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KHATOLA MUSIC

जय वेदमाता गायत्री

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Vikas Sharma Shivaaya'

गायत्री माता को सभी वेदों की जननी कहा गया है- ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों का सार गायत्री मंत्र ही है... गायत्री माता से ही वेदों का जन्म ह #समाज

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गायत्री माता को सभी वेदों की जननी कहा गया है- ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों का सार गायत्री मंत्र ही है... गायत्री माता से ही वेदों का जन्म हुआ है, इसलिए गायत्री माता को वेदमाता भी कहते हैं-इनकी अराधना स्वयं भगवान शिव, श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा करते हैं, इसलिए गायत्री माता को देव माता भी कहा जाता है...,

धार्मिक कार्यों में पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए पत्नी का साथ होना नितांत जरूरी होता है, परन्तु उस समय ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्री मौजूद नहीं थीं- तब उन्होंने देवी गायत्री से विवाह कर लिया- पद्मपुराण के सृष्टिखंड में गायत्री को ब्रह्मा की शक्ति बताने के साथ-साथ पत्नी भी कहा गया है...,

इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है- इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है- इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है ... इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है...

गायत्री मंत्र की रचना विश्वामित्र ने की थी...मां गायत्री को पंचमुखों वाली भी बताया गया है जिसका अर्थ है कि यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड- जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 383 से 394 नाम 
383 गुहः अपनी माया से स्वरुप को ढक लेने वाले
384 व्यवसायः ज्ञानमात्रस्वरूप
385 व्यवस्थानः जिनमे सबकी व्यवस्था है
386 संस्थानः परम सत्ता
387 स्थानदः ध्रुवादिकों को उनके कर्मों के अनुसार स्थान देते हैं
388 ध्रुवः अविनाशी
389 परर्धिः जिनकी विभूति श्रेष्ठ है
390 परमस्पष्टः परम और स्पष्ट हैं
391 तुष्टः परमानन्दस्वरूप
392 पुष्टः सर्वत्र परिपूर्ण
393 शुभेक्षणः जिनका दर्शन सर्वदा शुभ है
394 रामः अपनी इच्छा से रमणीय शरीर धारण करने वाले

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' गायत्री माता को सभी वेदों की जननी कहा गया है- ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों का सार गायत्री मंत्र ही है... गायत्री माता से ही वेदों का जन्म ह

NickG

वीरमाता को नमन

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खूब लड़ी मर्दानी वो तो "समुन्द्र में उठती लहरे थी
जब वो तलवार उठाती थी
दुश्मन थर-थर-थर काँपते थे
युद्ध में तूफान ले आती थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी" वीरमाता को नमन

Pradeep Singh

वेदात #शायरी

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 वेदात

dr.rohit sarswati

#सुर्य ,जल वायु ,अन् ,अग्नि #विद्माता का रुप #विचार

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विद्माता का रुप
दम है अगर तुझमें ,तु सुर्य से पल दो पल नजरे मिला के दिखा ,
दम है अगर तुझमे, तु तुफानो को रोक के दिखा !
दम है अगर तुझमे तु जलती अग्नि मे जलकर दिखा !
दम है अगर तुझमे, तु बिन पानी के रहकर दिखा !
दम है अगर तुझमें,तु बिना अन् के भुख मिटा के दिखा !
                सुर्य ,वायु ,अगनि ,पानी ,अन्

©rohit sarswati #सुर्य ,जल वायु ,अन् ,अग्नि

#विद्माता का रुप

dr.rohit sarswati

# उस विद्माता को भुल जाना # खुद ही को खुदा समझ लेना # COVIDVaccine

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उस विद्माता के चरणों के आगे ये कोरोना
एक धूल के समान है !
   बस थोड़ी सी कष्टी देकर ,
वह हम सबको कुछ समझना चाहाता है !

©rohit sarswati # उस विद्माता को भुल जाना # खुद ही को
खुदा समझ लेना #

#COVIDVaccine

Rj Rupal Rajput

न भूतो न भविष्यति सदा शिव सर्व वरदाता शिव सदा सहायते 🙏 🌼😇 #om namah shivaya #lordshiva #Prayers #blessings #Divine #Holy #devotee #Faith # #positive_vibes #nojotostreaks

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Parijat P

सजीव प्राणों की माला = हम इंसान पन्नाधाय = वो वीरमाता जिसने मेवाड़ के वंश को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दिया.. 🤗❤ maa dedicate to al #Poetry #Mother #Maa❤ #mumma #Aai #amma #maasa

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माँ को बस माँ की ही उपमा दे सकते हैं 
उसके बराबर पूरे जगत में कोई नहीं ...

यूँ तो दुनिया में हजारों जादूगर ,जोहरी ,शिल्पकार हैं 
पर माँ सी सजीव प्राणों वाली माला किसी ने पिरोई नहीं ...

