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Kh_Nazim
भरोसा इश्क़ से ज्यादा यार पे था मेरा मकान ढहने के पीछे हाथ मेरे यार का था....! भरोशा #भरोसा #इश्क़ से #ज्यादा #यार पे था मेरा #मका #ढहने के पीछे #हाथ मेरे यार का था....! #khnazim
Nagvendra Sharma( Raghu)
मकान ढहे तो गम नहीं, ख्वाब नहीं ढहने चाहिये, नींव कमजोर है तो गम नहीं, इरादे मजबुत होने चाहिये ..।। #ritu_writer #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #nagvendracollab #nagvendrasharma #motivation Collaborating with Ritu Bharadwaj Sharma मकान
Rukhsar Khanam
मोहब्बत की इमारत को हम ढहने नही देगे, मोहब्बत की बगीया को हम उजड़ने नही देगे, रौशन रहेगी हमारी भी मोहब्बत ताजमहल की तरह, अपनी मोहब्बत को हम किसी की नजर लगने नही देंगे..!! ✍️मेरे अल्फाज़✍️ ©Rukhsar Khanam #UskePeechhe #मोहब्बत की इमारत को हम ढहने नही देगे, मोहब्बत की बगीया को हम उजड़ने नही देगे, रौशन रहेगी हमारी भी मोहब्बत ताजमहल की तरह, अपनी
Jazbaaatt_rlpanwar
भरत सिंह
मेरे शब्द आनाकानी करते है कागज पर उतरने से, जहन में भरने से, अर्थों में ढलने से , सपनों में पलने से आंसूओं में घुलने से मेरे शब्द आनाकानी करते है चुप सा रहने में, निरर्थक कहने में दीवार सा ढहने में तिरस्कार सा सहने में नाली सा बहने में मेरे शब्द आनाकानी करते है मेरे शब्द आनाकानी करते है कागज पर उतरने से, जहन में भरने से, अर्थों में
तुषार"आदित्य"
हर बार ये लगा,बस खत्म हो गया थोड़ी ही दूर में फिर मोड़ आ गया करके भरोसा जिसको भी अपना माना दिल मे चलाया खंजर और वो चला गया उम्मीद बांध रखी थी एक हाकिम से एक हादसा उसे भी बीमार कर गया बस अभी ही शाखें फिर से हरी हूई थी तूफान एक आया,फिर सब बदल गया बेकार हो गए सिक्के सभी हमारे उनका फटा हुआ भी हर नोट चल गया ढहने को चला है कच्चा सा गांव का घर अब शहर वाला पक्का मकान बन गया हर बार ये लगा,बस खत्म हो गया थोड़ी ही दूर में फिर मोड़ आ गया करके भरोसा जिसको भी अपना माना दिल मे चलाया खंजर और वो चला गया उम्मीद बांध रखी
तुषार"आदित्य"
हर एक नियत बदलने में लगी है ये दुनिया तेज़ चलने में लगी है रूह अपनी किसी कोने में रखकर जिस्म से आशिक़ी होने लगी है ना जाने चल रहा है दौर कैसा जलन बिन आग के होने लगी है ढहने को चली है एक इमारत तो कोई अब भी बनने में लगी है याद रह जाती है वो बात अक्सर हो जैसी भी मगर दिल में लगी है क्या ईमान-धरम क्या ही वफ़ा यहाँ हर चीज़ की बोली लगी है क्यों हो बेचैन ज़रा सा सब्र रखो वहाँ हर एक कि अर्ज़ी लगी है हर एक नियत बदलने में लगी है ये दुनिया तेज़ चलने में लगी है रूह अपनी किसी कोने में रखकर जिस्म से आशिक़ी होने लगी है ना जाने चल रहा है दौर कैस
अशेष_शून्य
पाषाण से कठोर पुरूष प्रेमी बन जाने पर पलाश की पंखुड़ियों से कोमल हो जाते हैं । वहीं पंखुड़ियों सी कोमल स्त्रियां प्रेमिका बन जाने पर पाषाण सी कठोर (सुदृढ़) हो जाती हैं।। -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में ) पाषाण से कठोर पुरूष प्रेमी बन जाने पर पलाश की पंखुड़ियों से कोमल हो जाते ; जिस पर उभरती है ममत्व और वात्सल्य की किर्मीर आभा!! वहीं पंखुड़