसे यह बुद्धि विवेक अपनी धरती को सजाने संवारने और अन्य जीव-जंतुओं का ख्याल रखने को दिया गया । पर मानव ने क्या किया ?उसने धरती को  कितना सजाया , संवारा  और अन्य जीव-जंतुओं  का कितना ख्याल रखा है इसका जीवंत प्रमाण आज हमारे सामने  है ।  जब हम आदिमानव थे  तो जंगल हमारा घर था और आज जब हम कथित सभ्य मानव है तब जंगल हमारे दोहन का सबसे बड़ा साधन है। हमने प्रकृति की गोद में खेल कर अपना स्वार्थी विकास किया। जिस प्रकृति ने मानव को पाला पोसा और उसे विकास का अवसर प्रदान किया उसी प्रकृति को मानव ने  लूटा खसोटा और  बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ा। हम समय बीतने के साथ जंगल के जीवन से बाहर आ गए और सभ्य होने के रास्ते की तरफ बढते चले गए। लेकिन प्रश्न  उठ जाता है कि क्या हम वास्तव में सभ्य हो गए और क्या सच में हम जंगली नहीं रह गए? कह पाना तो मुश्किल है, क्योंकि जैसे-जैसे हम प्रकृति की गोद से बाहर निकल कर अपना पैर आगे बढ़ाना शुरू किए वैसे-वैसे खुद के लाभ के लिए  खुद को सभ्य कहते चले गए। सभ्य होने का ढोंग करने के साथ-साथ हमने अपने पालनहार प्रकृति को और उस प्रकृति की  व्यापकता को भूलते चले गए। मानव सभ्यता की यह विकास यात्रा धीरे-धीरे अंधी और स्वार्थी होती चली गई। हम इतने अंधे हो गए कि हम भूल गए कि हमारा अस्तित्व इस प्रकृति ने ही  बनाया है।मानव तो इतना अंधा हो गया है कि जिस हवा में वो जिंदा हैं उसी को प्रदुषित करते चला गया,जिस जल से प्यास मिटनी है उसी को गंदा करते चला गया ,जिस जंगल ने हमारे पूर्वजों को पाला है हम उसी को काटते चले गए, जिस मिट्टी ने हमें जन्म दिया है उसी को बर्बाद करते चले गए ।इन सबके बाद भी बड़े गर्व से कहते चले गए कि हम सभ्य होते जा रहे हैं।सच में तो हमने विकास के बजाय केवल विनाश किया है।जिस विकास के लिए हम पागल हो गए हैं वो विकास मानव के अस्तित्व के लिए खतरनाक होता चला जा रहा है।हमारा सभ्य होने का ढोंग मानव जाति के लिए केवल खतरा उत्पन्न कर रहा है।खतरा कितना बढ़ता जा रहा ये कहने की जरूरत नही है ।प्रकृति के हर क्षेत्र से हमारे अस्तित्व को चुनौती मिल रही है ।दिन प्रतिदिन बढ़ती बीमारियां ,बढता वायु प्रदुषण,बढ़ता जल प्रदुषण ,घटता वन क्षेत्र ,बढ़ता कंक्रीट फॉरेस्ट और बढ़ती जनसंख्या और न जाने कितने अनजान खतरे रोज के रोज इस धरती पर हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।आँखे मूंद लेने और विकास के ढोंगी और खतरनाक डफली बजाने से ये खतरा केवल बढ़ता जाएगा।
                        अभी भी समय है कि हम प्रकृति के साथ दुबारा  सामंजस्य बिठाये । अपने विकास यात्रा में प्रकृति को प्रथम स्थान दें।प्रकृति से दूरी बनाने के बजाय उसका आत्मसात करें ।ये समझना होगा कि यदि प्रकृति हमें पाल सकती  है तो हमारा  संघार भी कर सकती है ।अब हमें तय करना है कि हम क्या चाहते हैं।अंततः यही कहूंगा कि हमारा अस्तित्व हमारे व्यवहार पर निर्भर करता।
   लेखक :अंकित त्रिपाठी 
ईमेल :ankittripathi151@gmail.com

©Ankit Tripathi सभ्यता का विकास "वरदान या विपत्ति"

#WallPot

सभ्यता का विकास "वरदान या विपत्ति" #WallPot

5 Love

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Rakhi Yadav

जीवन में विपत्तियों का आना स्वाभाविक हैंI
 वह कभी भी, किसी भी समय,किसी भी रूप में आती हैं 
और 
भविष्य में भी आएंगी I  
अब यह व्यक्ति पर निर्भर करता हैI
 कि 
व्यक्ति कितना तैयार,मजबूत रहता हैंI 
विपत्तियों से लड़ने के लिए I

