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Ek villain
हमारे देश के न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी के कारण लंबित मामले में तेजी से इजाफा हो रहा है हाल ही में जीआरपीएफ इलेक्ट्रिकल्स के मुताबिक देशभर के न्यायालय में 15 सितंबर 2021 तक लंबित मामले की संख्या 5 करोड़ से ज्यादा थी इसमें अधीनस्थ न्यायालयों में 87% मामले नीमला मृत पाए गए वहीं उच्च न्यायालय में यह आंकड़ा 12% रहा सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की संख्या 70000 से ज्यादा है देश के उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के खाली पदों के विश्लेषण से पाया गया है कि 1 सितंबर 2021 तक उनके कुल स्वीकृत पदों में 42% पद खाली थे यदि अंधों की बात करें तो 20 फरवरी 2020 तक अन्य न्यायाधीशों के प्रतिशत पद खाली थे यह आंकड़े दर्शाते हैं कि विदेशों में कार्यभार किस कदर बढ़ रहा है ऐसे में जरूरत इस बात की है कि कहीं उनकी संख्या में इजाफा किया साथी न्यायाधीशों को सोए नहीं रहती आयु बढ़ाने पर भी पुनर्विचार किया जाए वर्तमान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए स्वर्णा अनुवर्ती की उम्र 65 साल है वहीं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 साल में सोनाली रति होते हैं उल्लेखनीय है कि बेल्जियम आयरलैंड डेनमार्क निर्वेद नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के कई देशों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 70 वर्ष है जबकि कनाडा और जर्मनी ने 75 से 68 वर्ष रिटायर होते हैं ऐसे में सवाल है कि आखिर हमारे देश में कम उम्र यानी न्यायाधीशों को जयंती क्यों नहीं मिल जाती ©Ek villain #न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति आयु पर पुनर्विचार #proposeday
Srinivas
बात बन ही जाएगी, महान निर्णय पुनर्विचार द्वारा परिष्कृत और लोकप्रिय हो जाता है । ©Srinivas Mishra बात बन ही जाएगी, महान निर्णय पुनर्विचार द्वारा परिष्कृत और लोकप्रिय हो जाता है । In Odia: ବିରାଟ ନିଷ୍ପତ୍ତି ପୁନର୍ବିଚାର ଦ୍ୱାରା ମାର୍ଜିତ ଓ ଲୋକ
Sarita Shreyasi
चलो एक शुरुआत करते हैं, आनेवाले कल के लिए, थोड़ा-सा आज बदलते हैं, अतीत के अनुभव पढ़ते हैं, विचारों पर पुनर्विचार करते हैं, सोच अपनी बदल कर देखते हैं। जी रहे थे अबतक हम, भय और आशंकाओं को, ख़्वावाहिशों-ख्वाबों को आज, एक मौका देते हैं। चलो आज शुरुआत करते हैं.. चलो एक शुरुआत करते हैं, आनेवाले कल के लिए, थोड़ा-सा आज बदलते हैं, अतीत के अनुभव पढ़ते हैं, विचारों पर पुनर्विचार करते हैं, सोच अपनी बदल कर दे
Divyanshu Pathak
विद्या अंश नहीं रहा भारत में आज भूल गए स्मृतियां, छूट गई भारतीयता, आंख मीच ली नई पीढ़ी ने भी, यही भाग्य में है शायद इस देश के। विश्वभर में कितने कानून हैं व्यसन मुक्ति के, क्या कम हुआ
yogesh atmaram ambawale
किती खरे किती खोटे ह्याची योग्य ती शाहनिशा करावी. उडत उडत आली जी खबर ती कधीच मनावर न घ्यावी. किती खरे किती खोटे ह्याचा शक्यतो स्वतःच अंदाज लावावा. कुठलाही अंतिम निर्णय घेण्याआधी त्या निर्णयाचा पुनर्विचार ही करावा. हल्ली विश्वास ठेवण्या सारखे काहीही राहिलेले नाही कुणावर नक्की विश्वास ठेवावा हे ही कळत नाही. देवच जाणो,कोण किती खरे किती खोटे वागतात एकच व्यक्ती असताना दुटप्पी कसे वागतात. नमस्कार मित्रहो, आजचा विषय आहे... किती खरे किती खोटे तर उचला लेखणी अन लिहा भरभरून. या विषयावर आपल्या मनातलं लिहा..लिहिल्यावर कमेंट बॉक
