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✍️ हरीश पटेल "हर"

#हर ग्राम्य जीवन

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गाँव की गलियों में  कभी घूम कर आना 
हवा  वहाँ   कैसे  लगी  अदब  से बताना

जलती  गर्मी  शहर ,धुंध नाक भर आया
गाँव  की  अमराई  श्वशन  को न भुलाना

वाहन  का   शोर , गूंजता  है  चारो  ओर
ग्राम्य कोयल की किलोर  दिल में बसाना

टैंक का सड़ा हुआ जल ,बैठ करते स्नान 
गाँव   की   सरिता  धार में  बहते  नहाना

चाय - काफी  हो गई  हो  तो  सुनो साथी
जग  माता गौ की  गोरस  घूंट  पी  जाना 

शहर  में  सगा पड़ोसी  कौन  है  कहो जी
ग्राम्य   के   लोगों  को   मध्यरात  जगाना

"हर" देहात  से  वो   जानता  स्वर्ग  कैसा 
वहाँ  अन्नदाता  के  दरस  को  तुम  पाना

,,,,,,,,,🖋️हरीश पटेल "हर"
      ग्राम - तोरन (थान खम्हरिया)
                     बेमेतरा #हर ग्राम्य जीवन

वो SabnamKhatoon

जीवन पर कविता #कामुकता

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My village

ग्रामीण जीवन।।

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NISHA SAINI

# ग्रामीण जीवन #WistfulTalks #कविता

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Rajveer Salvi

#alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...

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Alone  दासता–ए–बेरोजगार

चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में,
जुटा है एक किशोर|

कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़,
कई मिलों दूर चला आया है,
एक किशोर|

बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो,
 इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी,
 ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी,
 बहुत कुछ कह रहा है,
एक किशोर|

रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से,
इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है,
एक किशोर|

रुपयों की अहमियत और मेहनत की
 कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ,
 कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है ,
एक किशोर|

सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर,
 इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए,
अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है,
 एक किशोर|

पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो,
 कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा,
तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी  लेना, 
बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था,
पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है,
एक किशोर |

पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था ,
पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों,
 के सैलाब से जूझ रहा है,
एक किशोर |

छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे,
दीवाली भी  आ रही है,
आओगे ना आप  इस बार ,
ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का,
 कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है,
 एक किशोर |

बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की,
 चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, 
आज का हर एक किशोर |

इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है,
एक किशोर |


            लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...

Poem and Motivation with Divyanshu

आपके जीवन पर कविता । धन्यवाद। #foryou #yourpoem #Mypoem #thought

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मंजिल
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हारा नहीं मैं ना ही जीता हूं,
मैं तो केवल जिंदगी के खेल से अछुता हूं‌,
मंजिल की राहों में कंकड़ों से टकराता हूं,
थक कर भी मैं पीठ ना दिखाता हूं।

रुका नहीं मैं ना ही दौड़ता हूं,
मैं तो केवल अपनों से टुटा हूं,
पथिक बनकर चलता रहता हूं,
भय को मिटाकर निर्भय बन जाता हूं।
            
धन्यवाद।                            दिव्यांशु राय आपके जीवन पर कविता ।
धन्यवाद।
#foryou #yourpoem #mypoem
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