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MSW Sunil Saini CENA

काव्य-रचना - "अहमियत" (मेरी परछाई से उद्धरित) #PoeticAntakshri #mswsunilsainicena #Hindi #कविता

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Sarita Shreyasi

मेरी पुस्तक, " कच्चे मन की प्रीत कोरी " से उद्धरित #कच्चे मन की प्रीत कोरी #yqdidi

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बरबस बांधे नेह की डोरी,
नयनों के रस्ते,चैन की चोरी,
करे ढीठाई, करे सीनाजोरी,
कच्चे मन की प्रीत कोरी.. मेरी पुस्तक, " कच्चे मन की प्रीत कोरी " से उद्धरित 
#कच्चे मन की प्रीत कोरी #yqdidi

Sarita Shreyasi

Meri पुस्तक " कच्चे मन की कोरी प्रीत" से उद्धरित #प्रीत #प्रेम #yqdidi #कच्चे मन की कोरी प्रीत #

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प्रीत ही पूजा,
प्रीत समाधि,
प्रेम बिना यह
दुनिया आधी,
प्रीत ही अंत,
प्रीत ही आदि,
प्रेम ही मन की
पहली आधि। Meri पुस्तक " कच्चे मन की कोरी प्रीत" से उद्धरित
#प्रीत #प्रेम #yqdidi #कच्चे मन की कोरी प्रीत #

PS T

#दैनिक_भास्कर से उद्धरित #copied सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करत #Collab #YourQuoteAndMine #शहीददिवस

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देश के बंटवारे के समय गाँधी ने 
धमकी देकर पाकिस्तान को 
55 करोड़ रुपये दिलाए थे।
कहा जाता है कि ये रुपए मांगे 
तो पाकिस्तान ने टैंट खरीदने 
के लिए थे, लेकिन उसने इनका 
इस्तेमाल भारत के विरुद्ध किया 
और हथियार खरीदे।
सरदार पटेल ने इसी आशंका 
के चलते पैसे देने से इंकार किया 
तो गाँधी ने आमरण अनशन 
की धमकी देकर पैसे दिलवाए ।

-दैनिक भास्कर से साभार— % & #दैनिक_भास्कर से उद्धरित #copied
सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करत

Pravesh Kumar

कर्मयोगिनी उसकी हीन दशा मत देखो देखो उसके प्रतिभास को। उदर-अनल की तुष्टि हेतू गर्व भरे उसके प्रयास को। नहीं उसे स्वीकार पराजय #Hindi #नारी #yqbaba #हिंदी #yqdidi #yqpoetry #कविताकोश #तीखर

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 ~ कर्मयोगिनी ~
उसकी हीन दशा मत देखो, 
देखो उसके प्रतिभास को, कर्मयोगिनी

उसकी हीन दशा मत देखो
देखो उसके प्रतिभास को।
उदर-अनल की तुष्टि हेतू
गर्व भरे उसके प्रयास को।

नहीं उसे स्वीकार पराजय

रजनीश "स्वच्छंद"

मर्यादा टापूं।। तुम आज कहो तो मैं ये छापूं, थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं। जो देख देख भी दिखा नहीं, जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं। जो गाये गए ना #Poetry #kavita

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मर्यादा टापूं।।

तुम आज कहो तो मैं ये छापूं,
थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं।
जो देख देख भी दिखा नहीं,
जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं।
जो गाये गए ना भाए गए,
बस पांव तले ही पाए गए।
जीवन जिनका फुटपाथी रहा,
कपड़े के नाम बस गांती रहा।
एक लँगोटी जिन्हें नसीब नहीं,
थाली भी जिनके करीब नहीं।
रक्त शरीर दूध छाती सूखा,
नवजात पड़ा रोता है भूखा।
भविष्य कहां वर्तमान नहीं,
जिनका जग में स्थान नहीं।
जमीं बिछा आसमां ओढ़कर,
सड़क पे सोया पैर मोड़कर।
नाक से नेटा मुंह से लार,
मिट्टी बालू जिनका श्रृंगार।
चलो आज उनकी कुछ कह दूं,
एक गीत उनपे भी गह दूँ।
चौपाई छंद दोहा या श्लोक,
लिख डालूं जरा उनका वियोग।
जो कलम पड़ी थी व्यग्र बड़ी,
कण कण पीड़ा थी समग्र खड़ी।
भार बहुत रहा इन शब्दों का,
किस कंधे लाश उठे प्रारबधों का।
आंसू रोकूँ या रोकूँ शब्दधार को,
किस कवच मैं सह लूं इस प्रहार को।
जाने किस पर मैं क्रोध करूँ,
हूँ मनुज क्या इतना बोध करूँ।
क्या बचा है जो मैं शेष लिखूं,
किन कर्मों का कहो अवशेष लिखूं।
मैं नीति नियंता विधाता नहीं,
मैं एक यंत्र हुआ निर्माता नहीं।
पर कहीं कलेजा जलता है,
जब लहु हृदय में चलता है।
मैं उद्धरित नहीं उद्धार करूँ क्या,
कुंठित मन से उपकार करूँ क्या।
मुझपे मानो ये सृष्टि रोयी है,
मनुज की जात भी मैंने खोयी है।
मैं रहा जगा गतिमान रहा,
पर हाय, आत्मा सोयी है।
हाँ हाँ आत्मा सोयी है।
सच है आत्मा सोयी है।

©रजनीश "स्वछंद" मर्यादा टापूं।।

तुम आज कहो तो मैं ये छापूं,
थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं।
जो देख देख भी दिखा नहीं,
जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं।
जो गाये गए ना
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