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सुसि ग़ाफ़िल
विश्वास की कंटीली तारों से लिपटकर जख्मी हुआ हूं , क्या तेरे शहर का मयखाना, दवाखाना!! विश्वास की कंटीली तारों से लिपटकर जख्मी हुआ हूं , क्या तेरे शहर का मयखाना दवाखाना!!
Manju (Queen)
**आत्मविश्वास ** तीर से न तलवार से लड़ाई तो जीती जाती है आत्मविश्वास से मन में लगन , आँखों में सपने साहस की डोर थामे चल दे कंटीली राह में होंसलों के ले तू पंख पसार असीमित है आसमां धीर बन वीर बन अपने बाहुबल से समन्दर से भी राह निकल आती है आत्मविश्वास से अर्जुन सा लक्ष्य साध भरत सा बन वीर गंगा के वेग रोक दे देवव्रत सा बन दृढ़ प्रतिग्य तप एकलव्य सा बन दानवीर कर्ण सा कृष्ण विवेक मन सारथी से संसार के कुरुक्षेत्र में धर्म पताका लहराती है आत्मविश्वास से **आत्मविश्वास ** तीर से न तलवार से लड़ाई तो जीती जाती है आत्मविश्वास से मन में लगन , आँखों में सपने साहस की डोर थामे
श्री कन्हैया शास्त्री जी
ग़ज़ल- जरूरी तो नहीं ज़िंदगी में सबको प्यार मिले ये ज़रूरी तो नहीं, सबको मनचाहा यार मिले ये ज़रूरी तो नहीं। चाहता कौन है बिसात गम की बिछाना, सबको सौगात-ए-आहलाद मिले ये ज़रूरी तो नहीं। माना सच के सिवा आईना कुछ भी कहता नहीं, सबको आब-ए-आईना मिले ये ज़रूरी तो नहीं। कंटीली राहों ने हमें खूब आज़माया है, सबको राह-ए-गुल ही मिले ये ज़रूरी तो नहीं। एक झलक के लिए तरसी उम्र भर है नज़र, सबको दीदार-ए-यार मिले ये ज़रूरी तो नहीं। यादें ही यादें हैं अब भी मेरे ज़हन-ओ-ज़िगर, सबको नाकाफ़ी याददाश्त मिले ये ज़रूरी तो नहीं। जला है जिस्म कड़क धूप में अक्सर "स्मित", सबको शजर-ए-साया मिले ये ज़रूरी तो नहीं। #ग़ज़ल ज़िंदगी में सबको प्यार मिले ये ज़रूरी तो नहीं, सबको मनचाहा यार मिले ये ज़रूरी तो नहीं। चाहता कौन है बिसात गम की बिछाना, सबको सौगात-
Vandana
आज भी तेरी तस्वीर देख कर धड़कने बढ़ जाया करती हैं आज भी तेरी खामोशी सौ सवाल पूछा करती हैं,,,,, आज भी तेरी तस्वीर देख कर धड़कने बढ़ जाया करती हैं आज भी तेरी खामोशी सौ सवाल पूछा करती हैं,,,, मालूम है तू घिरा है कई परेशानियों में जिंदगी
Poonam Suyal
ज़िंदगी (अनुशीर्षक में पढ़ें) विरोधाभास कविता ज़िंदगी जिंदगी है सुख का बिछौना, तो दुःख की कंटीली सेज भी है खुशियों से है ये भरपूर, तो ग़मों से भी पड़ता वास्ता रोज़ ह
यशवंत कुमार
चाहता हूँ चाहता हूँ; तुम्हें एक गुलाब दूँ, मटमैली,चित्तीदार,कंटीली,कोमल डाली से तोड़कर; नई लजाई, सकुचाई, पत्तियों के बीच; कई अधमुंदी कलियों से हट कर है यह. खिलने को व्याकुल, एकदम टेस लाल. हो जाते हैं कभी सुर्ख़ जैसे शर्म से तेरे गाल! इस कली को मुस्कुराना शायद तुमने ही सिखाया है! तभी तो तेरा रूप लावण्य इसमें निखर आया है!! पिछले कुछ पलों से बस निहार ही रहा हूँ इसे डरता हूँ , कहीं छू देने भर से ही इसकी नैसर्गिक सुंदरता कम न हो जाए! इसकी शनै: - शनै: खिलती हँसी मंद न हो जाए! सोचता हूँ, आख़िर क्या हक़ है इस पर मेरा ? क्यों तोडूँ इसे? क्या भावनायें व्यक्त नहीं की जा सकती किसी और तरीक़े से?? चाहता हूँ चाहता हूँ; तुम्हें एक गुलाब दूँ, मटमैली,चित्तीदार,कंटीली,कोमल डाली से तोड़कर; नई लजाई, सकुचाई, पत्तियों के बीच; कई अधमुंदी कलियो
आकाश चारण
थार घास से महरूम जरूर है किन्तु कविताओं से नहीं इसीलिए आज भी थार में अपनेपन की खुशबू है जो चहुँओर बिखर रही है आकाश चारण "अर्श" मुझे इसका क़तई इल्म नहीं कि कविता कैसे लिखी जाती है आखिर कैसे कोरे कागज पर कुछ लकीरें उकेरी जाती है मुझे इसका क़तई इल्म नहीं है लेकिन फिर भी म
OMG INDIA WORLD
*रामायण कथा का एक अंश* जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की... 🔰🔰🔰🔰🔰🔰 *श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी ! की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया ! श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे ! बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?" *धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !" प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना ! कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना ! मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना" श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ? फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?" *श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !" *"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?", *धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं ! "अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे ! मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!" अर्थात *रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं । जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है । 🔰🔰 इसीलिए कहा गया है कि... *रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही, *मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही, बल्कि... सिर्फ और सिर्फ *आत्मीय "एहसास"* से ही बनते और *निर्वहन* किए जाते हैं। जहाँ *एहसास* ही नहीं, *आत्मीयता* ही नहीं .. वहाँ *अपनापन* कहाँ से आएगा l 🍃🍂🍃🍂🍃 *हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा* 🙏🚩🌷🚩🙏 ©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD *रामायण कथा का एक अंश* जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की... 🔰🔰🔰🔰🔰🔰 *श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर
Manjeet Sharma 'Meera'