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अपनी कलम से
छेकाई की रस्म हो गई थी पूरी, अब घरवालों की बढ़ने लगीं थी मजबूरी, था क्या? दहेज़ भी तो जुटाना था, सारे सामान इकट्ठे कर तिलक भी चढ़ाने जाना था। मां कर रखी थी इकट्ठा कुछ, बाप बेचारा तैयारियों में था जुटा, कुछ कर्ज़ के लिए था दर -दर भटक रहा, तो कुछ अपनों से सहयोग था मांगता रहा, आख़िर करता भी क्या? बेटी को जो ब्याहनी थी, अपनी परी बिटिया से किए वादे भी तो निभानी थी। समय कुछ ऐसे सड़कने लगें, मानों इकट्ठे करने में कम से पड़ने लगें। कुछ लोगों ने खड़ी -खोटी सुनाई, तो किसी ने मदद की हाथ बढ़ाई। कुछ लोग उम्मीद देने में जुटे, तो कई -एक ने थी हिम्मत बढ़ाई। आखिर होता भी क्या? कुछ समाज से सहयोग मिले, तो कुछ अपने जमीन पर कर्ज थी उठाई, बार -बार मन में हो रही थी शंका, कैसे करेगा इस ब्याह की भरपाई। खैर जो भी हो..... दहेज का अब हो चुका था इंतजाम, आखिर बापू के लिए था बहुत हीं बड़ा इंतकाम। दिन उतरवाए गए, सामान बाजार से लाएं गए, मिठाई भी बनवाए गए। सारे मेहमानों को न्योता दे, तिलक में जाने के लिए बुलाए गए। किसी तरह तिलक की रस्म भी हो गई थी पूरी, यहां तक कुछ भी न बची थी अधूरी। हंसते -खिलखिलाते, अपने दर्द को दबाएं, एक बाप मेहमानों से बातें करता जाए। हां तो सुनों, बाराती पूरे सौ आयेंगे, व्यवस्था पूरे चार दिनों का रखना, नाच -गाने वाले भी आएंगे, कहीं अच्छे जगह इंतजाम करना। 'बिदेसिया ' ठीक किया हूं बारातियों के मनोरंजन हेतु, किसी अच्छे टेंट वालों से, बिजली -बाजों का इंतजाम करना। बारातियों के स्वागत में कोई कमी न रखना। चारों दिन अलग -अलग किस्म के खाने का इंतजाम करना। मेरे गांव वाले, मेरे मेहमान, कुछ अरसे तक नाम लें, स्वागत की तैयारी कुछ इस कदर करना। सोचना कभी.... एक बेटी के बाप का दिल कितना मजबूत होता है, देखे -न -देखे कोई, पर अंदर -हीं -अंदर कितना रोता है। हंसते रहता अक्सर, मुस्कुराते हुए सबकुछ सहता है, बोलना चाहे भी, पर बोल नहीं पाएं, खुद को संभालता हुआ, सामने आए। आखिर बाप है, कोई कितना भी कहर बरपाए, फिर भी न इतराए। 'जी हां' में हीं हामी भरे, फिर आगे बढ़ता जाए।। ©dashing raaz छेकाई की रस्म हो गई थी पूरी, अब घरवालों की बढ़ने लगीं थी मजबूरी, था क्या? दहेज़ भी तो जुटाना था, सारे सामान इकट्ठे कर तिलक भी चढ़ाने जाना थ
Sonal Panwar
‘ प्रिंछी ‘ एक परी की कहानी परियों की थी एक शहज़ादी , नाम था उसका ‘ प्रिंछी ‘ ! खुशियों का था आशियाना उसका , ग़मों से थी वो अनजानी ! खिलते फूलों-सी मुस्कान थी उसकी , महकती थी जिससे बगिया सुहानी ! हँसते-खेलते बीत रही थी उसकी , खुशियों से भरी ज़िंदगानी ! एक दिन अनजाने में ‘ प्रिंछी ‘ , आसमां से इस धरती पर आई ! देख इस दुनिया की खुबसूरती , पहले तो वो अति हर्षाई , पर देख इंसान की दशा , उस परी की आँख भर आई ! भूखे-बेबस लोगों की तृष्णा उसे रास ना आई ! दुःख से अनजान उस परी के मन में , एकदम मायूसी छाई ! उसने सोचा – ये कैसी है दुनिया , जहाँ ऊंच-नीच की है खाई ! रिश्तों की उधेड़बुन में , यहाँ लड़ते है भाई-भाई ! ईर्ष्या-द्वेष की भावना यहाँ , इंसान के मन में है समाई ! धर्मं और मज़हब के नाम पर , यहाँ होती है बस लडाई ! मासूम गरीब बच्चों ने यहाँ , उतरन में हर खुशी है पाई ! ज़िन्दगी की हर खुशी पर इनकी , ग़मों की परछाई है छाई ! ये कैसी है दुनिया , ये कैसे है लोग , कैसी है ये पीर पराई , देख इस दुनिया की हालत , ‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ ना पाई ! जब इंसानों की इस दुनिया से , परियों के देश वो लौट आई ! तब केवल एक ही बात , उसके मन में है आई ! काश, इंसानों की दुनिया भी , हम परियों-सी होती ! न होता ऊंच-नीच का भेद , न होता कोई जातिवाद , न होती भूख और बेबसी , न होता कोई विकार ! मर्म देख इस दुनिया का , उस नन्ही परी की आँख भर आई ! जो अब तक थी ग़मों से अनजानी , वो आज उसकी परिभाषा है जान पाई ! – सोनल पंवार ©Sonal Panwar " प्रिंछी-एक परी की कहानी " #AugustCreator
Di Pi Ka
गजब का किस्मत वाला था वो... उड़ भी गया... और बस भी गया! ©Di Pi Ka #प्रेम_पंक्ति #कहनी कहानी
Gabbar Singh
कौन बनेगा बच्चा मेरा, किसको प्यार करुंगा मैं..... किसकी बहुत हिफाज़त करके बहुत लाड़ करूंगा मैं.....!! मेरी परी की कहानी.....!! Some lines related to my life....