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कवि मनीष

है प्रेम राधा-कृष्ण का प्रेम तरूवर, है प्रेम राधा-कृष्ण का प्रेम सरोवर, #कविमनीष ************************************** #nojotophoto

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 है प्रेम राधा-कृष्ण का प्रेम तरूवर,
है प्रेम राधा-कृष्ण का प्रेम सरोवर,

#कविमनीष 
**************************************

Harsh Ranjan

तरूवर हूँ धूप से जल कर छांव सींचता हूँ, लेखक हूँ उसी छांव में बैठ धूप लिखता हूँ।। #2liner #nojotohindi #nojtohindi

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तरूवर हूँ धूप से जल कर छांव सींचता हूँ,
लेखक हूँ उसी छांव में बैठ धूप लिखता हूँ।।
#2liner #nojotohindi

Sadashiv Yadav

बरसे बदरा भीगें गजरा दादुर के दिन आई गयें तरूवर झूमें गिरिवर सीझे देखके बल खाई गयें मन मानत न कुछ जानत न बेलों की तरह लिप टाई गयें बेगाना"

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 बरसे बदरा भीगें गजरा दादुर के दिन आई गयें 
तरूवर झूमें गिरिवर सीझे देखके बल खाई गयें
मन मानत न कुछ जानत न बेलों की तरह लिप टाई गयें 
बेगाना"

राजेश कुशवाहा 'राज'

------!! बसंत बहार !!------ लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार। मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।। पतझड़ की हुई है भरमा #कुशवाहाजी #holi2021

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------!! बसंत बहार !!------

लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार।
मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।।
पतझड़ की हुई है भरमार, लो आ गई बसंत बहार। 
दिया बसंत ने पंख पसार, पड़ गई रंगों की फुहार।।
है लाल हरा पीला तरुवर,है लग गई रंगों की अंबार।
ये तो रंगो का है उपहार,है आगम होली का त्यौहार।।
बढ़ रही मधुमास रफ्तार, तरूवर लिए यौवनाकार।
चटकी कलियाँ हुई तैयार,भवरों को करती अंगीकार।।
टपके फूलन रस चहुँओर, महके बाग बगीचा पोर।
पशु पंक्षी हर्षित भें सुन्दर, धरती रूप धरी है मनहर।।
ये मधुमास बना सुखकर, देता है नवजीवन का वर।
सूरज की मद्धिम रफ्तार, करे सुहावन ऊष्म बौछार।।
जब चलती है सुघर बयार, तन मन करती तार तार।
लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार।। 
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"

©राजेश कुशवाहा ------!! बसंत बहार !!------

लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार।
मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।।
पतझड़ की हुई है भरमा

दीपंकर

तुम हमारे मीत तरुवर #पेड़_हमारे_साथी #NatureLove #कविता

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तुम हमारे मीत तरुवर,
तुम हमारे गीत तरुवर,
हारता जब प्राण बाजी,
तुम दिलाते जीत तरुवर,
तुम हमारे मीत तरुवर.
ग्रीष्म का जब ताप अविचल,
दे हरित तुम छाऊं शीतल,
कलांत मन को शांत करता,
मधु रसीली प्रीत तरुवर,
तुम हमारे मीत तरुवर.
देवता हो देवता तुम ,
तुम तो बस देते ही रहते,
खुद को जला कर शीत में भी,
ग्रीष्म का अहसास देते,
तुमसे हमारी सभ्यता है,
तुम हमारी रीत तरुवर,
तुम हमारे प्रीत तरुवर.. तुम हमारे मीत तरुवर
#पेड़_हमारे_साथी
#naturelove

Yogadityam Yog Guru

#Rap जैसे सूरज की गर्मी से मिल जाए तरुवर की छाया | #कविता

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Rajendra Prasad Pandey Kavi

विरह प्रेम की वेदना प्रियतम तरुवर छाँव, महल दुमहले भूतहे कहाँ निकल के जांव।

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Poonam Rajput

#Special_Free_Offer घर बैठे सभी धर्म ग्रंथों से प्रमाणित आध्यात्मिक ज्ञान की अद्भुत पुस्तक 'ज्ञान गंगा' #निशुल्क मंगाए।। नाम:......... पता: #story #nojotophoto #मनुष्य_जीवन

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 #Special_Free_Offer

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Akanksha Srivastava

नित जीवन मे प्यास अनोखी मेरी आँखों मे है झलकती मन से छलकती दिल से दहकती है कैसी ये सत्ताईस की कहानी तृष्णा मेरे जीवन की ना तरुवर की छावं सुह #कविता #WalkingInWoods

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नित जीवन मे प्यास अनोखी मेरी आँखों मे है झलकती
मन से छलकती दिल से दहकती
है कैसी ये सत्ताईस की कहानी
तृष्णा मेरे जीवन की ना तरुवर की छावं सुहाए
हाय ना कलियों की मुस्कान लुभाए
उफ़्फ़ ये ठंडी बयार सताए
हाय ये बरखा मुझको कितना तड़पाये
है कैसी ये सत्ताईस की कहानी
मोड़ मेरे जीवन की दुख और वेदना से उभरती
नित जीवन की प्रभात अनोखी 
बनके पहेली है वो चहकती 
उफ़्फ़ कभी मन को बहकाती कभी दिल को रूलाती
हाय कैसी है ये सत्ताईस की कहानी!

©Akanksha Srivastava नित जीवन मे प्यास अनोखी मेरी आँखों मे है झलकती
मन से छलकती दिल से दहकती
है कैसी ये सत्ताईस की कहानी
तृष्णा मेरे जीवन की ना तरुवर की छावं सुह

Bazirao Ashish

असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा #पौराणिककथा

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असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा      शारदा    सर्वकालं ।
तदपि    तव      गुणानामीश     पारं     न      याति ॥

अर्थ: हे प्रभु (शिव जी)! यदि नीले या काले रङ्ग के समान पर्वतों को सागर रूपी दवात में घोलकर काली स्याही और देवलोक के कल्पवृक्ष की शाखाओं की लेखनी/कलम बनायी जाय/जा सके।
यदि माँ शारदा/सरस्वती स्वयं अनन्तकाल तक आपके गुणों की व्याख्यान लिखती रहें तब भी आपके सम्पूर्ण गुणों का को नहीं लिखा जा सकता। अर्थात् आप आदि व अनन्त हैं।
🙏

©Bazirao Ashish असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा
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