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Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 जो अविकसित एवं पिछड़े है उनके लिए मनुष्य जीवन कुछ विशेष महत्व नहीं रखता !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 जो अविकसित एवं पिछड़े है उनके लिए मनुष्य जीवन कुछ विशेष महत्व नहीं रखता !.i. j
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 लोग आयु की दृष्टि से बड़े हो जाते हैं , पर चिंतन की दृष्टि से बालक , अविकसित ही बने रहते हैं !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 लोग आयु की दृष्टि से बड़े हो जाते हैं , पर चिंतन की दृष्टि से बालक , अविकसित ही बने रहते हैं !.i. j
MANJEET SINGH THAKRAL
Anil Ray
पुरुष की एक संज्ञा उसका पौरुष और अदम्यता से परिपूर्ण अद्भुत साहस है। यह साहस अतिश्योक्ति और दुष्स्वरुप धारण कर पाशविकता में परिवर्तित... पुरुष सत्ता ही स्त्री शक्ति से श्रेष्ठ है...! और पुरुष सत्ता के समर्थक सदैव ही इसी रूप का अन्यायोचित उपयोग सतत रूप से सदियों से प्रचलित भी है। परन्तु...पुरुष हर्षोल्लास से खुशी मनाये वह सदा ही विकास क्रम में स्त्रियों से पिछड़ा हुआ अविकसित व विकासशील है। जिस दिन पुरूष सच में विकास प्राप्त कर पुरुषोत्तम स्वरुप में होगा वह स्त्री ही है। दरअसल वात्सल्य, प्रेम, दया एवं कोमलता से ही इस सृष्टि का संरक्षण सम्भव है और यह सब स्त्रियों के सद्गुण है पुरुषों के नही। स्वभाव का एक ओर नाम है प्रकृति..और जिसकी प्रकृति विकृत उसकी सृष्टि भी। अजीब है ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग इस महासृष्टि से अपना एकाधिकार चाहते है। जो पुरुष किसी स्त्री की आबरू को संरक्षण नही देता अथवा प्रयास ही नही करता है... वह पुरुष माँ का पुत्र, बहिन का भाई या फिर पत्नी का पति अथवा क्या महिला-मित्र कहलाने का न्यायिक अधिकारी है??? दोस्तों बंदिशें चारदीवारों की नही है चारदिवारी में बंद तहज़ीब की है वरना.. यह सृजन प्रकृति तो अपनी हैसियत गर्भावस्था के दौरान भी दिखा सकती है तुम साहस को अपनी निजी सम्पत्ति का ख्याल भी मन से निकाल फेक दो... अगर स्त्री प्रकृति है तो क्यों नही पुरुष इस प्रकृति में समर्पित भाव को लेकर पूर्णतः स्वयं को समाहित कर दे ताकि सृष्टि सुरक्षित और रमणीय रहे सदा। ©Anil Ray 🩷🩷🩷 स्त्री प्रकृति या प्रकृति स्त्री 🩷🩷🩷 पुरुष की एक संज्ञा उसका पौरुष और अदम्यता से परिपूर्ण अद्भुत साहस है। यह साहस अतिश्योक्ति और दुष्स
Ravendra
Poonam Ritu Sen
"अनभिज्ञता का आवरण लिए अब और चुप नहीं बैठ सकते हम" I performed this poetry on Raipur's 2nd OPEN MIC, Read full poetry in caption ( सभी प्रकार के सामजिक बुराइयों और कुरीतियों को एक ही कविता में पिरो कर एक तरह की खिचड़ी लिखने की कोशिश मैंने की है ) लिप्त हैं आज हमारे समाज मे हजारो बुराइयाँ लाखों में कुरीतियां उनमें से- कुछ छपती है अखबारों में कुछ दिख जाती है आम बाजारों में कुछ बिकती है