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Afzal Sultanpuri
बात उलझी हो तो और उलझाइए नहीं, दिल लगाना चाहे भी तो लगाइए नहीं, بات الجھی ہو تو اور الجھائے نہیں دل لگانا چاہے بھی تو لگائے نہیں दुश्मनी हैं तो क्यूं है दावत का इंतजाम मैं फिर से कह रहा हूं उन्हें बुलाइए नहीं, دشمنی ہیں تو کیوں ہی دعوت کا انتظام میں فر سے کہ رہا ہوں انھ بلائے نہیں ले आए हैं क़ब्र की जानिब तो लिटा दें मिट्टी की दुआ पढ़े ग़ज़ल सुनाइए नहीं, لے ای ہیں تو قبر کی ذنب تو لٹا دیں متی کی دوا پڑھیں غزل سنائے نہیں ज़िंदा थे जब तक हमारा हाल नहीं पूछा अब मेरे मरने के बाद आसूं गिराइए नहीं, زندہ تھے جب تک ہمرا حال نہیں پوچھ اب میرے مرنے کے بعد آنسوں گرائے نہیں हम ज़िंदा थे तो कभी ईद मनाया नहीं गया हम मर चुके हैं तो झूठे मातम मनाइए नहीं, ہم زندہ تھے تو کبھی عید منایا نہیں گیا ہم مر چکے ہیں تو جھوٹھے ماتم منائے نہیں ज़िंदा रहते बदन को कपड़े नसीब ना हुए अब गुल,चादरों से मेरी क़ब्र सजाइए नहीं, زندہ رہتے بدن کو کپڑے نصیب نہ ہوئے اب گل ، چادروں سے میری قبر سجائے نہیں किसने पढ़े दुरूद, किसने कराई बख्शिश अफ़ज़ल हर एक को आप समझाइए नहीं, کسنے پڑھے درود ، کسنے کرای بخشش افضل ہر ایک کو آپ سمجھائے نہیں चिताएं जल रही हैं रात को दफनाया जा रहा लखनऊ तेजी से जल रहा है मुस्कुराइए नहीं چتایں جل رہی ہیں رات کو دفنایا جا رہا لکھنؤ تیجی سے جل رہا ہی مسکرائے نہیں ©Afzal Sultanpuri बात उलझी हो तो और उलझाइए नहीं, दिल लगाना चाहे भी तो लगाइए नहीं, بات الجھی ہو تو اور الجھائے نہیں دل لگانا چاہے بھی تو لگائے نہیں दु
Afzal Sultanpuri
बात उलझी हो तो और उलझाइए नहीं, दिल लगाना चाहे भी तो लगाइए नहीं, بات الجھی ہو تو اور الجھائے نہیں دل لگانا چاہے بھی تو لگائے نہیں दुश्मनी हैं तो क्यूं है दावत का इंतजाम मैं फिर से कह रहा हूं उन्हें बुलाइए नहीं, دشمنی ہیں تو کیوں ہی دعوت کا انتظام میں فر سے کہ رہا ہوں انھ بلائے نہیں ले आए हैं क़ब्र की जानिब तो लिटा दें मिट्टी की दुआ पढ़े ग़ज़ल सुनाइए नहीं, لے ای ہیں تو قبر کی ذنب تو لٹا دیں متی کی دوا پڑھیں غزل سنائے نہیں ज़िंदा थे जब तक हमारा हाल नहीं पूछा अब मेरे मरने के बाद आसूं गिराइए नहीं, زندہ تھے جب تک ہمرا حال نہیں پوچھ اب میرے مرنے کے بعد آنسوں گرائے نہیں हम ज़िंदा थे तो कभी ईद मनाया नहीं गया हम मर चुके हैं तो झूठे मातम मनाइए नहीं, ہم زندہ تھے تو کبھی عید منایا نہیں گیا ہم مر چکے ہیں تو جھوٹھے ماتم منائے نہیں ज़िंदा रहते बदन को कपड़े नसीब ना हुए अब गुल,चादरों से मेरी क़ब्र सजाइए नहीं, زندہ رہتے بدن کو کپڑے نصیب نہ ہوئے اب گل ، چادروں سے میری قبر سجائے نہیں किसने पढ़े दुरूद, किसने कराई बख्शिश अफ़ज़ल हर एक को आप समझाइए नहीं, کسنے پڑھے درود ، کسنے کرای بخشش افضل ہر ایک کو آپ سمجھائے نہیں चिताएं जल रही हैं रात को दफनाया जा रहा लखनऊ तेजी से जल रहा है मुस्कुराइए नहीं چتایں جل رہی ہیں رات کو دفنایا جا رہا لکھنؤ تیجی سے جل رہا ہی مسکرائے نہیں ©Afzal Sultanpuri बात उलझी हो तो और उलझाइए नहीं, दिल लगाना चाहे भी तो लगाइए नहीं, بات الجھی ہو تو اور الجھائے نہیں دل لگانا چاہے بھی تو لگائے نہیں दु
