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नित्यानंद गुप्ता
छल कपट से कमाया हुआ धन और नाहक़ के हिस्से का धन लाभ तुम्हें दुःख के सारे दरवाजे खोल देते हैं। इसलिए धन अर्जित करने में सदैव सावधान रहना चाहिए। जीवन में सच की राह से ही सच्चा सुख मिलता है।
नित्यानंद गुप्ता
जिस मनुष्यों में क्रोध रूपी असुर का वास हो जाता है,वो नर तन में भी दानव ही कहलाता है। वो चाहे दिखने में भले ही मानव जैसा ही हो। आपकी वाणी और व्यवहार ही आपको मानव या फिर दानव बनाता है। सच्चा सुख तो आत्म सुख में ही है।
shaun simlai
#Pehlealfaaz "व्यवहार" घर का शुभ कलश है। और "इंसानियत" घर की "तिजोरी"। "मधुर वाणी" घर की "धन-दौलत" है। और "शांति" घर की "महा लक्ष्मी"। "पैसा" घर का "मेहमान" है। और "एकता" घर की "ममता। "व्यवस्था" घर की "शोभा" है और समाधान "सच्चा सुख"। "सच्चा सुख"।
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
सच्चा सुख सवाल यह है कि जीवन में सच्चा कहां मिलता है। हर इन्सान का अलग अलग बंटा हुआ है।किसी को अर्थ सुख चाहिए, किसी को भोग विलास का सुख चाहिए, किसी को सांसारिक सुख से जुड़ा हर सुख चाहिए।लेकिन जहां तक मेरा विचार है, मनुज लोक में सच्चा सुख वहां मिलता है जहां विचारों का मेल होता है,जहां एक दूसरे की भावना की कद्र की जाती हो। जहां विचारो का मेल हो और भावना की कद्र हो वही प्रेम का माहौल तैयार होता है और जीवन सरस होता है। उसे ही ईश्वर का वरदान भी माना जाता है। धन दौलत, महल ,ऐसो आराम हो लेकिन विचार न मिले वहां सबकुछ होते हुए भी जीवन सुखमय नहीं होता। आजकल इंसान भाग ही तो रहा है लेकिन चेहरे पर सुख की मुस्कुराहट नदारत है। क्या जीना इसी को कहते हैं? उत्तर है-नहीं। सबसे दुखदाई जीवन वह होता है जब जीवन साथी ,चाहे नर हो या नारी, उसे समझने वाला ही न हो। फिर जीवन दर्द का साज बन जाता है जिस पर इन्सान दर्द के नगमे तन्हाई में गाता है और आहें भरते हुए दुनिया को अलविदा कह देता है। ©नागेंद्र किशोर सिंह # सच्चा सुख
bajpaimahanand@gmail.com
-:सच्चा सुख:- इस झूठे संसार में सच्चे सुख की कल्पना करते हुए सदियों से मनुष्य उसी प्रकार भ्रमण कर रहा है जैसे कि रेगिस्तान के अंतर्गत कोई मृग पानी की तलाश करता हुआ चांदनी रात में रेगिस्तान में दौड़ रहा हो और रातों-रात दौड़ने के बाद जब सूरज निकलता है तो वह धूप से विव्हल होने लगता है तब भी उसे दूर पानी के आसार नजर आते रहते हैं जिससे वह भूखा प्यसा ही दिन रात दौडते हुए एक दिन दिवंगत हो जाता है। इन्द्रियों के सुख क्षणिक है सच्चे नहीं दुख सुख मन के विकल्प हैं। सुख भी वैकल्पिक है और दुख भी वैकल्पिक है। अतः चयनकर्ता पर निर्भर है कि वह सुख का चुनाव करे या दुख का परंतु यह संसार तो दुख का समुद्र है और दुख का कारण उसकी स्वयं की तृष्णा है।ऐसी स्थिति में सुख की अपेक्षा करना भी दुख हुआ अत:सुख की अपेक्षा न करना ही सच्चा सुख कहा जा सकता है। शब्द कार:-पं. महानन्द वाजपेयी "आनन्द" ©bajpaimahanand@gmail.com सच्चा सुख #Goodevening
Rajik K
White जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ विवाह है!! अगर हमसफ़र सही मिल जाता है तो आप सब कुछ जीत लेते हो और अगर ग़लत मिल जाए तो आप जीतें जी सब कुछ हार जाते हो !!🥀🥀🥀🥀🥀🙏 ©Rajik Khan दुनिया में भी सच्चा प्यार मिलता है