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Author Harsh Ranjan
असत्य में भी सत्य छिपा है, कु के साथ कुकर्म, स के साथ पुराने हो चुके सत्कर्म का नया संस्करण है! कहा उसने किताबें खोलकर, संत को चाहिए सत, चित, आनंद! चोर की भी वही प्रेरणा होती है। संत उपवास कर उसे पाते हैं और चोर, चोरी का माल बेच दारू, गांजा, मुर्गा पेलकर भव-सागर तर जाते हैं। लेकिन उसने जोर देकर कहा, उपवास अन्नपूर्णा माँ का अपमान है, और जो खाद्य पदार्थों का जिक्र हुआ वो भूखे के लिए जीवन वरदान हैं। मैंने शाबासी ठोंककर उसे कहा, अब डिग्री या धंधे के लिए किसी यूनिवर्सिटी या दल मत जाना, और हाँ नागरिक सुविधा के कार्ड बनवाने चेहरे नहीं पिछवाड़े की फोटो खिंचाना!End. वामपंथी से वार्तालाप
Author Harsh Ranjan
असत्य में भी सत्य छिपा है, कु के साथ कुकर्म, स के साथ पुराने हो चुके सत्कर्म का नया संस्करण है! कहा उसने किताबें खोलकर, संत को चाहिए सत, चित, आनंद! चोर की भी वही प्रेरणा होती है। संत उपवास कर उसे पाते हैं और चोर, चोरी का माल बेच दारू, गांजा, मुर्गा पेलकर भव-सागर तर जाते हैं। लेकिन उसने जोर देकर कहा, उपवास अन्नपूर्णा माँ का अपमान है, और जो खाद्य पदार्थों का जिक्र हुआ वो भूखे के लिए जीवन वरदान हैं। मैंने शाबासी ठोंककर उसे कहा, अब डिग्री या धंधे के लिए किसी यूनिवर्सिटी या दल मत जाना, और हाँ नागरिक सुविधा के कार्ड बनवाने चेहरे नहीं पिछवाड़े की फोटो खिंचाना!End. वामपंथी से वार्तालाप
Author Harsh Ranjan
जब कविताएं लिखी जाने लगीं, आत्मा हम हैं, परमात्मा और नहीं कोई, हमारे प्रियतम हैं! रति-क्रिया ही साधना है, सिसकारी प्रार्थना है और सुरतान्त शयन बस वैकुंठादि में वास है... मैंने समझ लिया सर्वनाश है कि किलविष के शैतान और तुलसी-मीरा के भगवान भी तर्क और तुलना के दायरे में हैं! शैतान भगवानियत से अंधेरा फैलाने में लगा है और भगवान शैतानियत से प्रकाश थोप रहा है! झण्डे और नंगे विश्व-विद्यालय का बुजुर्ग छात्र निर्गुण-लय में बोल रहा है- कहो कैसी लगी! Cont... वामपंथी से वार्तालाप
Author Harsh Ranjan
जब कविताएं लिखी जाने लगीं, आत्मा हम हैं, परमात्मा और नहीं कोई, हमारे प्रियतम हैं! रति-क्रिया ही साधना है, सिसकारी प्रार्थना है और सुरतान्त शयन बस वैकुंठादि में वास है... मैंने समझ लिया सर्वनाश है कि किलविष के शैतान और तुलसी-मीरा के भगवान भी तर्क और तुलना के दायरे में हैं! शैतान भगवानियत से अंधेरा फैलाने में लगा है और भगवान शैतानियत से प्रकाश थोप रहा है! झण्डे और नंगे विश्व-विद्यालय का बुजुर्ग छात्र निर्गुण-लय में बोल रहा है- कहो कैसी लगी! Cont... वामपंथी से वार्तालाप
Narendra Sonkar
वोट लेने के सिवा ख्यालों-खबर लेती नहीं देश जाये भाड़ में यूं मौज मारे पार्टियां ©Narendra Sonkar "यूं मौज मारे पार्टियां" #Dream
Ankit
कहीं चली गई आजादी एक देश के सपनो की; यहां वीड के नशे में कुछ नशेरिओ में मानो अमन का पैगाम आया! भले पुत जाए कालक कहीं महिलाओं के आकांक्षाओं पर; यहां शबाब में ध्वस्त बामपंथियो को हिंदुओं में तालिबान नजर आया। देखना कहीं खतम ना हो जाए मुद्दे यू जहरीले तुम्हारे; ऐसे विलक्षण वैचारिक अक्षमता तुम्हारे सिवा और कही भी नही आया। #वामपंथी #विलक्षण #और #कहा #yqdidi #yqbaba
Shivraj Solanki
लोकतंत्र से लोकतंत्र बिगाड़ने चली संविधान को मिटा, संविधान बचाने चली बोलने की आजादी का फायदा उठाने चली देखो -देखो पार्टियां संविधान बचाने चली है जो विशेष राज्य का दर्जा मांगा करती थी आज उसकी ममता देश को बचाने चली है अरे कहीं तो इन्हे सरकार की बेबाकी खली है देखो - देखो पार्टियां संविधान बचाने चली है आज इनके दिल से दिल की बात निकली है इसी लिए इनके हाथों में फ्री कश्मीर की तख्ती है इसका साथ दे रही पार्टियां भी, शायद इसमें मिली है देखो - देखो पार्टियां संविधान बचाने चली है एक बात बताओ, देश की सेना से सबूत मांगने वालों मांगे नागरिकता का सबूत ये बात क्यों नहीं पचती है देखो - देखो पार्टियां संविधान बचाने चली है शिवराज खटीक देखो - देखो पार्टियां संविधान बचाने चली है
Pawan
जय श्री कृष्ण ©Pawan लड़कियों के लिए खतरनाक नववर्ष की पार्टियां
SK Poetic
बहुत खुशी होती है यह कहते हुए कि हम सभी आजादी की सांसे ले रहे हैं।लोकतंत्र का शासन चल रहा है।पर यह कैसा लोकतंत्र है जहां एक तरफ तो जनता को उसके अधिकारों का एहसास कराया जाता है वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां जनता को अपने पैरों तले कुचल रही है।इसे लोकतंत्र कहे या स्वार्थ तंत्र। क्या सही है क्या गलत, ये विचार करना छोड़ दिया कुर्सी के लिए हमने तो,अपराध से नाता जोड़ लिया एक तरफ सैनिकों को देश का पहरेदार बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके ही कारनामा पर सवाल उठाते हैं। ये कैसी राजनीति है जहां कुर्सी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता। देश आजाद है या गुलाम ये सभी समझ नहीं आता।महाराष्ट्र के मुंबई में पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएं घटी उससे ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक पार्टियां अपना सिक्का जमाने के लिए मासूम लोगों की जान से खिलवाड़ कर सकती है।यह विचारधारा हमारे देश को आंतरिक रुप से कमजोर करती जा रही है।आज देश की जो हालत है उसमें जरूरत है कि सभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट होकर आतंकवाद का सामना करना कि स्वार्थ की राजनीति पर अपनी रोटियां सेके। ©S Talks with Shubham Kumar #Books क्या सच में अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिक पार्टियां आतंकवाद फैला रहे हैं?
poetry by heart