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Imran Shekhani (Yours Buddy)
SANTOSHMAR KUMAR
* अति सर्वत्र वर्जयेत् * मैंने एक तिब्बती कहानी पढ़ी है। कहते हैं दूर तिब्बत की पहाड़ियों में छिपा हुआ एक सरोवर है, उस सरोवर के किनारे एक वृक्ष है, वृक्ष बड़ा अनूठा है वृक्ष से भी ज्यादा अनूठा सरोवर है। कहते हैं, उस वृक्ष को जो खोज ले, उस सरोवर को जो खोज ले, और वृक्ष पर से छलांग लगा कर सरोवर में कूद जाए तो रूपांतरित हो जाता है। कभी भूलचूक से कोई पक्षी गिर जाता है, सरोवर में तो मनुष्य हो जाता है। कभी कोई मनुष्य खोज लेता है और उस वृक्ष से कूद जाता है तो देवता हो जाता है। ऐसा एक दिन हुआ, एक बंदर और एक बंदरिया उस वृक्ष पर बैठे थे उन्हें कुछ पता न था और एक मनुष्य न मालूम कितने वर्षों की खोज के बाद अंतत: वहां पहुंच गया उस मनुष्य ने वृक्ष पर चढ़ कर झंपापात किया सरोवर में गिरते ही वह दिव्य ज्योतिर्धर देवता हो गया--स्वभावत: बंदर और बंदरिया को बड़ी चाहत जागी उन्हें पता ही न था उसी वृक्ष पर वे रहते थे लेकिन कभी वृक्ष पर से झंपापात न किया था कभी सरोवर में कूदे न थे। फिर तो देर करनी उचित न समझी दोनों तत्क्षण कूद पड़े बाहर निकले तो चकित हो गए दोनों सुंदर मनुष्य हो गए थे। बंदर पुरुष हो गया था, बंदरिया सुंदर, सुंदरतम नारी हो गई थी। बंदर ने कहा--अब हम एक बार और बूदें बंदर तो बंदर! उसने कहा, अब अगर हम कूदे तो देवता होकर निकलेंगे बंदरिया ने कहा कि देखो, दुबारा कूदना या नहीं कूदना, हमें कुछ पता नहीं स्त्रियां साधारणत: ज्यादा व्यावहारिक होती हैं, सोच-समझ कर चलती हैं ज्यादा देख लेती हैं, हिसाब-किताब बांध लेती हैं, करने योग्य कि नहीं आदमी तो दुस्साहसी होते हैं। बंदर ने कहा, तू फिकर छोड़ तू बैठ, हिसाब कर अब मैं चूक नहीं सकता बंदरिया ने फिर कहा, सुना है पुरखे हमारे सदा कहते रहे ' अति सर्वत्र वर्जयेत्' अति नहीं करनी चाहिए अति का वर्जन है अब जितना हो गया इतना क्या कम है? मगर बंदर न माना मान जाता तो बंदर नहीं था कूद गया। कूदा तो फिर बंदर हो गया उस सरोवर का यह गुण था--एक बार कूदो तो रूपांतरण दुबारा कूदे तो वही के वही बंदरिया तो रानी हो गई एक राजा के मन भा गई बंदर पकड़ा गया एक मदारी के हाथों में फिर एक दिन मदारी लेकर राजमहल आया तो बंदर अपनी बंदरिया को सिंहासन पर बैठा देख कर रोने लगा याद आने लगी। और सोचने लगा, अगर मान ली होती बात दुबारा न कूदा होता तो बंदरिया ने उससे कहा, अब रोओ मत आगे के लिए इतना ही स्मरण रखो--अति सर्वत्र वर्जयेत् अति वर्जित है। ध्यान ऐसा ही सरोवर है समाधि ऐसा ही सरोवर है जहां तुम्हारा दिव्य ज्योतिर्धर रूप प्रकट होगा लेकिन लोभ में मत पड़ना अति सर्वत्र वर्जयेत् ।। ओशो; अष्टावक्र: महागीता (भाग--5) प्रवचन--14 *संकलन-रामजी 🙏🌹🌹* ©SANTOSHMAR KUMAR अति सर्वर्त बर्जयते
Brandavan Bairagi "krishna"
।।उर्वरा।। मन मे मिलाओ अच्छे विचारों की उर्वरा। लोगों के अच्छे मानो मशविरा। बुराई को उखाड़ फेंको तुरंत। काम बन रहे हो गर लोगों के,बातों का मत चलाओ वहाँ उस्तरा। जो कुछ कहना है किसी से भी कह दो खरा-खरा। ©Brandavan Bairagi "krishna" ।।उर्वरा।। #nightsky
Arora PR
सूखे ह्रदय की बंजर भूमि. आंसुओ की बूंदो से तर तौ हुई लेकिन मुझे तौ प्यार के अनमोल बीज बोने थे. उस पर कैसे बोऊँ ? उसके लिए उन्नत उर्वरक मुझे अभी तक मिले नही ©Arora PR उन्नत उर्वरक
Parasram Arora
त्वरित घूमता चक्र. जो दृगों को ठहरा सा लगता हैँ किन्तु क्रिया की निष्क्रियता मे परिणति ही समता हैँ मृत्यु असंगति नहीं.. सहज वह जीवन की संगति हैँ रति का मूल स्वभाव पूर्ण हो बन जाती फिर यति हैँ करता बनता सिद्ध कर्म ही जब अकर्म बनता हैँ मुक्ति नहीं कुछ और मात्र यह प्रज्ञा की थिरता हैँ त्वरित घूमता चक्र........
UPDARSHAK
गर्व से कहो हम एक है गर्व से कहो हम नेक है रंग रूप हो चाहे अलग अलग हम सब भारत के शेर है।। ©UPDARSHAK एक गर्वित भारतीय
Parasram Arora
विचारो के उम्दा उर्वरक पाकर शब्द जीवंत हो जाते है लेकिन उन विचारों के उन्नत बीज़ प्रतिक्षा कहाँ कर पाते है वे तो कंठ का सानिध्य पाकर मुखरित होनलगते है यधपि हर मौसम उनके खिलने के लिए अनुकूल है फिर भी यह तय है क़ि विचारो के उर्वरक अगर ज्यादा संवेनदशिल हुए तो वे आग उगलने मे भी अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकतेहै ©Parasram Arora विचारों के उर्वरक #mask