Divyanshu Pathak
प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाकर सभी लोग "हिन्दू" और हिंदुस्तान को समझ पायें। हिन्दू कोई जाति या धर्म नही है बस पहचान है। यूरोप और आधा एशिया हमें "सिंधु" नदी के, पर्वतीय क्षेत्र हिंदुकुश पर्वत की तलहटियों में, रहने वाले लोगों के रूप में जानता है। इसलिए हिंदुस्तान में रहने वाला हर एक व्यक्ति,जीव,जंतु या वनस्पति सबकुछ हिन्दू है। वर्तमान में जब इसे सब स्वीकारने लगेंगे तो "हिन्दू" को धर्म से न जोड़ कर "भारतीय" के रूप में प्रतिष्ठित होंगे। राष्ट्रीयता - भारतीय या हिन्दू के रूप में व्यक्त होगी। OPEN FOR COLLAB✨#ATमनकीबात • A Challenge by Aesthetic Thoughts! 💚 इस खूबसूरत चित्र को अपने प्यारे शब्दों से सजाएं|✨ Transliteration: Man
Divyanshu Pathak
देश में मुग़ल आए तो किले और मीनार बने अंग्रेज आये तो ट्रैन और बहुत सी कुरीतियों से छुटकारा मिला। कुल मिलाकर हमें पढ़ाया या दिखाया जाता है कि अगर भारत ग़ुलाम नहीं होता तो इतना विकास भी नहीं होता। प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च माध्यमिक तक यह उनके दिमाग़ में कूट कूट कर भर दिया जाता है कि यहाँ कुछ नहीं रक्खा शानदार तो पश्चिम के देश हैं। बात ये है कि दुनिया का सबसे शानदार संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी व्यवहारिक रूप से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के द्वारा धारण क्यों नहीं किया गया? 😊🌲🌿🙏🌲 शुभसंध्या साथियो। मेरे मन में ये विचार उठा कि हमारे लिखित संविधान को जब हम ठीक से अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि इसके अनुरुप अगर चला ज
Divyanshu Pathak
21 वीं सदी के इन 20 वर्षों में देश ने बड़े बदलाव देखे । धर्म और जाति के नाम पर देश खंड खंड हो रहा था। देश के भीतर विषाक्त वातावरण फैल रहा था। जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। पड़ोसी देश मित्रता भूलकर शत्रु बनते जा रहे थे। निर्णय लेने की बजाय गंभीर मुद्दों को टाला जा रहा था। इसका कारण हमारे देश के पास कोई मजबूत नेता नहीं होना था। जो थे उनकी नेतागिरी अपनी-अपनी पार्टी तक सिमटी हुई थी। लालकृष्ण आडवाणी हो या सोनिया गांधी राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री इन के आह्वान पर देशवासी किसी मुद्दे पर कोई पहल नहीं कर सकते थे। 🙏#goodevening 🙏 : एक ओर देश आरक्षण की आग में झुलस रहा था तो वहीं दूसरी ओर नेताओं में मनमाना आचरण करने की होड़ लगी थी। भले ही उनके आचरण से मत
Divyanshu Pathak
देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है। अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं। आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी। मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा। संविधान बना,क़ानून भी बने, किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा, न ही क़ानून को। धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही। जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई। हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद, हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है। मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं। धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ... देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है। अब जो
