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deewana ajeet ke alfaj
तूने ये बेरहम कर क्या दिया। मेरा खूबसूरत घर जला दिया।। किसी के कहने पर,दिल में रहने वालों को, नमरहम बना दिया।।1 मेरी अचानक रुह काँप गयी,, सच में तूने दिन में डरा दिया।2 बचपन में जो लिखा तट पर नाम,, तेरी हवस की लहरों ने मिटा दिया।।3 बड़ा गुमान चाँदनी पर मगर आज,, किसी और का बिस्तर सजा दिया।। इज्जत,आबरू घहने है औरत के मगर उसने बेहयायी का, आईना बता दिया।।4 तूने मुझे बर्बाद कर हकीकत मै जाना,, 'दीवाना अजीत'सुखनबर बना दिया।।5 दीवाना अजीत ©deewana ajeet तुने ये बेरहम कर क्या दिया। #togetherforever CID ofeec Rajneesh Kushwaha Raghav Singh Vishal Gond रायसिंह नाम रायसिंह
Anekanth Bahubali
नगर कितना नकली - नकली है यह नगर बिल्कुल असली -असली - सा लगता है । लोग यहाँ के बिल्कुल लोग जैसे लगते हैं और मकाने - दुकानें सब कुछ उन जैसे ही लगते हैं पर न जाने क्यों सब कुछ अजीब -अजीब -सा लगता है । यहाँ कोई कभी अपना - अपना -सा लगता है । फिर सब कुछ सपना-सपना -सा लगता है । भीड़ में घुस जाओ अगर तुम तो सब कुछ कितना अजीब - अजीब -सा लगता है । सब कुछ सपना - सपना- सा लगता है । - बाहुबली भोसगे नगर #City
Anekanth B
नगर कितना नकली - नकली है यह नगर बिल्कुल असली -असली - सा लगता है । लोग यहाँ के बिल्कुल लोग जैसे लगते हैं और मकाने - दुकानें सब कुछ उन जैसे ही लगते हैं पर न जाने क्यों सब कुछ अजीब -अजीब -सा लगता है । यहाँ कोई कभी अपना - अपना -सा लगता है । फिर सब कुछ सपना-सपना -सा लगता है । भीड़ में घुस जाओ अगर तुम तो सब कुछ कितना अजीब - अजीब -सा लगता है । सब कुछ सपना - सपना- सा लगता है । - बाहुबली भोसगे नगर #City
दिनेश नाथ दिनेश नाथ
दिनेश कुमार सोलंकी ©दिनेश नाथ दिनेश नाथ दिनेश सोलंकी चौहटन तहसील जिला बाड़मेर
Adarshkumar
चांदनी चांद से होती सितारों से नहीं मोहब्बत एक से होती हजारों से नहीं फूल खिलता एक बार अंधेरी में भी रोशनी एक हो जाती है ©Adarshkumar #City कानपुर नगर
Parasram Arora
मंजिल तो मुझे मिल गई किसी तरह ओर मेरा हमसफर मुझे अभी भीम मिला नहीं हैँ मंजिल पाबे का जश्न अब हम अकेले मनाये कैसे?. दोस्त की छोड़ो क्कोई दुश्मन भी तो आस पास नहीं दिख रहा अब तुम ही बताओ इस जश्न को मनाने की. दीवानगी का हम क्या करें सुख का नगर मैं केसे बसाऊ ? ©Parasram Arora सुख क़ा नगर
Parasram Arora
बर्फ क़े नगरों मे ही तो धूप क़े कारोबार चलते हैँ रास्ते वही पिघलते हैँ जहाँ जंगल कट कर मैदान बनते है खुदगरजी ही आदमी को ताउम्र भटकाती है ज़ब आदमी क़े घर और पते बार बार बदलते हैँ जिनके अंदर चिराग बुझे हुए हैँ वही दम घोंटू कमरों मे बैठ अपना सिर पीटते हैँ ©Parasram Arora बर्फ क़े नगर..