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S ANSHUL'यायावर'
घात प्रतिघात, सृजन नाश। प्रकृति के है ये सिद्धांत अविनाश। काल चक्र, का फेरा गहरा, लीलता ये जीवन का पहरा। मनुष्य बंधा इस दुष्चक्र में, पिसता जैसे कोल्हू का बैला। फिर भी नहीं टूट ती उसकी, सुनहरी स्वप्न बेला। नाचता हैं वो, बनके कठपुतला। जीवन उसका मिट्टी का ढेला। ©S ANSHUL'यायावर' ढेला
Kulbhushan Arora
जो खोया वो मेरा नहीं था जो पाया वो भी मेरा नहीं है इदम न मम इदम न मम क्या तेरा है क्या मेरा है एक फूंक का बस ढेला है माटी काया राख की होगी चार दिनों का बस खेला है -मीनू
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ वो खूबसूरत सा गुलाब है किसी बगीचे का, और हम माटी के ढेले हैं..... वो बेतहाशा हसीं है इस जहां में, और हम कुछ ज़्यादा ही मैले हैं...... ✍️Vibhor vashishtha vs Meri Diary #Vs❤❤ वो खूबसूरत सा गुलाब है किसी बगीचे का, और हम माटी के ढेले हैं..... वो बेतहाशा हसीं है इस जहां में, और हम कुछ ज़्यादा ही मैले
Divyanshu Pathak
" हे प्रकृते " मैं तुम्हारे जब भी समीप आता हूँ स्वयं को शब्दों से बहुत दूर पाता हूँ ! सुनो.... "प्रकृते" जाने क्या बात है तुम में मैं समझ न पाता हूँ मैं इक ढेली मांटी सा पर तब चंदन हो जाता हूँ ! 🏵☕☕🌹🌹💠🙏🌼💮🏵🏵 आओ आज collab करते ह
अबोध_मन//फरीदा
एक बेला खिला अकेला, श्वेत वर्ण अनुरागी काया, महका ख़ुद, आँगन महकाया। निर्झर ख्यालों की झील में उतराता सा आस का ढेला। भोर संग बेला मुसकाया। ना चित न पट चैन, उद्विग्न मन ये कैसा झमेला। ख़ुद सीखा मुझे भी सिखाया। हाँ.. सिखाता है ये बेला खिलना तब भी तुम जब हो मन अकेला जैसे ‘बेला’...’अलबेला’। .. ©अबोध_मन//फरीदा एक बेला खिला अकेला, श्वेत वर्ण अनुरागी काया, महका ख़ुद, आँगन महकाया। निर्झर ख्यालों
नरेश होशियारपुरी
सावन का इतराना जायज़ है। ये बारिश लाये ना लाये लेकिन साथ अपने बारिश की उम्मीद तो लाता है।। ये तो सच बात है , बिना बरसात के सावन ..... सावन नहीं लगता । बिना बरसात के सावन.... मात्र एक महीना सा जान पड़ता है , बल्कि मौसम नहीं....। ऐस
K Talks Official
@k_talks_official ©K Talks Official एक दिन के लिये देश के प्रति प्यार दिखाते है.. रास्ते पर तिरंगे बेच रहे गरीब से 20₹ वाला झंडा 10₹ में मांगते है.. उसी झंडे को बाइक पर लगाकर क
Kh_Nazim
फ़ौजी और ख़त चिठ्ठी ये कागज नही अरमान है शब्द नही इसमें प्यार है अपनों को याद करने का मुकाम है, यह चिठ्ठी नही परिवार है एक फौजी के लिए संसार है रहा वर्ष भर वो अकेला इसके शब्दो से बाधाता सॉस का ढेल, कागज नही यह परिवार का प्यार है चिता वर्दी पहनके आम आदमी नही वीर जवान है यह चिठी नही उसकी तरक्की का फरमान है चिठ्ठी....... नही यह!! अपनों को अपनों के लिए भेजा गया ग़मगीन फरमान है। ये चिठ्ठी नही बस चिठ्ठी नही!!! चिठ्ठी ये कागज नही अरमान है शब्द नही इसमें प्यार है अपनों को याद करने का मुकाम है, यह चिठ्ठी नही परिवार है एक फौजी के लिए
अनुज
कुछ विषधर से विषैले है तन साफ मगर मन मैले है कब काटे गर्दन न पता चले आजू-बाजू सब फैले हैं स्वेत अपितु मटमैले है मित्र शत्रु बन खेले हैं दूर रहें दुःख में जो मेरे सुख में सारे चेले है कुछ मित्र मेरे खपरैले है बन जड़ें वृक्ष की फैले हैं दिल में गुबार रखकर के मुंह पर गुड़ के ढेले है दुख सुख जीवन के ठेले है जीवन के रूप अलबेले है बचे रहो तुम खो मत जाना चहुं ओर तुम्हारे मेले है ©अनुज कुछ विषधर से विषैले है तन साफ मगर मन मैले है कब काटे गर्दन न पता चले आजू-बाजू सब फैले हैं स्वेत अपितु मटमैले है मित्र शत्रु बन खेले हैं दूर