Deep bawara
तुम्हारी चूत के वलवले हो रहें है हम भी कितने सरफिरे हो रहें है चलो चल के करे चुदाई तुम्हारे चूत के द्वार खुल रहे है ©Deep bawara #Nojoto #YourQuoteAndMine #शेर #शायरी #गज़ल #ग़ज़ल
Kushal - कुशल
छलकते दर्द को होठों से बताऊं कैसे...?? ये खामोश ग़ज़ल मैं तुमको सुनाऊं कैसे...?? दर्द गहरा हो तो आवाज़ खो जाती है..... ज़ख़्म से टीस उठे तो तुमको पुकारूं कैसे...? मेरे जज़्बातों को मेरी इन आंखों में पढ़ो.... अब तेरे सामने मैं आंसू भी बहाऊं कैसे...?? इश्क तुमसे किया जमाने का सितम भी सहा.... फिर भी तुम दूर हो मुझसे मैं ये जताऊं कैसे ?? ©Kushal #खामोश ग़ज़ल मैं तुमको सुनाऊं कैसे... #gazal #Shayari #SAD
Veena Khandelwal
#ग़ज़ल मुहब्बत जब करें आँखे , इबारत ही नहीं होती। दिखावे की ज़ताने की,लियाकत ही नहीं होती। सफीने दिल लिखी मेरे ,इबारत तुम ज़रा पढ़ लो। उसे इज़हार करने की , ज़रूरत ही नहीं होती। नज़ाकत है अदाओं में,नज़ारत से भरा चेहरा। इशारों से अगर छेड़ूं , शरारत ही नहीं होती । इबादत इश्क को समझे,शिकायत हो ना इक दूजे। मुहब्बत में वहां यारों , सियासत ही नहीं होती। जहाँ दो प्यार करते दिल,दो तन इक जान हो जाये खुदा जाने बड़ी इससे , इनायत ही नहीं होती। करी माँ बाप की सेवा, खुशी दामन भरे उनके। बड़ी इससे कभी कोई , इबादत ही नहीं होती। हया आँखों में थोड़ी हो,जरा हो चाल गजनी सी। लबों मुस्कान हो ऐसी नज़ाकत ही नहीं होती। मुहब्बत पास इतनी हो,मगर कुछ बंदिशें भी हो। सम्हाले किस तरह दिल को,हिफ़ाज़त ही नहीं होती। बिखर जाये मुहब्बत जब,बसा घर भी बिखर जाये। तमन्ना हो ना जीने की ,कयामत ही नहीं होती। नज़ारत=ताजगी लियाकत=योग्यता,शालिनता ग़ज़ल
Azhar Ali Imroz
ग़ज़ल आँखे क्यों नम है सब है तो हम है हम में भी ग़म है दुनिया क्यों कम है धरती पे रन है पीने को रम है जाती तेरी जो सब के सब सम है छाती में ले कर चलते क्यों बम है तेरी जाँ ,जाँ है तूँहीं रूपम है तुझ में भी क्या है? चींटी का दम है जग में परिवर्तन तूँ कैसा लम है जो जल,जम जाए तूँ वैसा जम है फिर इस धरती पे क्यों होता धम है अज़हर अली इमरोज़ मतलब रन ----युद्ध/युद्ध का मैदान रम---विलायती शराब रूपम___सौंदर्य/सुन्दर /गुनकारी ग़ज़ल
दुर्गेश निर्झर
मतला, मकता, काफ़िया या रदीफ; मैं तो तुझे ही अश आर लिखता हूँ॥ मैं ग़ज़ल नहीं तेरा प्यार लिखता हूँ॥ ©दुर्गेश पण्डित #ग़ज़ल
Irfan Abid
ग़ज़ल غزل आपको बा-शऊर होना था दिल तो शीशा है चूर होना था آپ کو با۔شعور ہونا تھا۔ دل تو شیشہ ہے چور ہونا تھا۔ हम मुहब्बत से क्या गिला करते तुमको मिलना था दूर होना था ہم محبت سے کیا گلہ کرتے۔ تم کو ملنا تھا دور ہونا تھا۔ सारी दुनिया से मुझे फर्क़ नही तुमको मेरा ज़ुरुर होना था ساری دنیا سے مجھے فرق نہیں۔ تم کو میرا ضرور ہونا تھا۔ मानता ही नही दिले-नादां अहले-दिल थे फ़ुतूर होना था مانتا ہی نہیں دل۔ناداں۔ اہل دل تھے فتور ہونا تھا۔ वो ख़ुदा तो नही ख़ुदा की क़सम पर हसीं है गुरुर होना था وہ خدا تو نہیں خدا کی قسم۔ پر حسینی ہیں غرور ہونا تھا۔ क्यूं सज़ा पा रहा है तू आबिद तुझको तो बे-क़सूर होना था کیوں سزا پا رہا ہے تو عبد۔ تجھ کو تو بے قصور ہونا تھا۔ عرفان عابد इरफ़ान आबिद #ग़ज़ल