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Geeta Sharma pranay

#नारी # असुरक्षित

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हाँ हुई हैं  मुझसे  कुछ गलतियाँ, 
नारी स्वभाव से जो लाचार हूँ, |
जीवन में सब कुछ, समय की
कुछ देरी से ही प्राप्त किया ,,|
असुरक्षित की भावनाओं का 
समावेश होना मुझमें लाज़मी ही हैं |
मेरे जीवन में प्रकाश से अंधकार 
कब आ जाता हैं , 
कुछ पता नहीं |
बहुत मजबूत बनाना पड़ता हैं 
अपने ह्रदय को|
एक उम्र के बाद मिली राहत 
भी अग्नि के समान प्रतीत होती हैं |
बहुत मुश्किल से मन के स्थिर
 होने से पहले ही, 
कुछ गलत कदम उठ जाते हैं |
कहीं न कहीं असुरक्षित की 
भावना का विचार मात्र से
 पहले ही भय घर कर जाता हैं |
कुछ पाकर, उसे फिर खो देना,
यहीं तो मुझे अक्सर मिला हैं|
हाँ, हुई हैं मुझसे कुछ गलतियाँ, 
नारी स्वभाव से जो लाचार हूँ |
            गीता शर्मा "प्रणय" #नारी # असुरक्षित

मनुस्मृति त्रिपाठी

नारी और नाली

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पानी और स्त्री एक समान
जितने बड़े घर में रहती हैं उतनी ही साज़ सज्जा के साथ पेश की जातीं हैं
पर कुछ भी हो एक वक़्त के बाद
नारी और नाली एक ही नज़र आती हैं,,नर्गिस बेनूरी नारी और नाली

BROKENBOY

क्यूं सब हंसी उड़ाते हो कर दूंगी बमबारी। नारी_ नारी_ नारी, हूं मैं आज की नारी। ऐसा ना हो प्याज़ काटने की आए तेरी बारी। नारी_ नारी_ नारी, हूं #Quotes

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क्यूं सब हंसी उड़ाते हो कर दूंगी बमबारी।
नारी_ नारी_ नारी, हूं मैं आज की नारी।
ऐसा ना हो प्याज़ काटने की आए तेरी बारी।
नारी_ नारी_ नारी, हूं मैं आज की नारी।

©BROKENBOY क्यूं सब हंसी उड़ाते हो कर दूंगी बमबारी।
नारी_ नारी_ नारी, हूं मैं आज की नारी।
ऐसा ना हो प्याज़ काटने की आए तेरी बारी।
नारी_ नारी_ नारी, हूं

Sumit Mishra

नारी में शक्ति

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Vivek Singh rajawat

रस में नारी।

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"नारी और रस"
नारी तू श्रृंगार की सूरत।
करुणा की तेरी मूरत।
सहज तेरा ये हास्य रूप।
और तेरा ये रौद्र स्वरूप।
तू भय से नही ख़ुद से डरी।
वरना वीर है तू सबसे खरी।
अद्भुत है तेरा ये यौवन।
शांत है तेरा ये जीवन।
तेरी विभत्सना है नाश।
भक्ति में तेरा ही वास।
तेरे वात्सल्य की महिमा अपार।
कोई नही पा सका तेरा पार।
विवेक सिंह राजावत।
 रस में नारी।

SARVENDRA SINGH

नारी सम्मान में #Shayari

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नारी सम्मान में
🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻

न आना है अब दुबारा,मुझको इस संसार में,
बड़ रही है रुची यहाँ पर हैवानों की बलात्कार में।
जन्म न लूँगी मैं दुबारा,
हमको है हैवानों ने मारा,
दर्द न झेल सकूँगी अब मैं,
यहाँ हद से ज्यादा है हत्यारा।
मैंने जीवन की चाँह है छोड़ी,गई हैवानियत से हार मैं।

औरत बन जन्मी हूँ मैं इसमें मेरा क्या दोष है,
मानव दानव बन बैठा है
बचा न उसको होश है,
कलयुग में है कामवासना
होगा क्या इसका नाशना?
नारी बनकर हूँ मैं जन्मी 
होता मुझे अफसोश है।
अशुरी हुई आत्मा इनकी
वुद्धि विलीन अत्याचार में।

न जाने कितनी प्रियंका,
मन में करती हैं अब शंका,
न जाने कब आ जाए रावण,
अपनी छोड़छाड़ के लंका।
हैं कलयुग के कामी रावण
मेरे बैठी बात कपार में।

वलात्कार को अब विराम  दो,
फाँसी इनको सरेआम दो
बिनती करती है हर नारी
बचे न एक भी वलत्कारी
माँ-बेटी-बहू-बहिन को
रामराज्य सा आवाम दो।
कर दो बस इतना काम तुम 
मानूँगी आभार मैं।

जब भी जाऊँ अकेली राहों में,
देखूँ सबकी सम्मान निगाहों में,
न मचले मन किसी मनचले का
न सूखे पानी मेरे गले का
न डर बैठे दिल में मेरे
सूनसान जगाहों में।
सुरक्षा घेरा हो अब मेरा लक्ष्मणरेखा की किनार में।

लेखक
          सर्वेन्द्र सिहँ सनातनी
9927099136

©SARVENDRA SINGH नारी सम्मान में
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