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
🤔😳 बाल विवाह पर पुनर्विचार 😳🤔 आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो समझदार थे, और हिंदुस्तान के समझदार सौ साल से पिछलग्गू समझदार हैं। उनके पास कोई अपनी प्रतिभा नहीं है। जो पश्चिम में होता है, वे उसकी दुहाई यहां देने लगते हैं। लेकिन पश्चिम में जो होता है, पश्चिम के लोग तर्क का पूरा इंतजाम करते हैं। इन्होंने भी दुहाई दी कि बाल-विवाह बुरा है। फिर हमने भी #बाल_विवाह के खिलाफ कानून बनाए। व्यवस्था तोड़ी। अब अगर आज कोई बाल-विवाह करता भी होगा, तो अपराधी है! लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि विगत पंद्रह वर्षों... । अमेरिका के सौ बड़े मनोवैज्ञानिकों के एक आयोग ने रिपोर्ट दी है, और रिपोर्ट में कहा है कि अगर अमेरिका को पागल होने से बचाना है, तो बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए। अभी #हिंदुस्तान के समझदारों को पता नहीं चला। इनको पता भी पचास साल बाद चलता है! क्यों लौट जाना चाहिए बाल विवाह पर? पचास साल में ही अनुभव विपरीत हुए। सोचा था कुछ और, हुआ कुछ और। पहला अनुभव तो यह हुआ कि बाल-विवाह ही थिर हो सकता है। चौबीस साल के बाद किए गए विवाह थिर नहीं हो सकते। क्योंकि चौबीस साल की उम्र तक दोनों ही व्यक्ति, स्त्री और पुरुष, इतने सुनिश्चित हो जाते हैं कि फिर उन दो के बीच तालमेल नहीं हो सकता। वे दोनों अपने-अपने ढंग में इतने ठहर जाते हैं, फिक्स्ड हो जाते हैं, कि फिर समझौता नहीं हो सकता। इसलिए पश्चिम में #तलाक बढ़ते चले गए। आज अमेरिका में पैंतालीस प्रतिशत तलाक हैं। करीब-करीब आधे तलाक हैं। जितनी शादियां होती हैं हर साल, उससे आधी शादियां हर साल टूटती भी हैं। यह संख्या बढ़ती चली जाएगी। बाल-विवाह एक बहुत मनोवैज्ञानिक तथ्य था। तथ्य यह था कि छोटे बच्चे झुक सकते हैं; लोच है उनमें। एक युवक और एक युवती, जब पक गए, तब उनमें झुकना असंभव हो जाता है। तब वे लड़ ही सकते हैं, झुक नहीं सकते। टूट सकते हैं, झुक नहीं सकते। इसलिए आज पश्चिम में पुरुष और स्त्री दुश्मन की भांति खड़े हैं। पति और पत्नी, एक तरह का युद्ध है, एक तरह की लड़ाई है। एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ने किताब लिखी है, इंटीमेट वार। आंतरिक युद्ध, प्रेमपूर्ण युद्ध--ऐसा कुछ अर्थ करें। और प्रेमपूर्ण युद्ध, यानी विवाह। इंटीमेट वार जो है, विवाह के ऊपर किताब है; कि दो आदमी प्रेम का बहाना करके साथ-साथ लड़ते हैं, चौबीस घंटे! इसका कारण? इसका कारण कुल इतना है। कोई बेटा अपनी मां को बदलने का कभी नहीं सोचता कि दूसरी मां मिल जाती, तो अच्छा होता। कोई बेटा अपने बाप को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरा बाप मिल जाता, तो बहुत अच्छा होता। कोई भाई अपनी बहन को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरी बहन मिल जाती, तो अच्छा होता। क्यों? क्या दूसरी बहनें अच्छी नहीं मिल सकतीं? क्या दूसरे बाप अच्छे नहीं मिल सकते? क्या दूसरी मां के अच्छे होने में कोई असुविधा है इतनी बड़ी पृथ्वी पर? नहीं; यह