धूप से बचाव और ठंडी से राहत मिल जाती है हर कपड़े में 
पर माँ के आँचल सी सूकून भरी दूजी कोई रज़ाई नही...

वीरता, बलिदान, ममता हर गुण होगा हर व्यक्ति में 
पर माँ पन्नाधाय सी स्वामिभक्ति, ममता किसी ने निभाई नहीं ...

पल भर में साथ छोड़, मन से दूर चले जाते हैं लोग 
माँ के अलावा खुशियों की झोली यहाँ किसी ने सिलाई नहीं ...

सर से हाथ फेरकर हर तकलीफ़ दूर करती हैं वो
बड़े से बड़े वैद्य के पास भी उसके जैसी दवाई नहीं ... 

 रब सदा खुश रखना दुनिया की हर माँ को
तेरा भी अस्तित्व धुँधला जायेगा अगर ना होगी माई कही...

©Parijat  P सजीव प्राणों की माला = हम इंसान 
पन्नाधाय = वो वीरमाता जिसने मेवाड़ के वंश को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दिया..
🤗❤ maa dedicate to al

sandy

#स्पर्श वेदा हल्ली कुणाशी बोलायला मागत नव्हती.नेहमी आईबाबांबरोबर खूप गप्पा मारणारी वेदा गप्प गप्प राहू लागली होती. वेदाचा वाढदिवस जवळ आला #story #nojotophoto

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 #स्पर्श

वेदा हल्ली कुणाशी बोलायला मागत नव्हती.नेहमी आईबाबांबरोबर खूप गप्पा मारणारी वेदा गप्प गप्प राहू लागली होती.

वेदाचा वाढदिवस जवळ आला

Vikas Sharma Shivaaya'

श्री सूर्य चालीसा ॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग, पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ #समाज

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श्री सूर्य चालीसा               
                      ॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
सूर्यदेव का शरीर स्वर्ण रंग का है व कानों में मकर के कुंडल हैं एवं उनके गले में मोतियों की माला है। पद्मासन होकर शंख और चक्र के साथ सूर्य भगवान का ध्यान लगाना चाहिए।

॥चौपाई॥

जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
हे भगवान सूर्य देव आपकी जय हो, हे दिवाकर आपकी जय हो। हे सहस्त्राशुं, सप्ताश्व, तिमिरहर, भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता हंस, विभाकर, विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, विष्णु रुप विरोचन, अंबर मणि, खग और रवि कहलाने वाले भगवान सूर्य जिन्हें वदों में हिरण्यगर्भ कहा गया है। सहस्त्रांशु प्रद्योतन (देवताओं की रक्षा के लिए देवमाता अदिति के तप से प्रसन्न होकर सूर्य देव उनके पुत्र के रुप में हजारवें अंश में प्रकट हुए थे) कहकर मुनि गण खुशी से झूमते हैं।

अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

 सूर्य देव के सारथी अरुण हैं, जो रथ पर सवार होकर सात घोड़ों को हांकते हैं। आपके मंडल की महिमा बहुत अलग है। हे सूर्यदेव आपके इस तेज रुप, आपके इस प्रकाश रुप पर हम न्यौछावर हैं। आपके रथ में उच्चै:श्रवा (घोड़े की प्रजाति जिसका रंग सफेद होता है जो उड़ते हैं और तेज गति से दौड़ते हैं देवराज इंद्र के पास यह घोड़ा होता था, सागर मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में एक उच्चै:श्रवा घोड़ा भी था जिसे देवराज इंद्र को दिया गया था।) के समान घोड़े जुते हुए हैं, जिन्हें देखकर स्वयं इंद्र भी शर्माते हैं। मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य, अर्क, खग, कलिकर पौष माह में रवि एवं आदित्य नाम लेकर और हिरण्यगर्भाय नम: कहकर बारह मासों में आपके इन नामों का प्रेम से गुणगान करके, बारह बार नमन करने से चारों पदार्थ अर्थ, बल, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है व दुख, दरिद्रता और पाप नष्ट हो जाते हैं।

नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥

सूर्य नमस्कार का चमत्कार यह होता है कि यह भगवान सूर्यदेव की कृपा पाने का एक आसान तरीका है। जो भी मन लगाकर भगवान सूर्य देव की सेवा करता है, वह आठों सिद्धियां व नौ निधियां प्राप्त करता है। सूर्य देव के बारह नामों का उच्चारण करने से हजारों जन्मों के पापी भी मुक्त हो जाते हैं। जो जन आपकी महिमा का गुणगान करते हैं, आप क्षण में ही उन्हें शत्रुओं से छुटकारा दिलाते हो। जो भी आपकी महिमा गाता है धन, संतान सहित परिवार में समृद्धि बढ़ती है, बड़े से बड़े मोह के बंधन भी कट जाते हैं।

अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

भगवान श्री सूर्यदेव अर्क के रुप में शीश की रक्षा करते हैं अर्थात शीश पर विराजमान हैं, तो मस्तक पर रवि नित्य विहार करते हैं। सूर्य रुप में वे आंखों में बसे हैं तो दिनकर रुप में कानों अर्थात श्रवण इंद्रियों पर रहते हैं। भानु रुप में वे नासिका में वास करते हैं तो भास्कर रुप सदा चेहरे के लिए हितकर होता है। सूर्यदेव होठों पर पर्जन्य तो रसना यानि जिह्वा पर तीक्ष्ण अर्थात तीखे रुप में बसते हैं। कंठ पर सुवर्ण रेत की तरह शोभायमान हैं तो कंधों पर तेजधार हथियार के समान तिग्म तेजस: रुप में। भुजाओं में पुषां तो पीठ पर मित्र रुप में त्वष्टा, वरुण के रुप में सदा गर्मी पैदा करते रहते हैं। युगल रुप में रक्षा कारणों से हाथों पर विराजमान हैं, तो भानुमान के रुप में हृदय में आनन्द स्वरुप रहते हुए उदर में विचरते हैं। नाभि में मन का हरण करने वाले अर्थात मन को मोह लेने वाले मनोहर रुप आदित्य बसते हैं, तो वहीं कमर में मन मुदभर के रुप में रहते हैं। जांघों में गोपति सविता रुप में रहते हैं तो दिवाकर रुप में गुप्त इंद्रियों में। पैरों के रक्षक आप विवस्वान रुप में हैं। अंधेरे का नाश करने के लिए आप बाहर रहते हैं। सहस्त्राशुं रुप में आप प्रकृति के हर अंग को संभालते हैं आपका रक्षा कवच बहुत ही विचित्र है।

अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
जो भी व्यक्ति भगवान सूर्य देव को अपने मन में रखता है अर्थात उन्हें स्मरण करता है उसे दुनिया में किसी चीज से भय नहीं रहता। जो भी व्यक्ति सूर्यदेव का जाप करता है उसे किसी भी प्रकार के चर्मरोग एवं कुष्ठ रोग नहीं लगते। सूर्यदेव पूरे संसार के अंधकार को मिटाकर उसमें अपने प्रकाश से आनन्द को भरते हैं। हे सूर्यदेव मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं क्योंकि आपके प्रताप से ही अन्य ग्रहों के दोष भी दूर हो जाते हैं। इन्हीं सूर्यदेव के धर्मराज के समान पुत्र हैं अर्थात भगवान शनिदेव जो धर्मराज की तरह न्यायाधिकारी हैं। हे दिनमनि आप धन्य हैं, देवता, ऋषि-मुनि, सब आपकी सेवा करते हैं।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥

जो भी नियमपूर्वक पूरे भक्तिभाव से सूर्यदेव की भक्ति करता है, वह भव के भ्रम से दूर हो जाता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जो भी आपकी भक्ति करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। जिन पर आपकी कृपा होती है, आप उनके तमाम दुखों के अंधेरे को दूर कर जीवन में खुशियों का प्रकाश लेकर आते हैं। माघ माह में आप अरुण तो फाल्गुन में सूर्य, बसंत ऋतु में वेदांग तो उद्यकाल में आप रवि कहलाते हैं। बैसाख में उदयकाल के समय आप भानु तो ज्येष्ठ माह में इंद्र, वहीं आषाढ़ में रवि कहलाते हैं। भादों माह में यम तो आश्विन में हिमरेता कहलाते हैं, कार्तिक माह में दिवाकर के नाम से आपकी पूजा की जाती है। अगहन (कार्तिक के बाद और पूस के पहले का समय) में भिन्न नामों से पूजे जाते हैं तो पूस माह में विष्णु रुप में आपकी पूजा होती हैं। मलमास या पुरुषोत्तम मास (जब सूर्य दो राशियों में सक्रांति नहीं करता तो वह समय मलमास कहलाता है ऐसा अवसर लगभग तीन साल में एक बार आता है) में आपका नाम रवि लिया जाता है।

॥दोहा॥

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

जो भी व्यक्ति भानु चालीसा को प्रेम से प्रतिदिन गाता है अर्थात इसका पाठ करता है, उसे सुख-समृद्धि तो मिलती ही है, साथ ही उसे हर कार्य में सफलता भी प्राप्त होती है।

        ॥इति श्री सूर्य चालीसा ॥ 

भैरव बाबा चमत्कारी मंत्र :-
 ” ॐ कर कलित कपाल कुण्डली दण्ड पाणी तरुण तिमिर व्याल
यज्ञोपवीती कर्त्तु समया सपर्या विघ्न्नविच्छेद हेतवे
जयती बटुक नाथ सिद्धि साधकानाम
ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः “

🌹बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🙏

©Vikas Sharma Shivaaya' श्री सूर्य चालीसा               
                      ॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
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