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Arora PR
हज़ार बागो क़ी बहारो से बना ये बाग मेरे लिए अजूबा बन गया है . क्योंकि न तो यहां अपेक्षित मखमली घास दिखी न यहा कोई महकता हुआ कोई फूल खिलता हुआ दिखा ©Arora PR अपेक्षित
Parasram Arora
नहीं जानता मैं अपनी सीमा रेखा.... न ही मै अपने दैत्य नुमा भय से मुक्ति पा सका हूँ........ अच्छा होगा मेरे लिए क़ि मैं अपनी ऊर्जा भय भगाने मे खर्च न करके प्रेम को तलाशूँ..... ओर तलाश करने के बाद उसे तराशु भी...... अपेक्षित तलाश
आलोक अग्रहरि
अल्फाजों में कहाँ भारतीय सैनिक का दर्द बता पाऊंगा, बलिदान होने का साहस कहां हर कोई जुटा पायेगा। परिश्रम के बावजूद भी जब उचित परिणाम नही मिलता, तब बहते अश्कों को आलोक कोई कैसे संभाल पायेगा। ✍️✍️✍️आलोक अग्रहरि अपेक्षित परिणाम
Narayan Datt Tiwari
जीवन पथ पर आगे बढ़नें को क्यों ना हम सब ,कुछ कर जाएं जो राह बिछें हैं कांटों से कुछ पल उन पर हम चल जाएं सत्य जहां झूठलाया जाता बन छल डंठ के थपेड़ों से जहां धैर्य भी कर नतमस्तक बैठी छोटे-मोटे भिरूओं से जहां चाह लिए हो रामराज मन रावण को सब बैठा कर खुद की करनी का दोष किसी सज्जन के मांथे चढ़वा कर जहां सोमरस की इच्छा पर सब कार्य कराए जाते हों जो जीवन हम तुम दें ना सके पल भर में उड़ाऐ जाते हों जहां शर्मसार मानवता की पगडंडी बांधी जाती हो इनके चरणों में फूल चढ़ा गुड़गान आरती गाई जाती हो हे शिव पान करो यह सब फिर सत्य सुहानी लग जाए जो कर बैठे घमंड इस जीवन का उनके मुख गुरबाणी लग जाए.. ©"Narayan" @@संशोधन अपेक्षित🙏
Ek villain
प्रत्येक वर्ष 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस पर बाबा साहेब डॉ भीम अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित अर्पित की जाती है डॉक्टर अंबेडकर संविधान में अपेक्षित और हास्य में धकेल दिए गए समाज को प्रगति सुनिश्चित करने के लिए विश्व सार्वजनिक परिधान किए थे सही मायने में बाबा साहब को हम सच्ची श्रद्धांजलि तभी दे पाएंगे जब हम देश में जातिगत भेदभाव और जातीय श्रेष्ठता के कारण अपेक्षित समाज पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम की ©Ek villain #Rajkapoor अपेक्षित ऊपर रोक अत्याचार
Deepak Sisodia
सबको यहाँ, बस अपने ही, मतलब से मतलब हैं जो था यहाँ कल, आज हैं, और बस वहीं अब हैं मण्डी फकीरों की लगी , बिकता ख़ुदा देखा अब तो दुआओं में भी, उनके उनका मतलब हैं रिक्शे चलाने वाले भी , बाबा थे बचपन में बच्चों को भी क्या इल्म, के क्या अदब अब हैं दौलत की चम चम में, यहाँ सब चमचमाता हैं सिक्कों की ये आवाज़ हमदम , क्या गज़ब ढब हैं अब तो यहाँ हर बात में, बस आप दिखता हैं ख़ुद के ख़ुदा हम आप हैं, और आप ही रब हैं दीपक सिसोदिया मतलब ही मतलब....