तुम्हारे मन की,
शांति हेतु आवश्यक है
मेरे मन तक तुम्हारे
व्यथित मन की बात का पहुंचना,
मेरे द्वारा उसे समझा जाना
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रजनीश "स्वच्छंद"
मन को देखो टटोलकर।।
जीवनकाल के उत्तरार्ध पर, मन को मैं हूँ टटोलता,
ज्ञान भिक्षा जो मिली थी, मुख खोल मैं हूँ बोलता।
दीर्घकालिक हूँ नहीं मैं #Poetry#Quotes#Life#kavita