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नीस #Thoughts

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Rooplal Kumawat

नीसर्ग का आनंद #nojotophoto

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 नीसर्ग का आनंद

Anindya Dey

.. 🌱खुशामदीद..💞 नीसाब माने, पाठ्यक्रम, अंग्रेज़ी में कहे स्लेबस/syllabus.

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.. ये होता रहा मुसलसल फ़ाज़िल होते देखते रहे
सलीके से जीने वाले की लोग खिल्ली उड़ाते रहे..

.. अमुमन सबकी देखी बुझी ये उंच नीच की गुज़र
बदलते जहां में न बदला रवैया दानिश निसाब रहे..

.. कोशिश की बात आई तो उम्मीद के संग हो लिये
इक्ट्ठा हों इबादत को ज़ाती नफ़े के सबब मांगते रहे..
 .. 🌱खुशामदीद..💞

नीसाब माने, पाठ्यक्रम, अंग्रेज़ी में कहे स्लेबस/syllabus.

Naveen Bajgain

हां शायद यही प्यार है, क्योंकि अब खुद से ज्यादा, तुम पर जान नीसार है ।। #Quote

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शब्दिता

इश्क़ एहसास अस्त, नज़रिया-ए इल्मी नीस्त; कि बायद मुशख़्ख़स शवद। image : vaishaliba vaghela #YourQuoteAndMine Collaborating with Arjun Sinh

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प्रकृति ही प्रेम को प्रेरित , प्रकाशित और प्रसारित करती है। इश्क़ एहसास अस्त, नज़रिया-ए इल्मी नीस्त; कि बायद मुशख़्ख़स शवद।

image : vaishaliba vaghela  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Arjun Sinh

Madhav Jha

......ये हस्ती नीस्ती सब मौज-ख़ेज़ी है मोहब्बत की न हम क़तरा समझते हैं न हम दरिया समझते हैं 'फ़िराक़' इस गर्दिश-ए-अय्याम से कब काम निकला है #yqbaba #yqtales #yqhindi #yqaestheticthoughts

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यूँ अखबार में कुछ लिखा है, कुछ इस तरह ज़िन्दगी से मज़ाक हो रखा है ।
    फ़लसफ़ा क्या देना माधव , अब फ़िराक़ भी तो शायरी में झूठा है ।

क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
समझ लो साँस लेना ख़ुद-कुशी करना समझते हैं
बस इतने पर हमें सब लोग दीवाना समझते हैं
कि इस दुनिया को हम इक दूसरी दुनिया समझते हैं
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
तिरे दम भर के मिल जाने को हम भी क्या समझते हैं
उमीदों में भी उन की एक शान-ए-बे-नियाज़ी है
हर आसानी को जो दुश्वार हो जाना समझते हैं
यही ज़िद है तो ख़ैर आँखें उठाते हैं हम उस जानिब
मगर ऐ दिल हम इस में जान का खटका समझते हैं
कहीं हों तेरे दीवाने ठहर जाएँ तो ज़िंदाँ है
जिधर को मुँह उठा कर चल पड़े सहरा समझते हैं
जहाँ की फितरत-ए-बेगाना में जो कैफ़-ए-ग़म भर दें
वही जीना समझते हैं वही मरना समझते हैं
हमारा ज़िक्र क्या हम को तो होश आया मोहब्बत में
मगर हम क़ैस का दीवाना हो जाना समझते हैं
न शोख़ी शोख़ है इतनी न पुरकार इतनी पुरकारी
न जाने लोग तेरी सादगी को क्या समझते हैं
भुला दीं एक मुद्दत की जफ़ाएँ उस ने ये कह कर
तुझे अपना समझते थे तुझे अपना समझते हैं
ये कह कर आबला-पा रौंदते जाते हैं काँटों को
जिसे तलवों में कर लें जज़्ब उसे सहरा समझते हैं......  

(See Caption...)
 ......ये हस्ती नीस्ती सब मौज-ख़ेज़ी है मोहब्बत की
न हम क़तरा समझते हैं न हम दरिया समझते हैं
'फ़िराक़' इस गर्दिश-ए-अय्याम से कब काम निकला है
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