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Manmohan Dheer
भीतर गहरे वन का एकांत भी एक अनुभव है वहां प्रकृति संग आपका इक संयोजन रहता है रिक्त होने का अवसर भी पग पग पर बहता है चीत्कारें भी जहां खो जाती निर्जन गहन वन में तुम भी अपनी पीड़ा उगल दो अवसर कहता है . भीतर गहरे वन का एकांत भी एक अनुभव है वहां प्रकृति संग आपका इक संयोजन रहता है . धीर संयोजन
Ek villain
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और स्वाधीनता के लिए भारतीयों का भागीदारी प्रयास आदरणीय तक इतिहास ही माने जा सकते हैं इस संपूर्ण घटनाक्रम का चेत्रफल इतना व्यापक है कि वह स्वस्तिक इतिहास लेखन में भारतीय स्वाधीनता की गाथा सर्वाधिक लोकप्रिय है परंतु विभिन्न प्रकार के इतिहास लेखन ओं की प्रवृत्तियों में स्वाधीनता की गाथा की चौपट कथा प्रस्तुत की है उसके फल स्वरुप देश की स्वाधीनता में जिन्होंने स्वर स्वर कर दिया है उन्होंने उनकी भागीदारी को न्याय नहीं मिला निश्चित ही इतिहास और इतिहास का न्याय और न्यायाधीश की भूमिका में ना हो सकता है परंतु न्याय होना उसका मोल एक धर्म है चोरा चोरी को शायद इस पद की आवश्यकता है यदि इस घटना के विभिन्न पक्षों को देखा जाए तो कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यह एक स्थानीय घटना है जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास पर व्यापक प्रभाव दल्ले वार्ड 18 57 के प्रयास के पश्चात भारतीयों ने निरंतर अपने मित्र भूमि को मुक्त कराने के लिए अनेक अयोध्या दी साम्राज्यवादी इन बलिदानों को अपने दस्तावेज में उग्रवादी या भारतीय तिहार कहे तो आज अंबा नहीं पश्चिमी विद्या से उपजा भारतीय इतिहास लेखन उनके प्रयासों का समर्थन को अनदेखा करें तो उनकी ही दृष्टि और लिखने में ऐसा क्यों समझने की आवश्यकता है जिनके अनेक अनुसार जॉर्ज वॉशिंगटन के रहे क्रांतिकारी महान थे ©Ek villain #राष्ट्रीय आंदोलन में प्रतिरोधक का नया मोड़ #roseday
Kailash Yede
नीम का पानी हूं, प्रतिरोध तो करूंगा ही. बे -स्वाद हूं, कड़वा होना चाहता हूं प्रतिरोध
bharti kashyap
तजुर्बा कहता है कि शब्दों का भी तापमान होता है.. ये शुकून भी देते हैं, और जला भी देते हैं... #शब्दों का संयोग...
mukeshmeena
#5LinePoetry गली से गुजरते हुए सब्जी वाले ने मकान की घंटी का बटन दबाया। दरवाजा खोलकर बाहर आई महिला ने देखा। "बीबी जी ! सब्जी ले लो । बताओ क्या- क्या तोलना है। कई दिनों से आपने सब्जी नहीं खरीदी ,कया कोई और देकर जा रहा है?" सब्जी वाले ने कहा कहा। "रुको भैया! मैं आती हूँ।" उसके बाद महिला घर से नीचे उतर कर आई और सब्जी वाले के पास आकर बोली - "भैया ! तुम हमारी घंटी मत बजाया करो। हमें सब्जी की जरूरत नहीं है।" "कैसी बात कर रही हैं बीबी जी ! सब्जी खाना तो सेहत के लिए बहुत जरूरी होता है। किसी और से लेती हो क्या सब्जी ?" सब्जीवाले ने कहा। "नहीं भैया! उनके पास अब कोई काम नहीं है। और किसी तरह से हम लोग अपने आप को जिंदा रखे हुए हैं। जब सब ठीक होने लग जाएगा, घर में कुछ पैसे आएंगे, तो तुमसे ही सब्जी लिया करूंगी। मैं किसी और से सब्जी नहीं खरीदती हूँ। तुम घंटी बजाते हो तो उन्हें बहुत बुरा लगता है, उन्हें अपनी मजबूरी पर गुस्सा आने लगता है। इसलिए भैया अब तुम हमारी घंटी मत बजाया करो।" महिला कहकर अपने घर में वापिस जाने लगी। "ओ बहन जी ! तनिक रुक जाओ। हम इतने बरस से तुमको सब्जी दे रहे हैं । जब तुम्हारे अच्छे दिन थे, तब तुमने हमसे खूब सब्जी और फल लिए थे। अब अगर थोड़ी-सी परेशानी आ गई है, तो क्या हम तुमको ऐसे ही छोड़ देंगे ! दो मिनिट रूकिये; और सब्जी वाले ने एक थैली के अंदर टमाटर , आलू, प्याज, घीया, कद्दू और करेले डालने के बाद धनिया और मिर्च भी उसमें डाल दिया । महिला हैरान थी। उसने तुरंत कहा – "भैया ! तुम मुझे उधार सब्जी दे रहे हो, कम से कम तोल तो लेते, और मुझे पैसे भी बता दो। मैं तुम्हारा हिसाब लिख लूंगी। जब सब ठीक हो जाएगा तो तुम्हें तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगी।" महिला ने कहा। "वाह..... ये क्या बात हुई भला ? तोला तो इसलिए नहीं है कि कोई मामा अपने भांजी -भाँजे से पैसे नहीं लेता है। और बहिन ! मैं कोई अहसान भी नहीं कर रहा हूँ । ये सब तो यहीं से कमाया है, इसमें तुम्हारा हिस्सा भी है। गुड़िया के लिए ये आम रख रहा हूँ, और भाँजे के लिए मौसमी । बच्चों का खूब ख्याल रखना। ये बीमारी बहुत बुरी है। और आखिरी बात सुन लो .... घंटी तो मैं जब भी आऊँगा, जरूर बजाऊँगा।" और सब्जी वाले ने मुस्कुराते हुए दोनों थैलियाँ महिला के हाथ में थमा दीं। अब महिला की आँखें मजबूरी की जगह स्नेह के आंसुओं से भरी हुईं थीं। कुछ लोग अपने नहीं होते हुये भी अपनो से ज्यादा प्यारे व सहयोगी होते हैं, . . ©mukeshmeena संयोग का हाथ उठाऐ #lockdown2021