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Parasram Arora
पाप मैंने कई किये और उनके फल भी उसी अनुपात में भुगते फिर पश्चाताप करने के लिये मैंने पुण्यो की तरफ कदम भी बढ़ाये किन्तु मेरे किसी भी पुण्य का मुझे कोई अनुकूल नतीजा नही मिला यध्यपि जरूरी है कि. जीवन में पाप और पुण्य का एक संतुलन हमेशा कायम रहे ©Parasram Arora पाप पुण्य का संतुलन
Parasram Arora
हिसाब लगा रहा हूँ आज उन पापों का जो अब तक मुझसे हुए ही नहीं और उन . पुण्यों का नए सिरे से मूल्यांकन करने का कदाचित समय भी यही है जिन्हे अर्जित किया है मैंने अनजाने मे जिनके लिए मै अधिकृत भी था नहीं # पाप पुण्य का लेखा जोखा
ANSARI ANSARI
इस जग में सदा न रहा है न कोई रहेगा। तूने पाप बहुत कमाया पुण्य का भी ख्याल कर। ग़रीब पुण्य का भाग्य है गरीबों का भी ख्याल कर। तुने खुशियां बहुत मनाया गमों का भी ख्याल कर। ©ANSARI ANSARI पुण्य का भी ख्याल कर
Sneh Prem Chand
काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं, और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष, अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।। दिल की कलम से ©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम #Hope
HP
👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ (भाग ३) महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में रहने वाले प्रत्येक आश्रम वासी को अपनी डायरी रखनी पड़ती थी जिसमें उनके विचारों और कार्यों का विवरण रहता था। गांधी जी के सामने वे सभी डायरियां प्रस्तुत की जाती थीं और वे उन्हें ध्यान पूर्वक पढ़कर सभी को आवश्यक परामर्श एवं मार्ग दर्शन प्रदान करते थे। यह पद्धति उत्तम है। परिवार की व्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं पर विचार करने के लिये घर के सब सदस्य मिलकर विचार कर लिया करें और उलझनों को सुलझाने का उपाय सोचा करें तो कितनी ही कठिनाइयां तथा समस्याएं आसानी से हल हो सकती हैं। मन में उठने वाले कुविचारों की हानि भयंकरता तथा व्यर्थता पर विचार करना तथा उनके प्रतिपक्षी सद्विचारों को मन में स्थान देना, आत्म सुधार के लिए एक अच्छा मार्ग है। विचारों को विचारों से ही काटा जाता है। सद्विचारों की प्रबलता एवं प्रतिष्ठा बढ़ाने और कुविचारों का तिरस्कार एवं बहिष्कार करने से ही उनका अन्त हो सकता है। आत्म निर्माण के लिए इस मार्ग का अवलम्बन करना आवश्यक है। जिस प्रकार सांसारिक कला कौशल एवं ज्ञान विज्ञान की शिक्षा के लिए व्यवहारिक मार्ग दर्शन करने वाले शिक्षक की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्म निर्माण के लिये भी एक ऐसे मार्ग दर्शक की आवश्यकता होती है जिसे आत्म निर्माण का व्यक्तिगत अनुभव हो। गुरु की आवश्यकता पर आध्यात्म ग्रन्थों में बहुत जोर दिया गया है, कारण कि अकेले अपने आपको अपने दोष ढूंढ़ने में बहुत कठिनाई होती है। अपने आप अपने दुर्गुण दिखाई नहीं देते और न अपनी प्रगति का ठीक प्रकार पता चल पाता है। जिस प्रकार छात्रों के ज्ञान और श्रम का अन्दाज परीक्षक ही ठीक प्रकार लगा सकते हैं इसी प्रकार साधक की आन्तरिक स्थिति का पता भी अनुभवी मार्ग दर्शक ही लगा सकते हैं। रोगी अपने आप अपने रोग का निदान और चिकित्सा ठीक प्रकार नहीं कर पाता उसी प्रकार अपनी प्रगति और अवनति को ठीक प्रकार समझना और आगे का मार्ग ढूंढ़ना भी हर किसी के लिए सरल नहीं होता। इसमें उपयुक्त मार्ग दर्शक की अपेक्षा होती है। प्राचीन काल में आत्म निर्माण की महान शिक्षा हर व्यक्ति के लिए एक नितान्त अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती थी और तब गुरु का वरण भी एक आवश्यक धर्म कृत्य था। आज की और प्राचीन काल की अनेक परिस्थितियों और आवश्यकताओं में यद्यपि भारी अन्तर हो गया है फिर भी आत्म निर्माण के लिए उपयुक्त मार्ग दर्श की आवश्यकता ज्यों की त्यों बनी हुई है। जिसने यह आवश्यकता पूर्ण करली उसने इस संग्राम का एक बड़ा मोर्चा फतह कर लिया, ऐसा ही मानना चाहिए। .... क्रमशः जारी ✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ
Prashant Mishra
तन बहकने लगा, इतनी रोचक हो तुम मन चहकने लगा, इतनी पोषक हो तुम तुमको पाकर के यूँ लग रहा है मुझे के मेरे 'पुण्य' का पारितोषक हो तुम --प्रशान्त मिश्रा मेरे पुण्य का पारितोषक हो तुम