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Taraana
सुन कर कोई शायरी, कोई गज़ल, कोई कविता, दिल करता है कि कहूँ तुमसे कहूँ तुमसे की मैं नही हूँ उस कविता वाली लड़की की तरह ना मैं हो सकती हूँ उतनी बेवफ़ा तुमसे ना ही कर सकती हूँ उतना अद्भुत प्रेम ना ही उस गज़ल वाली लड़की की तरह ढा सकूंगी कहर कभी और ना उस शायर की कल्पना की तरह उतार सकूंगी उतनी ही मनमोहक तस्वीर तुम्हारे हृदय में मैं कुछ नही कर सकूंगी हो सकता है जब तुम ग़म में रहो तब बस एक पल को पलकें भींग जाएं मेरी हो सकता है जब तुम झूम उठो तब बस हल्का सा मुस्कुरा दूँ मैं क्योंकि मेरे पास कुछ भी नही बस कुछ अश्क, कुछ मुस्कुराहटें जो तुम्हारी धड़कनों को भांप कर रम सकेंगी उनमें इस से ज़्यादा मेरे पास कुछ भी नही सुन कर कोई शायरी, कोई गज़ल, कोई कविता, दिल करता है कि कहूँ तुमसे कहूँ तुमसे की मैं नही हूँ उस कविता वाली लड़की की तरह ना मैं हो सकती हूँ उत
sampu janagal
एक ज़रा सी प्रेम कहानी हम लड़कों की क़िस्मत में है आग बहुत सी थोड़ा पानी एक किताबों की अलमारी में थोड़े खुशबू के रेशे कुछ घण्टों की नींद उसी में दुनियाभर के ख्वाब बुरे से मीरा के भजनों को घेरे रहती है कबीर की बानी उम्मीदों की लम्बी सूची जाने पूरी होगी कैसे एक बड़ा बाज़ार सामने छोटी जेब ज़रा से पैसे चेहरे पर तैरा करती है एक झेंप जानी पहचानी एक लड़ाई अंतहीन है सारी उम्र इसी को दे दी गोलों को काला करने में दाढ़ी तक आ गयी सफेदी डीपी तक में रखनी पड़ती है कोई तस्वीर पुरानी ©sampu janagal #फेसबुक वाली कविता
Tanendra Singh Khirjan
सहजता, सरलता एवं बंदगी कुछ और थी, लोग थे पुराने मगर जिंदगी कुछ और थी, सुख सुविधाएं परिपूर्ण है मगर कहीं थोड़ा अभाव भी, जीने का सलीका और बदल दिया स्वभाव भी। न जाने क्यूं ये जिंदगी इंसान से खेलती हैं, बचपन और जवानी तो अब बुढ़ापा झेलती हैं, लोग भूल गए हैं बड़ों की बातें बूढ़ों के पास बैठना और उनकी यादें। दिन-ब-दिन हम खो रहे हैं जीवन के सुखद आभास को। न जाने क्यूं जमीं पर रहकर हम भूल रहे आकाश को।। इससे पहले कि हम गुलाम हो जाए, सुबह से पहले शाम हो जाए। इससे पहले कि काम तमाम हो जाए, सीख लो पुरानी बातें जो थोड़ी भी काम आ जाए ये रीति नहीं कहती कि हम पाश्चात्य के गुलाम हैं। हम अटल है भारत देश के कलाम हैं। कविता (प्रेरित करने वाली)
Parasram Arora
पुरानी गाथाये इतिहास बन चुकी और पुराने गीत भी तिथि बाह्य हो चुके क्योंकि उनमे पीड़ा का दंश था और आज के सन्दर्भॉ से मेल मिलाप भी उनमे नही दिख रहा था लेकिन अब तो काफ़ी बदलाव आ चुका है अब नए शब्द नए छंद नए उदगारो का बोलबाला है नए अलंकरण और ताज़गी भरे विशेषण हमारी अभिव्यक्तियों क़ो लिपिबाद्द कर उन् गीतो क़ो प्रगतिवादी कविता के बाजार मे खड़ा कर सकते है ©Parasram Arora प्रगति वादी कविता