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Shaikh Shabbir

शब्बीर शेख #समाज

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खुशी क्या होती है इस पेड़ से पूछो 
जब तक इसके पास हरियाली थी
तब तक ये भी हरा भरा था 
आज देखो सुख कर जमीन का बोझ
बना पड़ा है इस पेड़ से हमे एक बात 
मालूम पड़ती है 
जिंदगी में हर इंसान से मोहब्बत करो 
सबसे मिलते जुलते रहो
आप अगर किसी को रोज कोसेंगे क्या पता वो भी अंदर से टूट जाए और आपको पता तक ना चले 
जब तक वो पेड़ हरा था अपने आस पास को हरियालियो से भरा पड़ा था 
वैसे ही जिस इंसान से आप मोहब्बत करते हो उसे मत कोसो क्या पता कभी वो भी आपको छोड़ जाए 
इसलिए हर इंसा की कद्र करनी चाहिए

©Shaikh Shabbir शब्बीर शेख

मोहम्मद शब्बीर खान

शब्बीर खान अलवर #nojotophoto

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 शब्बीर खान अलवर

Zeeshan Ansari

ज़ीशान अंसारी बरकाती #Music

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ग़ज़ल   

 हमारी  ज़िन्दगानी में   जो  इतनी  शादमानी  है।
  ये अपनों की इनायत है, ख़ुदा  की  मेहरबानी  है। 

महेज़  क़तरा  समझिए मत इसे दो बूंद पानी का,
बयां  जो कर नहीं सकते उसी  की तरजुमानी  है।

उजड़ता  जा   रहा  है  धीरे-धीरे   बागबां  अपना,
ये  कैसी  हुक्मरानी  है, ये  कैसी  निगहबानी  है। 

ये दुनियां चार दिन की है  बहुत उम्मीद ना रखना,
सुनाई  जा  रहीं  हैं  जो  फकत  झूठी  कहानी है।

मसर्रत  बढ़ती  जाती है  कभी जब सोचते हैं हम,
वरासत  में  मिली  हमको  बुज़ुर्गों की निशानी है।

चलो सिक्का  उछालो जो  भी होगा  देखा जायेगा,
हमें   फूटी   हुई  क़िस्मत  मुक़र्रर  आज़मानी  है।

ये कैस  रहनुमां  हैं  जो  हमें  पहचान  ना  पाए,
अरे  पहचान  तो  ज़ीशान अपनी   ख़ानदानी  है। ज़ीशान अंसारी बरकाती

Akbar Shah

रेहान रज़ा बरकाती

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यूँ रुलाया ना कर जिंदगी हर बात पर जरूरी तो नहीं की हर किसी की किस्मत में चुप कराने वाला भी हो
रेहान बरकाती रेहान रज़ा बरकाती

Zeeshan Ansari

ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी

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जो  भी  वादे  हैं  किए   सारे  निभाऊंगा मैं
आप  जो  चाहेंगे   वो  करके  दिखाऊंगा मैं

दर्दो   आलाम   की   तारीफ़  अगर   पूछोगे 
अपने  दिल  की  तुम्हे  आवाज़  सुनाऊंगा मैं

मैं हूं इक आम बशर  कोई मुफ़स्सिर तो नहीं
जो   तेरे  ख़्वाबों  की  ताबीर  बताऊंगा  मैं

करदे मजबूर  ज़माने  को  जो  बोसे के लिए
ऐसा   किरदार   हसीं  अपना  बनाऊंगा  मैं

खा  नहीं पाएंगे  जब  खाना ज़ईफी के सबब
बूढ़े  मां  बाप को  हाथों  से  खिलाऊंगा  मैं

ऐसे  बेगानों  की  बस्ती  में  कोई कैसे जिए
छोड़िए  दुनियां  अलग   जाके  बसाऊंगा मैं

इश्क़  है, इश्क़  है  ज़ीशान  सुनो इश्क़ है ये
इसके  हर  नाज़  मुहब्बत  से  उठाऊंगा  मैं






ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी

کوثر رضا برکاتی

शायर कौसर रज़ा बरकाती #Poetry

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