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Manmohan Dheer
आश्चर्य है तो अलौकिक है समझ आया तो लौकिक है इस बीच ही कहीं छुपा है सुना कि वो सार्वभौमिक है अलौकिक
Amit Singhal "Aseemit"
राधा और कृष्ण का प्रेम सदैव रहा अलौकिक, इस संबंध का कोई आधार नहीं रहा था तार्किक। यह केवल हृदय से हृदय का गहरा रहा संबंध, किसी रीति और प्रथा का नहीं था कोई अनुबंध। ©Amit Singhal "Aseemit" #अलौकिक
Parasram Arora
शाश्वत के द्वार खुले अमृत के मेघ बरसे. तृप्ति की बौछारे धरती पर ईश्वरीय उपस्तिथी का सज्ञान देने लगी अब अच्छा होगा अगर हम. कंकड़ पथर बिनना बंद करे .. ठीकरो से खेलना बंद करें ताकि चैतन्य सागरके तट पर फैले हुेुए विस्तीर्ण शून्य और उसके अलोकिक नाद को सुनने की काबलियत हम हासिल कर सकें ©Parasram Arora अलौकिक नाद.....
SG
मैने उस आलोकिक सत्ता को बेहद करीब से देखा है, मैने खुद को चांद के करीब देखा है, मैने महोब्बत को महोब्बत से महोब्बत करते देखा है, मैने प्रकृति मे कृष्मे को देखा है,, मैने तारो को टिमटिमाते, और रात को मुस्कुराते, देखा है , अपने प्रियतम मे एक मासूम बच्चे को देखा है, मैने प्रकृति समय नियति को एक होते देखा है इन सभी मे मैने अपने प्रियतम को देखा है, अपने प्रियतम मे मैने बहुत कुछ देखा है ©❤SG❤ अलौकिक सत्ता
Jyoti Agrahari
एक ज्योति पुंज सी बन जाऊँ ये नाम अमर अब मेरा हो , जग में आएँ तो कुछ करना है वो काम अमर अब मेरा हो। ज्योति
jyoti gurjar
हां हूं में, ज्योति सांवली-सांवली सी ,जरा बावली बावली सी , वो रंग पर बड़ा इतराती हैं, पर हमेशा अपनी मान मर्यादा को खोकर जाती हैं। समाज का नाम बढ़ाने की जगह, वो कुल को ही बदनाम कर जाती हैं। ©jyoti gurjar #ज्योति
Prakash Shukla
हो कौन जिसको देखते ही, सिहर जाता तन बदन। आप भूधरा का अंश हो,या हो विचारों की पवन।। आपको पहचानने को मेरा,हो रहा विक्षिप्त मन। आभा अलौकिक देखनें को,झुलसते मेरे नयन।। मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,। मैं शान्त हूँ मैं ज्वाल हूँ,मैं प्राणहारक काल हूँ। मै दिक् दिगन्त में लीन हूँ,रूप में विकराल हूँ। मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,। नदियों की बहती धार हूँ,सारे विश्व की हुँकार हूँ ममता में छलकता प्यार हूँ,ज्वालामुखी उद्गार हूँ। मुझसे सृजन है सृस्टि का,मुझमें ही होता है पतन कण कण में मैं ही व्याप्त हूँ,प्रकाश का मैं जाल हूँ। मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,। ब्रह्मांड का मै आदि हूँ,मैं अन्त हूँ मैं अनादि हूँ मैं भूत हूँ मैं आज हूँ,मैं ही भविष्य का राज हूँ। मै विकटसम मैं विराट हूँ,मैं ही समस्या काट हूँ मैं गगन हूँ मैं चन्द्र भी ,मैं ही प्रभाकर लाल हूँ। मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।। अलौकिक छवि
Anjali Jain
प्यारी सीता, तुम पर बहुत अभिमान है पर इस अभिमान को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्द नहीं हैं! सारी सुख - सुविधाओं को छोड़ दें, लेकिन जो मानसिक यातना व कष्ट तुमने सहे, उनके लिए अयोध्या अक्षम्य है इससे यह तो सिद्ध होता है कि स्त्री अपने कष्टों में बिल्कुल अकेली है! कोई परिवार, कोई समाज,कोई बंधु - बांधव उसके साथ नहीं होता! चाहे वह सीता रही हो या द्रोपदी! सीता, तुम्हारी असीम पीड़ा को समझने के लिए भी हृदय चाहिए! सुकोमल सीता ने वज्र जैसा हृदय बनाकर, पुत्रों का मोह त्यागकर, दृढ़तापूर्वक धरती मां की गोद में जाने का जो निर्णय लिया, वह अहो! अहो! तुम्हारी इस कठोरता ने हृदय और आत्मा को असीम शांति और शीतलता प्रदान की, सारे कष्टों को झुलसन जैसे शीतल हो गई! स्त्री चुपचाप सहन करती है उसका आशय यह तो नहीं कि उसकी सहनशीलता की कोई सीमा नहीं, एक सीमा के बाद उसका हृदय सचमुच वज्र बन जाता है! पुरुष और समाज पहला निर्णय कर सकता है पर अंतिम निर्णय तो उसीका होगा! राम, उस समय तुम कितने अकेले थे? ये परिवार, ये समाज क्या उस दुख को दूर कर सकते थे, जिस समाज के लिए तुमने निर्दोष और महान सीता का साथ छोड़ दिया था! #अलौकिक सीता #03.05.20