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Krishna Rathod
थोडेसे जरी दुःखात एखाद बाळाला पाहिलं तर त्यांचं रक्त असं सळसळ करायला लागायच. बाळ म्हणजे तुम्हाला एखादं खेळणं वाटलं का हे तिचं ब्रीदवाक्य .. स्वतः ही त्याच परिस्थितीतुन गेलेल्या असून जगातल्या प्रत्येक अनाथ बाळाला आपलं लेकरू मानणारी सिंधुताई सपकाळ यांचा रुदयविकाराने मृत्यू झाला..आणि बघता बघता आंनथाची आई सर्वांना सोडून गेली......... माईस भावपूर्ण श्रद्धांजली..... 💐 ©Krishna Rathod सिंधुताई सपकाळ यांचा रुदयविकाराने मृत्यू #Light
Tarun tilwaliya
शहरो मे तो बारूदो का मौसम है। .शहरो मे बारुदो का मौसम है।।।।।।।। गाँव मे देखे अमरुदो का मौसम है ©Tarun tilwaliya अम रुदो
Parasram Arora
ज़ब भी तुम हंसोगे तुम्हारी हंसी तुम्हारे चेहरे को वीजातीय बना देगी क्योंकि अब तक तुम्हारा साथ रहा हैँ रुदन से और तुम्हारा हंसी से कभी परिचय ही नही हुआ अगर गल्ती सेंभी तुम हँसने की कोशिश करोगे तों उस हंसी पर तुम्हारे रुदन की छाप जरूर होगी.... फिर तुम्हारी हंसी मे न नेसर्गीकता होगी नु कोई स्वछंदता की झलक दिखाई देगी क्योंकि वो हंसी तुंहरे ह्रदय की गहराइयों से नही निकल कर ... तुम्हारे आहत ह्रदय की छटपटाहट को छूती हुई तुम्हारे दर्द की पसलियो से रिस्ती हुई बाहर आई हुई लगेगी ©Parasram Arora हंसी और रुदन #Seating
Pushpendra Pankaj
दोष नहीं है देना किस्मत को , संभवतः कर्मों में रही कमी । अब उठ ,कर पुन: प्रयास , व्यर्थ है आँख में लाना नमी ।। ©Pushpendra Pankaj रुदन ना कर ,प्रयास कर
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी कोशिशें हमारी रंगत लाती नही दर दर भटकाती राह कोई बनाता नही घर घर सियासतें पक चुकी मजहबो जाति भाषा की खिचड़ी देश मे दीवार खड़ी कर चुकी रोजी रोटी शिक्षा मांग ना ले सियासी पार्टियों में बाप बेटे बट चुके बहसें होती चुनावी समर पर रोजगार महगाई बढ़ चुके वायदा खिलाफी रोज होती लूट के कानून बन चुके आंदोलन जलूस जलसे करते रहते सत्ताएँ अब हिलती नही फूट के बीज जो बो दिये जनता की बगावत से सरकारे अब डरती नही झोपड़ी रुदन करती रहती पेशेवरों का पेट सत्ताएँ भरती रही प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" झोपड़ी रुदन करती रहती #meltingdown
Anand Singh
उलझे-उलझे से हैंं प्रेम के व्याकरण, झरझारते से झरने बने ये नयन, तुम किसी वेद की श्लोक जैसी गढ़ी, मैं तक़ी मीर के नज़्म का हूँ रुदन ।। #प्रेम #श्लोक #नज़्म #रुदन #मीर
Durgesh Tiwari..9451125950
वैधानिक रुदन- 🕉️🙏🙏.. मेरा मानना हैं कि तात्विक पुरुषों के रुदन हेतु कम से कम एक दिन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ताकि वे भी "पुरुष रुदन"के दिवस पर अपनी वेदना को समाजोन्मुखी कर के पुरुषों के पाषाण ह्रदय के रूढ़िवादी आवरण का परित्याग कर सके। अगर ये भी न हो सके तो कम से कम एक हताश पुरुष के लिए एक ऐसा कन्धा जरूर होना चाहिए जिस पर वो अपना माथा टेक के रो सके। तत्कालीन समाज मे इस मामले स्त्रियों को अपनी अंतर्वेदना प्रकट करने के बहुत से कंधे होते है जैसे- माँ,पिता,भाई,बहन,पति और एक विशुद्ध प्रेमी। परन्तु एक पुरूष इसलिए अपना रोना नही रोकता की वह बहुत मजबूत और पाषाण ह्रदय वाला है वह इसलिए अपना रोना रोकता हैं कि उसके आसपास कमजोर कन्धों का कारवां होता हैं। एक पिता कंधे पर अपने बेटे को गांव का पूरा मेला दिखाने में कभी नही थकता परन्तु बेटे के आंखों में आँसू देखकर एक पिता खुद रोने के लिए कन्धा तलाशने लगता हैं। खैर...