ख्याल नहीं आता। क्योंकि इतने बचपन में जब कि मन बहुत नाजुक और कोमल होता है, बच्चा मां से राजी हो जाता है। बाल-विवाह के पीछे एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया थी कि जिस तरह मां से बच्चा राजी हो जाता है, उसी तरह वह पत्नी से भी राजी हो जाता है। फिर वह सोचता ही नहीं कि दूसरी पत्नी भी हो। जैसे मां दूसरी हो, ऐसा नहीं सोचता; पिता दूसरा हो, ऐसा नहीं सोचता; ऐसे ही पत्नी भी, पत्नी भी उसके साथ-साथ इतनी निकटता से बड़ी होती है कि स्वभावतः, दूसरी पत्नी हो या दूसरा पति हो, यह ख्याल ही नहीं उठता। लेकिन चौबीस साल या पच्चीस साल या तीस साल की उम्र में शादी होगी, तो यह बात बिल्कुल असंभव है कि यह ख्याल न उठे। जिसमें न उठे, वह आदमी बीमार होगा, उसका दिमाग खराब होगा। तीस साल की उम्र तक जिस युवक ने हजार स्त्रियों को देखा-पहचाना, हजार बार सोचा कि इससे शादी करूं कि उससे करूं; इससे करूं कि उससे करूं! तीस साल के बाद शादी की, फिर #कलह और उपद्रव शुरू हुआ। उसे ख्याल नहीं आएगा कि पड़ोस की स्त्री से शादी हो जाती तो ज्यादा बेहतर होता? मैंने सुना है, एक पत्नी अपने पति को सुबह दफ्तर विदा करते वक्त कह रही है कि आपका व्यवहार ठीक नहीं है। सामने देखो; सामने की पोर्च में देखो। पति ने उस तरफ आंख उठाकर देखा। पत्नी ने कहा, देखते हैं! पति अपनी पत्नी से विदा ले रहा है, तो कितना गले लगकर चुंबन दे रहा है। ऐसा तुम कभी नहीं करते! उसके पति ने कहा, मेरी उस औरत से कोई पहचान ही नहीं है। वैसा करने का तो मेरा भी मन होता है, पर उस औरत से मेरी कोई पहचान ही नहीं है। यह अमेरिका में मजाक घट सकती है। कल भारत में भी घटेगी। लेकिन भारत ऐसा पहले कभी सोच नहीं सकता था; इसको मजाक भी नहीं सोच सकता था। यह सिर्फ बेहूदगी मालूम पड़ती। यह मजाक भी नहीं मालूम पड़ सकती थी। इसके कारण थे। कारण बहुत साइकोलाजिकल थे, बहुत गहरे थे। फिर एक और ध्यान लेने की बात है कि बाल-विवाह का मतलब है, दो बच्चों में #सेक्स का तो ख्याल नहीं उठता, सेक्स का कोई सवाल नहीं होता, कामवासना का कोई सवाल नहीं होता। दो छोटे बच्चों की शादी कर दी, तो उनके बीच कोई कामवासना नहीं होती। कामवासना आने के पहले उनके बीच मैत्री बन जाती है। लेकिन जब दो बच्चे बच्चे नहीं होते, जवान होते हैं; और उनकी हम शादी करते हैं, मैत्री नहीं बनती पहले, पहले कामवासना आती है। और जब कामवासना पहले आएगी, तो संबंध बहुत जल्दी विकृत और घृणित हो जाएंगे। उनमें कोई गहराई नहीं होगी; छिछले होंगे। और जब कामवासना चुक जाएगी, तो संबंध टूटने के करीब पहुंच जाएंगे। क्योंकि और तो कोई संबंध नहीं है। जिन दो बच्चों ने #कामवासना के जगने के पहले मित्रता स्थापित कर ली, कल कामवासना भी विदा हो जाएगी, तो भी मित्रता बचेगी। लेकिन जिन दो जवानों ने कामवासना के बाद मित्रता स्थापित की, उनकी मित्रता स्थापित होती नहीं, मित्रता सिर्फ कामवासना का बहाना होती है। जब कल कामवासना क्षीण हो जाएगी, तब मित्रता भी टूट जाएगी। आज अमेरिका में किन्से जैसा मनोवैज्ञानिक कहता है कि बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए। अन्यथा पूरा समाज रोगग्रस्त हो जाएगा। – ओशो 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 ©Ankur Mishra 🤔😳 बाल विवाह पर पुनर्विचार 😳🤔 आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो स