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Anuj Ray
हर मौसम में लगे मौसमी ,बदले रंग हजार, गली-गली ससुराल है उसकी, बिस्तर है हर द्वार। दुल्हन जैसी लगे रात दिन, नए-नए सिंगार, किस्मत लेकर जन्मी है, करना चाहे हर कोई प्यार। ©Anuj Ray # हर मौसम में लगे मौसमी,
Rajesh vyas kavi
रहो तुम यूं ही मेरे संग_अंग से अंग मिलने दो। धड़कनों की बगिया में महकते फूल खिलने दो।। मौसम भी सुहाना है हवाएं चल रही ठंडी। ऐसे प्यारे मौसम को _ यों ही न निकलने दो।। © Rajesh vyas kavi दिल का तराना _मौसम सुहाना _ #प्यार #इश्क #मौसम #woaurmain
Aditya Neerav
घटनाएं शर्मसार करती हैं मानवता को तार-तार करती हैं मर्यादा को लांघकर बर्बरता को पार करती हैं ©Aditya Neerav #मणिपुर
कलम की दुनिया
तुमने निर्वस्त्र नही किया सिर्फ स्त्री को तुमने निर्वस्त्र किया भारत की मर्यादा को तुमने निर्वस्त्र किया भारत की सभ्यता को तुमने निर्वस्त्र किया भारत की अस्मीता को तुमने निर्वस्त्र कर दिया भारत माता को था तुम्हारा आक्रोश तुम कर राख घरों को बदला तो ले रहे थे थी तुम्हारी भीतर क्रोध की अग्नि तुम कर हत्या वहां के इंसान का बदला तो ले रहे थे देवों, ऋषियों की भूमि को तुमने हैवानियत के नाम कर दिया विश्व पटल पर तुमने मां भारती को शर्मशार कर दिया तुमने निर्वस्त्र नहीं किया सिर्फ स्त्री को तुमने निर्वस्त्र कर दिया भारत मां को ये कैसी मानसिकता तुम्हारी अपनी बहन की इज्जत तुम्हें प्यारी और दुसरो की बहन बस भोग की थारी तुमने निर्वस्त्र नहीं किया स्त्री को तुमने निर्वस्त्र कर दिया भारत मां को ©कलम की दुनिया #मणिपुर
अंदाज
मौसम ए इश्क है ज़रा,खुश्क हो जाएगा, ना उलझिए हमसेे वरना इश्क हो जायेगा। #Dear Unknown# ©अंदाज # मौसम #मौसम #Drops
खामोशी और दस्तक
ताज्जुब नहीं करना अब अगर इस पीढ़ी की बच्चियां भीड़ से डरने लगें जहां देखें वो कोई पुरुष हनुमान चालीसा या कलमा पढ़ने लगे सहमी सहमी सी रहे हर पल अपनों को भी खुद से दूर करने लगे ताज्जुब नहीं करना अब अगर इस पीढ़ी की बच्चियां उम्र से पहले 'कुछ'सवाल करने लगे परखने लगे आंखों से हवस ख़ुद के पर कतरने लगे बंद करने लगे खुद को चार दिवारी में अपने सपनों के पर कतरने लगे खोने लगे उनकी हंसी की खनक रुह उनकी सड़ने लगे। ©खामोशी और दस्तक #मणिपुर
करन सिंह परिहार
सुन कर चीखें अबलाओं की, मैं व्याकुल होकर सिहर गया। फिर हृदय कंपनों की गति का, आवेग तीव्र हो बिखर गया। यह राज भोग का महा ज्वार। कंचन महलों का विष अपार। सत्ता की गलियों का सियार। बस नोच रहा तन का शृँगार। क्या मानवता का यही सार। जो हुई आबरू तार तार। नारी जो जीवन का अधार, कर रही धरा पर चीत्कार, लेकिन गूँगे, अंधे शासक , झूठे उद्गार सुनाते हैं। कुर्सी की लालच में बँधकर, हो मौन पलक झपकाते हैं। शकुनी के फेंके पासों से, मानवता में विष उतर गया। फिर द्वापर का दृश्य भयावह, मेरी आँखों में पसर गया। ©Karan #मणिपुर
@YahanZazbaatBikteHai..
जात धर्म में बट गया इंसा सागर धरा बटा संसार कुंठित हृदय भ्रमित बुद्धि बदल गया राजनीति का सार न रहे धर्म योद्धा और कृष्ण टूटे तीर बेधार तलवार शस्त्र शास्त्र खुद ही उठालो न जाने कब हो अवतार समय समय पर चीरहरण होता रहता अनेको प्रकार अब स्त्री लाज़ तुम्हारे हाथो न सहन करो ये अत्याचार निंद्रा से जागो स्वयं को झांको याद करो तुम शपत भीम की महाभारत को हो तैयार #मणिपुर ©@YahanZazbaatBikteHai.. #मणिपुर