मुझे लगता हैं कि पुरुषों के रोने का उचित समय एकांत ही हैं जिसमे वे स्वयं से ही प्रश्न करे और स्वयं ही अपने भावो के अनुरूप उत्तर भी दे। पुरुषों में रोने की कला वैधानिक होती हैं ये अपनी वेदना से किसी की स्वतंत्रता पर आंच नही आने देते,पुरुष छुप छुपकर,घुट घुटकर,और मुँह पर हाथ रख कर रोते हैं ताकि इनकी रोने की कला गैर-वैधानिक न हो जाये। मैं समझता हूँ कि जब मुझे जीते जी ये समाज रोने के लिए कन्धा नही दे सका तो मरने के बाद क्या कन्धा देगा। मुझें खुशी हैं कि मैं तुम्हारी स्मृति में अपनी अंतर्वेदना लिख रहा हूँ और तुम्हारे ग़ैर मौजूदगी में मेरी यही लिखी गयी पंक्तियां मेरे मरने के बाद मुझे कन्धा देगी। कहो! कैसी हो तुम उस जहां में..... मैं इस जहां से प्रेम अर्पण कर रहा हूँ। सादर प्रणाम। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 ©Durgesh Tiwari..9451125950 वैधानिक रुदन(S🕉️D)
Shilpa yadav
ग़रीबी को देखा है नजदीकी से बस पर उसके भोले चेहरे को महिला के मटमैले कपड़ों से बच्चे के चिथड़े हुए कपड़े से पथराईं सी आंखे थी उनकी रूदन की आवाज लिए बस अनायास ही न जाने क्यूं आंखों में आंसू आए एहसास हुआ उस क्षण दरिद्रता का समुद्र मंथन नीलाम हो गया अमीरों का शहर क्या बिखर गयीं उम्मीदें उस क्षण अपादमस्तक कंपकंपा उठें जब महिले ने भूख से अपने प्राण त्याग दिए हाय!है ऐसी मानवता पर जो खड़े स्तंभो सा देख रहे नेता भी अपने हाथ को सेंक रहे ग़रीबों को सरेआम बेच रहे। ©Shilpa yadav #poor #गरीबी #जीवनअनुभव #वेदना #कलह #रुदन
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
कल देखा रावण कौ ऐसे हाथों जलतेे, जो श्री राम, के मर्यादा का करते है ना जो अनुसरण, था रखा उसने पहन चौला राम का लेकिन था ना वो अभिमानी लंकेश के संयम से अवगत, देख अमर्यादित हाथों में राम का धनुष दशानन भी बोल पड़ा, किस निर्लज्जता से तुम मुझे जलाने आये हो, मैने बैशक सीता हरण का कर्म कु था किया, लेकिन उसकी सजा तो मैनें लाखो बर्ष पहले अपने प्रियजनो महल अट्टालिका खोकर सीताप्रिय के हाथों था पाया, तुम जिस विजय के बदले ये आडम्बर रचाते हो, तुम्हें पता भी वो रास्ता मैनें क्यों था अपनाया, कटी नाक लिए खड़ी थी भगिनी (बहन) भरी सभा में मेरी, सूर्पनखा ने वृतांत विस्तार से था मुझे बताया, मैं दानव हठी था तो क्या? लेने भगिनी के अपमान का प्रतिशोध था मुझे अधिकार नहीं, था मुझे ज्ञात की अवतार है श्री राम भगवान का, था ना जीत मैं सकता जिससे, फिर भी मैनें अपने भगिनी के अपमान का प्रतिशोध लेने का था ठाना, बेशक हरण सीता का था किया, लेकिन मर्यादा मैनें भी था दिखलाया, संयमित होकर ही पास था उसके आया, तो सुनो ऐ पाखंडीयो, वेदना मेरी इससे कुछ और हो नहीं सकता, जो पाया था मोक्ष लाखो बर्ष पहले मरकर श्री राम के हाथों सत्ययुग में, उसे जलना पड़ता है हर साल अमर्यादित हाथों कलयुग में। पतित पावन राम ना बन सको तो रावण बनकर हि आना, नारी के सम्मान में संयम तनिक मुझसा तो दिखाना, फिर चाहो तो हर साल दशहरे में ही क्यों हर रोज ये आडम्बर रचाना, और तील-तील मुझे जलाना, मुझे पीड़ा नहीं जलने मे मुझे तुम बेसक जलाऔ, लेकिन राम ना सही रावण तो बन आऔ, फिर भी लगता है तुम बेहतर हो मुझसे तो, वो पड़ी अगनी वान अब मुझपर चलाऔ, और मुझे जलाकर फिर साल भर के लिए सो जाओ। ©फक्कड़ मिज़ाज अनपढ़ कवि सिन्टु तिवारी #रावण का रुदन(व्यथा) #nojotoapp #nojotohindi #nojotonews