©Rakhi yadav विपत्ति
#bhagatsingh

विपत्ति #bhagatsingh

9 Love

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ashok polake

अर्थ संकल्प, वित्त मंत्री, वित्त, गृह विभाग आणि मी भाग २

अर्थ संकल्प, वित्त मंत्री, वित्त, गृह विभाग आणि मी भाग २ #शायरी #मराठीविचार

57 Views

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Rahul Shastri worldcitizens2121

Safar                                 July 10,2019

सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। 
ओशो सत्संग का अर्थ

सत्संग का अर्थ

3 Love

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RAVI KUMAR

#झुकने का अर्थ#

#झुकने का अर्थ# #Motivational

81 Views

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Aman Baranwal

मिट्टी का जिस्म और आग सी ख्वाहिशें,
खाक होना लाजमी है,
क्योंकि आदमी आखिर आदमी है! जीवन का अर्थ

जीवन का अर्थ

9 Love

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Kuldip Sawalkar

p का अर्थ

p का अर्थ

133 Views

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divya...

इश्क़ आज भी है मगर राधा- कृष्ण जैसा नहीं ...
होगे  एक - आध  भी उनके जैसे अगर...
तो उनको चैन का जीवन नहीं...
लोगो को प्रेम का  हर दस्तूर झुटा लगता है...
क्योंकि उन्होंने कभी किसी से ....
सच्चा प्रेम किया ही नहीं... प्रेम का अर्थ...

प्रेम का अर्थ...

41 Love

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Satish Suman(रवि)

जीवन का अर्थ।।

जीवन का अर्थ।।

81 Views

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Kumar Gunjan

"सफलता" कभी भी अर्थ
शिक्षा, पद या गरिमा द्वारा निर्धारित नहीं की जा सकती
सफलता एक संतुष्टि हैं, जिसे आप निर्धारित करते है। सफलता का अर्थ

सफलता का अर्थ #विचार

4 Love

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नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)

जीवन का अर्थ
..........…...........
इस पृथ्वी पर मानव आता है, जीता है,चला जाता है। लेकिन जीने का अर्थ कम ही लोग समझ पाते हैं। जिस
जीवन में दया,क्षमा,परोपकार न हो उसका कोई अर्थ नहीं होता।त्याग भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। लेकिन समय, काल और परिस्थिति के अनुसार कब
किसका त्याग करना उचित होगा इसका भी ज्ञान होना
बहुत जरूरी है। सुमार्ग पर चलना,कल्याणकारी काम
करना ही जीवन का अर्थ होता है।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
  # जीवन का अर्थ।

# जीवन का अर्थ। #विचार

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ARVIND KUMAR

विचार
---------------------

जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही,
हमारी जिदंगी की सफलता का बड़ा हिस्सा होता है !

©Arvind Kumar
  सफलता का अर्थ!

सफलता का अर्थ! #विचार

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Pawan

जय श्रीकृष्ण

©Pawan
  जिंदगी का अर्थ

जिंदगी का अर्थ #कविता

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Kuldeep Singh Deep

"A"  Meaning of A
        अ का अर्थ : अवनी ,धरा,
        मरुधरा । जननी , मां, दुर्गा, 
     शक्तिस्वरूपा , शैल पुत्री कई 
     रुप है । संक्षेप में उर्वरा , भूमि है
     जिसे माँ कहते हैं।

©Kuldeep Singh Comrade मां : का अर्थ

मां : का अर्थ

11 Love

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yashwant Singh. dil dar choro. pardesi banana 997.

व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व का अर्थ #विचार

91 Views

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Parasram Arora

प्रेम मे 
बांटने का  भाव  होता हैँ 
सब कुछ लुटाने का मन होता हैँ 
निश्चित ही 
प्रेम मे विरोधाभास  भी होता हैँ 
प्रेम क़े  मार्ग मे विकास का  अर्थ 
किसी लक्ष तक  पहुंचना नहीं 
बल्कि  चलते  जाना  हैँ 
ऊचाईया  छूने मे  नहीं  हैँ अर्थ 
प्रेम मे तो सिर्फ  गहराई पाना हैँ प्रेम का अर्थ......

प्रेम का अर्थ......

10 Love

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Jyotsna Mishra

#भक्ति का अर्थ..

#भक्ति का अर्थ.. #विचार

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AP Juneja

शब्दों का अर्थ।

शब्दों का अर्थ। #Poetry

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जमील अंसारी कुडै़निया

श्लोक का अर्थ

श्लोक का अर्थ

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Shravan Goud

स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात

स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना। --अज्ञात

0 Love

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DANVEER SINGH DUNIYA

Kiss Day quotes  किसी ने कहा कि सागर जी आप किस किस को चाहते हो मैंने भी कह दिया कि जो किस किस में किश देगी उस किश को चाहुंगा में!

©DANVEER SINGH DUNIYA किश का अर्थ प्यार

किश का अर्थ प्यार #शायरी

13 Love

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©vrem_lecture

 अल तकिया का अर्थ

अल तकिया का अर्थ

7 Love

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