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Àmjàď Hûßāîñ

निकाह #मस्जिद में हो___और दहेज में एक #कुरान और एक #जायनमाज़,, मिठाई में #खजूर हो ____और हक़ #महर में फजर की नमाज़ #Pehlealfaaz

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#Pehlealfaaz निकाह #मस्जिद में हो___और दहेज में एक #कुरान और एक #जायनमाज़,,
मिठाई में #खजूर हो ____और हक़ #महर में फजर की नमाज़ निकाह #मस्जिद में हो___और दहेज में एक #कुरान और एक #जायनमाज़,,
मिठाई में #खजूर हो ____और हक़ #महर में फजर की नमाज़

Yusufi Media

#Yusufi_Media #aaj_ka_paigham आज की फजर की नमाज़ से शुरू करदें #तकबीरें आख़िर 24 जुलाई की असर तक होगी! सवाब मे और बढ़ोतरी के लिए चलते फिर

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आज(20 जोलाई ) की फजर की नमाज़ से शुरू करदें 
#तकबीरें 
आख़िर 24 जुलाई की असर तक होगी!
सवाब मे और बढ़ोतरी के लिए चलते फिरते भी पढ़ते रहैं!

©Yusufi Media #Yusufi_Media #aaj_ka_paigham 
आज की फजर की नमाज़ से शुरू करदें 
#तकबीरें 
आख़िर 24 जुलाई की असर तक होगी!
सवाब मे और बढ़ोतरी के लिए चलते फिर

Surghyan

समाज की ओर नजर #Trees

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एक नशा अपनापन का भी करो।
क्या बिगङ जाएगा कुछ रुक जाने से
कम से कम कुछ तो सिखोगे।।

©Surghyan 
  समाज की ओर नजर

#Trees

Surghyan

समाज की ओर नजर #Trees

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एक नशा अपनापन का भी करो।
क्या बिगङ जाएगा कुछ रुक जाने से
कम से कम कुछ तो सिखोगे।।

©Surghyan समाज की ओर नजर

#Trees

KK Mishra

नजर नमाज नजरिया #nojotophoto

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 नजर नमाज नजरिया

CK JOHNY

हर वक्त की नमाज

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मेरे लिए तुम जिंदगी के साज़ की तरह हो
मेरे लिए तो गैब की इक आवाज़ की तरह हो। 
होंगे किसी के लिए जुम्में या पाँच वक्त की 
मुर्शिद मेरे लिए तो हर वक्त की नमाज की तरह हो। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़  हर वक्त की नमाज

Shubham Bhardwaj

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Manohar Choudhary

समाज की संकीर्णता #नारी #गौरक्षा #समाज #कविता

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Pawan Prajapati

समाज की बेबसी ####

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J P Lodhi.

#समाज की कठपुतली

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समाज की कठपुतली
सत्य में समाज की कठपुतली है नारी,
समाज ने बांधे रूढ़ियों के बंधन भारी।
कभी रिश्तों तो कभी समाज ने लूटा है,
लगता नारी से तो भगवान भी रूठा है।
सोते जागते नचाते रहते उसे बंधन सारे,
दुख की दास्तां कहते बहते अश्क खारें।
जकड़ा उसे अंधविश्वास की बेड़ियों ने,
हरपल नोचा उसको इंसानी भेड़ियों ने।
बाजारों में बेच रहे नारी को कोडियों में,
बिना मर्जी  बांध रहे बेमेल जोड़ियों में।
रहती आई , वह हमेशा शिक्षा से वंचित,
तबभी करती आई संस्कारों को संचित।
सहती आ रही जुल्म सितम पीढ़ियों से,
गिरती रही वह ऊपर चड़ती सीढ़ियों से।
नाच रही वह सदा नाच कठपुतलियों के,
प्रथाओं के धागों से जकड़ी उंगलियों  से।
JP lodhi #समाज की कठपुतली
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