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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
दहेजवालों की बोलती बन्द हो गई है आजकल लड़कियां जो कम हो गई है अब नही मांगते है ,कार,मारुति कोई, अब उनके चेहरे पे हवाइयां हो गई है जिनके पैर कभी ज़मीन पे न होते थे, आज उनके पांवों में मेहंदी हो गई है दहेजवालों की बोलती बन्द हो गई है आजकल लड़कियां जो कम हो गई है अब बेटियां जलती नही,जलाती है, जिस्म नही काले मन को जलाती है उन लोगो की रातों की नींद खो गई है दहेज के कारण बहु की कमी हो गई है अब तो दहेजलोभियों लोग सुधर जाओ, अपने मन मे तुमलोग ईमान लेकर आओ, तुम्हारी दहेज की आदतों की वजह से, आज जन्नत सी धरती जहन्नुम हो गई है आज लड़कियों की बड़ी कद्र हो गई है दहेज के कारण लड़कियां जो खो गई है दहेजवालों तुम्हारे गुनाह के कारण ही, आजकल शादियां बहुत कम हो गई है ये दहेज प्रथा अब वो लोग भूल गये है, जिसके कारण घरों में शहआई खो गई है दहेजवालों की बोलती बन्द हो गई है आजकल बेटियां जो कम हो गई है दिल से विजय दहेज पर तमाचा
Sonal pandit
क्यों दहेज की रीत चली क्यों फिर आज एक गीत जली ले तेरी चोखट आज सनम मै आग की होली खेल चली क्यों..... एक तीर चला उस बाबुल पर जिस के आंखों कि थी वो परी क्यों.... क्यों चीर दिया उस मां दिल जिसके आंगन की थी वो कलि क्यों... सोनल शर्मा दहेज
#Jitendra777
रीति और #कुरीतियों में फर्क करना चाहिए, #दहेज_प्रथा जैसी प्रथा खत्म करना चाहिए। दहेज लोभीयों का बहिष्कार करना चाहिए, बेटियों को ले कर ना व्यापार करना चाहिए। दहेज देना औऱ लेना दोनों ही अपराध है, बेटी ही है "गृहलक्ष्मी" सत्कार करना चाहिए। #दहेज
usha
आगे एक और बेटी भी बैठी है जरा संभल कर देना सब पर तुम जैसा तो नहीं फिर भी दहेज कभी न देना आगे एक और बेटी भी बैठी है सबकों अपनी बेटी मान कर चलना लड़का ही देखना कोई भिखारी न चुनना सब कुछ देख कर ही दुल्हा चुनना आगे एक और बेटी भी बैठी है जरा संभल कर देना... ! ©usha #दहेज
Adv. Anjali Singh
दहेज निषेध अधिनियम 1961 लागू होने के बाद भी आज तक दहेज को रोकने में सफल नहीं हो पाये लोगों कि यह मंशा रहती है कि दहेज मुफ्त का धन होता है और बेटी कितनी भी कामयाब क्यों न हो उसे समाज आज भी बोझ ही समझता है ये हमारे समाज की कितनी बड़ी विडम्बना है # दहेज#
पूर्वार्थ
मुझे दहेज़ चाहिए तुम लाना तीन चार ब्रीफ़केस,जिसमें भरे हो तुम्हारे बचपन के खिलौने,बचपन के कपड़े बचपने की यादें,मुझे तुम्हें जानना है,बहुत प्रारंभ से.. तुम लाना श्रृंगार के डिब्बे में बंद कर,अपनी स्वर्ण जैसी आभा अपनी चांदी जैसी मुस्कुराहट,अपनी हीरे जैसी दृढ़ता.. तुम लाना अपने साथ,छोटे बड़े कई डिब्बे जिसमें बंद हो,तुम्हारी नादानियाँ,तुम्हारी खामियां तुम्हारा चुलबुलापन,तुम्हारा बेबाकपन,तुम्हारा अल्हड़पन.. तुम लाना एक बहुत बड़ा बक्सा,जिसमें भरी हो तुम्हारी खुशियां साथ ही उसके समकक्ष वो पुराना बक्सा,जिसमें तुमने छुपा रखा है अपना दुःख,अपने ख़्वाब अपना डर,अपने सारे राज़,अब से सब के सब मेरे होगे.. मत भूलना लाना,वो सारे बंद लिफ़ाफे जिसमें बंद है स्मृतियां,जिसे दिया है तुम्हारे मां और बाबू जी ने,भाई-बहनों ने सखा-सहेलियों ने,कुछ रिश्तेदारों ने.. न लाना टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन,लेकिन लाना तुम किस्से,कहानियां,और कहावतें अपने शहर के.. कार,मोटरकार हम ख़ुद खरीदेंगे,तुम लाना अपने तितली वाले पंख जिसे लगा,उड़ जाएंगे अपने सपनों के आसमान में.. मुझे दहेज़ में चाहिए,तुम्हारा पूरा प्यार पूरा खालीपन तुम्हारे आत्मा के वसीयत का पूरा हिस्सा सिर्फ़ इस जन्म का साथ तो चाहिए ही है.. ©पूर्वार्थ #दहेज