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राकेश मनावत"राज"

मनुकूल का लघुतम बिंदु विस्तीर्ण गगन का इंदु हु। कोटि कोटि मानव मन का हृदय सम्राट मैं हिन्दू हु। जयतु हिन्दू राष्ट्रम। कवि राकेश मनावत "राज" #विचार

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 मनुकूल का लघुतम बिंदु विस्तीर्ण गगन का इंदु हु।
कोटि कोटि मानव मन का हृदय सम्राट मैं हिन्दू हु।
जयतु हिन्दू राष्ट्रम।
कवि राकेश मनावत "राज"

Abhay Bhadouriya

तुम्हारी आंखों को देखते हुए मैंने देखा है अथाह सागर जो भरा हुआ है अनेक संभावनाओं से और जब तुम समेट लेती हो मुझे अपनी बाहों में, संसार मुझे #Hindi #प्रेम #ईश्वर #hindiquotes #hindipoetry #चाय #प्रेमपुष्प

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      तुम्हारी आंखों को देखते हुए
मैंने देखा है अथाह सागर 
जो भरा हुआ है 
अनेक संभावनाओं से
और जब तुम समेट लेती हो
मुझे अपनी बाहों में,
संसार मुझे

रजनीश "स्वच्छंद"

वेदना अंत:करण की वेदना.... तीव्र उद्वेलीत उत्छ्रीखंल मन द्रवित आँखें विचलित अंत:करण, मृग मारीचीका में उलझा मन दैविक प्रण का नीरन्तर चीर हरण

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वेदना
अंत:करण की वेदना....

तीव्र उद्वेलीत उत्छ्रीखंल मन द्रवित आँखें विचलित अंत:करण,
मृग मारीचीका में उलझा मन दैविक प्रण का नीरन्तर चीर हरण

रजनीश "स्वच्छंद"

नयी सभ्यता।। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। लुढ़कने दो पत्थरों को, टकराने दो पत्थरों को, निकलने दो चिंगारी, एक आग लगने दो, #Poetry #kavita

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नयी सभ्यता।।

चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों,
सबको आज़ाद करते हैं।
लुढ़कने दो पत्थरों को,
टकराने दो पत्थरों को,
निकलने दो चिंगारी,
एक आग लगने दो,
एक नयी सभ्यता संस्कृति,
फिर से आबाद करते हैं।
चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों,
सबको आज़ाद करते हैं।

बहने दो नदियों को,
अविरल, निर्बाध।
मत रोको,
बहने दो बिन बांध।
काट डालने दो किनारों को,
बहा ले जाने दो चट्टानों को।
बंनाने दो एक मैदान,
नए युग की जन्मस्थली का निर्माण।
फिर से हड़प्पा,
फिर से मोहनजोदड़ो,
फिर से बहने दो सिंधु को।
होने दो विस्तार,
नवपल्लवों का विकास,
फिर विस्तरित होने दो बिंदु को।
चलो एक ये पुण्य-कार्य,
सब मिल निर्विवाद करते हैं।
चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों,
सबको आज़ाद करते हैं।

बह जाने दो मेरा तेरा के भाव को,
बह जाने दो पूर्ण-आभाव को।
शीतलता पुनरावृति में है,
खण्डित हो जाने दो ठहराव को।
एक नई संस्कृति की आहट,
पड़ने दो कानों में।
जो भी काटी फसल अब तक,
पड़े रहने दो खलिहानों में।
मनुजता से पशुता की यात्रा,
कर ली है पूरी हमने।
है समय पुनरुत्थान का,
चलो फिर से गढ़ने सपने।
चलो परमात्म शून्य में,
लघुतम अति सूक्ष्म,
फिर से मिलने दो परमाणुओं को,
आरम्भ एक अनन्त का।
एक तात्विक निर्माण,
एक सात्विक निर्माण,
निर्मित होने दो धातुओं अधातुओं को,
विस्तार एक समरस पंथ का।
समा शून्य में पुनः,
एक गर्जना, एक नाद करते हैं।
चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों,
सबको आज़ाद करते हैं।

©रजनीश "स्वछंद" नयी सभ्यता।।

चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों,
सबको आज़ाद करते हैं।
लुढ़कने दो पत्थरों को,
टकराने दो पत्थरों को,
निकलने दो चिंगारी,
एक आग लगने दो,

shekhar prasoon

प्रभुता और लघुता... #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विषय लघुता विधा कुण्डलिया लघुता मानव में बहुत , लाती है बदलाव । मान और सम्मान की , देती सुंदर छाव ।। देती सुंदर छाव , यही #कविता

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विषय        लघुता 
विधा          कुण्डलिया

लघुता मानव में बहुत , लाती है बदलाव ।
मान और सम्मान की , देती सुंदर छाव ।।
देती सुंदर छाव , यही इसकी परिभाषा ।
मानव की हर पूर्ण , कराये यह अभिलाषा ।।
सुनो जिसे उपहार ,  आज मिल जाती प्रभुता ।
उस मानव में व्याप्त , सदा रहती है लघुता ।।

०१/०६/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विषय        लघुता 
विधा          कुण्डलिया

लघुता मानव में बहुत , लाती है बदलाव ।
मान और सम्मान की , देती सुंदर छाव ।।
देती सुंदर छाव , यही
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