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Vijay Patavkar
पुस्तके मित्र। घडवि चरित्र॥ दाखवि सचित्र । अवघे जीवन ।। १।। घेती कडेवरी उचलूनं तापता अज्ञानाचे उन्हं उन्मळे सारा शीणं पुस्तके हाती घेता ।।२।। बांधता ग्रंथाची पूजा वाढे विचारांचा दर्जा संचारे अात्मविश्वासरुपि ऊर्जा ज्ञानतनय म्हणे ।।३।। रचना ✍🏻 विजय ज्ञानदेव पटावकर ( ज्ञानतनय) पुस्तक दिवसाच्या खूप खूप शुभेच्छा ...😊
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
शब्दों को पढ़ा है ! बोला है! महसूस किया है क्या कभी? किसी शब्द की गर्दन पर उंगली रख कर सहलाया है कभी? किसी शब्द के सीने पर कान लगाकर धडकनें सुनी है उसकी? तुम कहोगे एक शब्द की इतनी हस्ती ही नहीं! शब्द ही तो है! कितने शब्दों पर तुमने ठहाके लगाए हैं! कुछ पर रोये भी होगे शावर में खड़े होकर! पर कभी किसी पन्ने पर लिखे ‘आं+सू’ को छूने से उंगलियों में नमक लगा है? ‘बा+रि+श’ पढ़कर सर पोछने का मन करता है? पैरों में कीचड़ महसूस होता है? ‘ब+च+प+न’ को अपने सीने पर रख कर देखो! कोई नंगा सा बच्चा घंटो चीटियों से खेलता हुआ दिख रहा है? क्या कभी ‘त+न्हा+ई’ को पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा कोई बेहद ख़ास तुम्हारे सीने में सरिया घुसाकर हंस रहा है तुम्हे देखकर और वो जगह आज तक न भरी हो?” ‘श+म+शा+न’ पढ़कर कान के पीछे से ठंडी हवा गुज़रती है? वो बचपन का सपना दिखता है जिस पर कोई तुम्हारे सीने पर बैठ गया था और तुम उठ नहीं पा रहे थे? ‘भू+त’ पढ़ते हो तो अपने अगल बगल देखते हो तुम? कि इस रात में कोई पीछे से तुम्हारी स्क्रीन पर तो नहीं देख रहा? पीछे मत देखना मैंने कहा! ‘या+द’ सुनकर क्या तुम किसी भूले हुए शक्श की चेहरे की खाल को अपने नाखूनों से कुरेदते हो परत दर परत? उसे दर्द हो रहा है छोड़ दो उसे! क्या कभी ‘वि+ध+वा’ पढने पर तुमने उसके साथ बैठ कर अपनी चूड़ियाँ तोड़ी? ‘बाँ+झ’ पढ़कर उसके रोने के ठन्डे सुरों से सुर मिलाएं हैं कभी? ‘प्या+र’ सुनते हो तो कैसा महसूस होता है? मुझे लगता है तुम्हे घिन आती है! उबकाई सी! अपना नाम सुनते हो तो कैसा लगता है? कोरापन? ऐसा लगता है जैसे कोई खाली डब्बा रोड पर किसी कबाड़ी के इंतज़ार में है? तुमने याद किये है बहुत से शब्द! कुछ शब्द है जो तुम भूल गए! कुछ शब्द जो तुम भूलना चाहते हो पर भूल नहीं पा रहे! जो ‘वो’ कहती थी तुमसे तुम्हारे कंधे पर सर रख कर! तुम्हारे कानों में फुसफुसाती थी! कितने कमज़ोर हो तुम एक उस एक अदने से 'शब्द' से हर रात हारते हो! “तुमने शब्द पढ़े है! महसूस किया है कभी?” ©Ankur Mishra #तुमने #शब्दो #को #पढ़ा #है #मेहसूस #किया #है #कभी..... #शब्द
Hasanand Chhatwani
शब्द कमाल के होते है, शब्द बेमिसाल होते है, शब्दो का हार भी बनता है, और शब्दो से घाव भी लगते है, मीठे शब्द सुकून दिला देते है, और नफ़रत के शब्द नींद उड़ा देते है, तलवार से गहरे होते है शब्दो के घाव, और गहरे से गहरा जख्म भर देते है ये शब्द, प्यार के दो शब्द उम्मीद जागते है, और ताने के दो शब्द तिरस्कार कर जाते है, तीर भी चलाते है शब्द, दिल को छलनी कर जाते है शब्द, और मरहम लगा जाते है शब्द, दिल मे प्यार जगा जाते है शब्द..!!! शब्द कमाल के होते है, शब्द बेमिसाल होते है शब्दो का हार भी बनता है, और शब्दो से घाव भी लगते है, मीठे शब्द सुकून दिला देते है, और नफ़रत के
Hasanand Chhatwani
शब्द कमाल के होते है, शब्द बेमिसाल होते है शब्दो का हार भी बनता है, और शब्दो से घाव भी लगते है, मीठे शब्द सुकून दिला देते है, और नफ़रत के शब्द नींद उड़ा देते है, तलवार से गहरे होते है शब्दो के घाव, और गहरे से गहरा जख्म भर देते है ये शब्द, प्यार के दो शब्द उम्मीद जागते है, और ताने के दो शब्द तिरस्कार कर जाते है, तीर भी चलाते है शब्द, दिल को छलनी कर जाते है शब्द, और मरहम लगा जाते है शब्द, दिल मे प्यार जगा जाते है शब्द..!!! शब्द कमाल के होते है, शब्द बेमिसाल होते है शब्दो का हार भी बनता है, और शब्दो से घाव भी लगते है, मीठे शब्द सुकून दिला देते है, और नफ़रत के
Parasram Arora
कविता कैसी भी हो उसे समझने मे कठनाई नहीं होती क्योंकि ज्यादातर रचनाओं मे आनंद वेदना प्रेम और आश्चर्य क़े भाव होते है और ये सारे भाव हर किसी मे प्रायः मौजूद ही होते हैँ अब ये बात अलग है क़ि उस रचना का जायज़ा अपनी अपनी पसंद से श्रोता या पाठक तय करते हैँ किसी को. वह रचना आध्यात्मिक यात्रा क़े लिए तैयार कर सकती है तो किसी मे प्रेम की पींगे बढ़ाने की दिलचस्पी से भर सकती है कोई विचलित या विक्षप्त श्रोता या पाठक उसे दर्शनशास्त्र का विषय बना सकता है या फिर कोई उस कविता को मधुर स्वरों मे गाकर गायक भी बन सकता है # कविता क़े रूप अरूप.......