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Akram Tilhari

बज़्में अकरम तिलहरी की जानिब से तिलहर के बुज़ुर्ग शायर जनाब हमीद तिलहरी साहिब को ऐज़ाज़ से नवाज़ा गया ..

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 बज़्में अकरम तिलहरी की जानिब से तिलहर के बुज़ुर्ग शायर जनाब हमीद तिलहरी साहिब को ऐज़ाज़ से नवाज़ा गया ..

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जयपुर की सच्ची कहानी #न्यूज़ #न्यूज़ #न्यूजपेपर #विचार

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DBN Agency

न्यूज़ की स्पीच #न्यूज़

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Akram Tilhari

[[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]

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ये  खुदा   जाने  क्या   ख़बर  मुझ  को 
कैसा  मिलता  है  हम  सफर  मुझ को 

रेज़ा   रेज़ा   मैं    बिखर    जाऊँ   गा 
आप  ने  छोड़  दिया   गर   मुझ  को 

बे  वफा  मुझ   को  कह  रहे  हो   तुम 
तुम  पे  लगता  है कुछ असर मुझ को 

तूने   अपना    जो     बनाया     होता 
फिरना  पड़ता  ना  दर  बदर मुझ को 

मैं   तो   दिल    में    तुम्हारे   रहता  हूँ 
ढूंढ़ते    क्यूँ    इधर   उधर    मुझ   को 

सारे     आलम    के    ज़र्रे    ज़र्रे    में 
वोही  आता  है  बस  नज़र  मुझ  को 

वक़्ते   ग़ुरबत   में  ये   बता  अकरम 
क्या  झुकाना   पड़ेगा  सर   मुझ को [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]

Akram Tilhari

[[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]

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जिन  पे   दौलत   का  नशा  तारी  है 
उनकी  हर    बात   में    मक्कारी   हैं 

देख     ले      इकतेदार      में       तेरे 
बे   कसूरों   का     क़त्ल    जारी    है 

पहले ख़िदमत थी अदब  की लेकिन 
शायरी    अब   तो     कारोबारी    है 

उसका   सब    एहतेराम    करते   हैं 
जिस  में   दर   अस्ल    इन्केसारी  है 

तुम  सा  कोई   हसीं  मिला  ही  नहीं 
देख  ली   हम    ने   दुन्या    सारी   है 

एक  तिन्का   भी   ग़ैर  का   रख   लूँ 
इतनी    जुरअत    कहाँ    हमारी   है 

प्यार  करते  हो दिल  से क्या अकरम 
या  फक़त    ये   भी    दुन्या   दारी  है [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]

Akram Tilhari

[[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]

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ना जाने  किस  ने  मुझ  को दिवाना  बना दिया 
आकर के मुझ को ख़्वाब में जलवा दिखा दिया 

अहदे  वफा  को तोड़  कर  जब वो चला गया 
मैंने  भी उस  के  सारे  ख़तों  को  जला  दिया 

हम  लौट   आये   जंग  के  मैदान   से   मगर 
दुश्मन को मज़ा  मौत का हम ने  चखा दिया 

रहते  नहीं  हैं   दोस्तो  आँगन  में  अपनी  ही 
किस ने ये इन परिंदों को उड़ना सिखा दिया 

पहुँचा नहीं तू इश्क़ की मंज़िल तलक ऐ दिल 
हाँ  इस  लिये  तो उन  का तमाशा बना दिया 

अकरम मैं आज कहता तो दिल खोल कर मगर 
ताला   किसी  ने    मेरी   ज़बाँ  पर  लगा   दिया [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]
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