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Babli BhatiBaisla
किसी के भी जाकर आने में बड़ा फर्क होता है पहले जैसा नहीं रह पाता फिर जो भरोसा है जब तक टूटे नहीं हिम्मत मैदान छोड़ना नहीं चाहिए आखिर तक हारने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए सखी छणमात्र के वेग को जो भी झेल जाते हैं संबंधों की वैतरणी में नौका भी पतवार भी बन जाते हैं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla वैतरणी
Parasram Arora
हा देखा है मैने नाव मे बैठ कर आगे बहती नदी को औऱ पीछे छुट ती नदी को कितना सुंदर अनुभव है इसका आरम्भ कहीं तो होगा निश्चित ही इसका अंत भी होगा आगे कहीं किन्तु आरम्भ नदी नहीं है औऱ अंत भी नदी नहीं है नदी तो वह है जो इनके मध्य मे बहती है नदी का मध्य ही नदी है
Ghumnam Gautam
प्रियजीत प्रताप
तिल तिल मरते उन्मादों में, कभी भीड़ कभी वीरानों में, हाथ धरे,पग समेट लिए हों, पर्वत,वन या सुनसानों में, गिरता रक्त अलाप रहा है, छूटता प्राण प्रलाप रहा है, शिथिल पड़े शरीर के ऊपर, उड़ता गिद्ध ठठकार करे, नोचें,खाएं अपने ही मद में, कौन उनका संहार करे? कब जागे वो आग हृदय में, कौन रोके यह रक्तप्रवाह, कौन बताए इस समर शेष में, कहाँ रावण है,राम कहाँ? -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...
Parasram Arora
ये प्रेम नही कह पायेगा अपनी कहानी कभी. सीने में दर्द है.. पर मुँह में अलफ़ाज़ कहाँ है? सीन में दिल है और धड़कन भी है. पर जीनाचाहता हूं जिसे वो जिंदगी कहाँ है? जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे बूढ़ा कर दीया जल्द इस दरमियान आई थी जवानी पर वो टिकी कहा? मौत का पैगाम तो आ चुका नज़दीक पर न जाने मरने वाला किरदार कहा है? आहों की आवाज़ भी धीमी हुई है रफ्ता रफ्ता और आंसुओं में भी अब वो रवानी कहा है? ©Parasram Arora कहाँ है?
कवि विनय आनंद
याद हैं हमको वो दिन भी मेरा इंतजार रहता था, कभी तुम कुछ न खाती थीं हमारे कुछ भी खाने तक। कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी- तुम्हें तो साथ रहना था हमारी जान जाने तक। ©कवि विनय आनंद कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी।