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अपनी कलम से

भाग -10 आई थी अब छेके की बारी, घर में चलने लगी थी तैयारी, फल बाजार से खरीद लाएं थें बापू, खाजा -मिठाई घर पर हीं बनवाएं थें बापू। आस-परोस के #Indian #Angel #Instagram #Hindi #yourquote #हिंदी #Nozoto #नोजोटो #परी #साहित्य

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आई थी अब छेके की बारी, घर में चलने लगी थी तैयारी,
फल बाजार से खरीद लाएं थें बापू, खाजा -मिठाई घर पर हीं बनवाएं थें बापू।
आस-परोस के लोग भी क्या खूब हाथ बटाते थे, हर एक काम को झट से कर ले आते थे।
अब फलों और मिठाइयों के पेटी थे बंधने लगें,अब छेके में जानेवाले लोग भी थें आने लगे।
मां सबके लिए लिए थी भोजन बनवाई, प्यार से बैठकर थी सबको खिलाई। 
हँसी -मजाक भी खूब किया करते थे सब, दौर हुआ करता था प्रेम का, प्रेम से रहते थे सब।
अब गाड़ी थी घर पर आई, सारे जन को थी इसी पर बैठाई,
फल और मिठाई साथ लिए, दूल्हे के घर की तरफ थी अब रेस लगाई।
दूल्हे के घर पहुंचते हीं, स्वागत बखूब हुआ, नाश्ता हुआ, चाय मिला और बातें भी खूब हुआ।
खैनी मल -मल एक -दूसरे को खिला रहें थें लोग, खैनी से हीं अपने प्यार को बढ़ा रहें थें लोग।
इतने में पंडित जी भी आ गए, अब सब को छेके की तैयारी में लगा गए।
घर के बच्चे गाड़ी से पेटियों को उतारने में लग गए, दूल्हे भी सजने -संवरने में लग गए,
दूल्हे की मां खाना बनाने में जुटी, अब अपने बेटे को संवारने लगीं।
ये देख, कुर्ता सही नहीं लग रहा, इसे जरा ठीक कर ले,
हां चेहरे पर पाउडर भी अच्छे से लगा लेना, और आलमीरा में रखा है सेंट, उसे भी लगा लेना।
अब छेके भी पड़ने लगीं, 
एक तरफ पंडित जी का मंत्र, वही दूसरी ओर औरतों के गाने, क्या संयोग हुआ करता था,
आज के समय होनेवाले छेको से, बहोत हीं अलग हुआ करता था।
आनंद लेने में रम जातें थें लोग अक्सर,
सोच हीं मन आनंदित हो उठे, ऐसे प्यार निभातें थें सब।
अब छेके का रस्म हुआ था पूरा, लोग पंडित जी को खाना खिलाएं,
फिर मेहमानों को खिला -पिलाकर, आराम फरमाने लगे सब।
रात बीती, सुबह भी हुई, चाय -नस्तो के साथ, खेत -खलिहानें भी देखी गई।
अब था क्या? इतनें में बापू थे पूछ बैठे- 
आप कब आ रहें मेरे घर, छेकने मेरी लड़की को,
घरवाले पंडित बुलवाएं, दिन उतरवाएं, फिर बोले -
तैयारी रखना पूरा, अब इसी दिन आ रहा हूं, छेकने आपकी बेटी को।
फिर क्या.....

©dashing raaz भाग -10

आई थी अब छेके की बारी, घर में चलने लगी थी तैयारी,
फल बाजार से खरीद लाएं थें बापू, खाजा -मिठाई घर पर हीं बनवाएं थें बापू।
आस-परोस के

अपनी कलम से

छेकाई की रस्म हो गई थी पूरी, अब घरवालों की बढ़ने लगीं थी मजबूरी, था क्या? दहेज़ भी तो जुटाना था, सारे सामान इकट्ठे कर तिलक भी चढ़ाने जाना थ #Love #story #Angel #Stories #कहानी #kavita #कविता #किस्से #परी

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छेकाई की रस्म हो गई थी पूरी, अब घरवालों की बढ़ने लगीं थी मजबूरी,
था क्या? 
दहेज़ भी तो जुटाना था, सारे सामान इकट्ठे कर तिलक भी चढ़ाने जाना था।
मां कर रखी थी इकट्ठा कुछ, बाप बेचारा तैयारियों में था जुटा,
कुछ कर्ज़ के लिए था दर -दर भटक रहा, तो कुछ अपनों से सहयोग था मांगता रहा,
आख़िर करता भी क्या? 
बेटी को जो ब्याहनी थी, अपनी परी बिटिया से किए वादे भी तो निभानी थी।
समय कुछ ऐसे सड़कने लगें, मानों इकट्ठे करने में कम से पड़ने लगें।
कुछ लोगों ने खड़ी -खोटी सुनाई, तो किसी ने मदद की हाथ बढ़ाई।
कुछ लोग उम्मीद देने में जुटे, तो कई -एक ने थी हिम्मत बढ़ाई।
आखिर होता भी क्या?
कुछ समाज से सहयोग मिले, तो कुछ अपने जमीन पर कर्ज थी उठाई,
बार -बार मन में हो रही थी शंका, कैसे करेगा इस ब्याह की भरपाई।
खैर जो भी हो.....
दहेज का अब हो चुका था इंतजाम, आखिर बापू के लिए था बहुत हीं बड़ा इंतकाम।
दिन उतरवाए गए, सामान बाजार से लाएं गए, मिठाई भी बनवाए गए।
सारे मेहमानों को न्योता दे, तिलक में जाने के लिए बुलाए गए।
किसी तरह तिलक की रस्म भी हो गई थी पूरी, यहां तक कुछ भी न बची थी अधूरी।
हंसते -खिलखिलाते, अपने दर्द को दबाएं, एक बाप मेहमानों से बातें करता जाए।
हां तो सुनों,
 बाराती पूरे सौ आयेंगे, व्यवस्था पूरे चार दिनों का रखना,
नाच -गाने वाले भी आएंगे, कहीं अच्छे जगह इंतजाम करना।
'बिदेसिया ' ठीक किया हूं बारातियों के मनोरंजन हेतु,
किसी अच्छे टेंट वालों से, बिजली -बाजों का इंतजाम करना।
बारातियों के स्वागत में कोई कमी न रखना।
चारों दिन अलग -अलग किस्म के खाने का इंतजाम करना।
मेरे गांव वाले, मेरे मेहमान, कुछ अरसे तक नाम लें, 
स्वागत की तैयारी कुछ इस कदर करना।
सोचना कभी....
एक बेटी के बाप का दिल कितना मजबूत होता है,
देखे -न -देखे कोई, पर अंदर -हीं -अंदर कितना रोता है।
हंसते रहता अक्सर, मुस्कुराते हुए सबकुछ सहता है,
बोलना चाहे भी, पर बोल नहीं पाएं, खुद को संभालता हुआ, सामने आए।
आखिर बाप है, कोई कितना भी कहर बरपाए, फिर भी न इतराए।
'जी हां' में हीं हामी भरे, फिर आगे बढ़ता जाए।।

©dashing raaz छेकाई की रस्म हो गई थी पूरी, अब घरवालों की बढ़ने लगीं थी मजबूरी,
था क्या? 
दहेज़ भी तो जुटाना था, सारे सामान इकट्ठे कर तिलक भी चढ़ाने जाना थ

अल्पेश सोलकर

हातातला रंग तिच्या .. चेहऱ्यावर उतरवणार आहे... आणि तिचा रंगलेला चेहरा.. माझ्या मनात उतरवून घेणार आहे... होळीच्या शुभेच्छा..🤗

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हातातला रंग तिच्या ..
 चेहऱ्यावर उतरवणार आहे...
आणि तिचा  रंगलेला चेहरा..
माझ्या मनात उतरवून घेणार आहे... हातातला रंग तिच्या ..
 चेहऱ्यावर उतरवणार आहे...
आणि तिचा  रंगलेला चेहरा..
माझ्या मनात उतरवून घेणार आहे...

होळीच्या शुभेच्छा..🤗

Hasanand Chhatwani

दिल में उतरना #दिल से उतरना ##

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 #दिल में उतरना ##दिल से उतरना ##

Bhimrao Tambe

उतराई

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उतराई

दिल भिमान भरभरून ,करा उत- राई र
नवा जन्म तो दिला भिमान काय सांगू बाई ग
भीम आई होता आई र माझी आई होता आई रं

किड्या मुंग्या समान ,होत आमचं जीण हो 2
पशु पक्षाहून मनुन, केलं होत हीन हो
माणूस म्हणून केलं भिमानं, आम्हा जगजाहीर

समाज माझा उपकाराचे पांग विसरला का रे
कोनामुळे तू घडला सांग विसरला का रे
गाडी माडीच्या धुंदीत तू भोग सुख सोई रं

समाज हित बोले भीम ,समाज हित चाले
समाज विकायला निघाले ,गद्दारांचे चेले
कवडीमोला पायी म्हणाले ,समाज विकणार नाही रं

देव धर्माच्या नावाखाली किती जाळल्या सती
उच्चं पदी विराजमान झाली राष्ट्रपती
हिंदू कोड बिलात जिवंत ,उभी केली बाई हो

माणूस म्हणून माणसाचा, केला हो सन्मान
विषमतेची करून राख,लिहिलं संविधान
कोणी नाही उच्चं नीच ,बोले लोकशाही रं
भीम आई होता आई र माझी आई होता आई रं

                              BHIMRAO TAMBE उतराई

sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3

उतरना #सस्पेंस

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तुम सोच सकतॆ हॊ हिज्र का वस्ल मॆं उतरना...
यूँ आसान न था मॆरा इक शक्ल मॆं उतरना..।
कुछ अजीब हालात से सादगी गुज़र रही है...
ऎन-मुमकिन है उस फूल का क़त्ल में उतरना..।
पहली करवट मॆं रातभर नींद ली है ‘ख़ब्तुल’...
और ख़्वाब सीख रहे हैं दरअस्ल मॆं उतरना..।
                                - ख़ब्तुल
                             संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 उतरना
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