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Abhishek Rajhans
दर्द मुझे कितनो ने दिया सब भूल जाना चाहता हूँ दर्द को सीने से लगा कर दर्द को जी लेना चाहता हूँ कब किसने सीने पर वार किया कब किसने पीठ पर खंजर भोंका सब भूल जाना चाहता हूँ दर्द को जी लेना चाहता हूँ थी भूल मेरी ये गैरो को अपना बनाने की अपनों ने भी बेरुखी ऐसी की की सब अब राख कर देना चाहता हूँ मैं अब और कुछ नहीं जज्बातो के जंजाल से रिहाई चाहता हूँ नींद अगर मौत आने से आये तो मैं अब मौत चाहता हूँ दर्द को सीने से लगा कर दर्द को अपना बना कर सब भूल जाना चाहता हूँ दर्द को जी लेना चाहता हूँ —अभिषेक राजहंस मेरी कविता --"दर्द को जी लेना चाहता हूँ"
मोहम्मद मुमताज़ हसन
माँ जैसी- धरती जीवन में हरा भरा रंग भरती करती उपकार बहुत मानव पर,जीव जंतुओं पर और उन समस्त प्राणियों पर- जिन्होंने माँ मानकर पूजा उसे कष्ट न पहुँचाया उसे हृदय को शीतलता प्रदान किया सदैव धरती है तो हरियाली है, प्रकृति की छटा निराली है मानव चाहे जितना रौंदता रहे ,छलनी करता रहे सीना धरती का वह सह लेती है सब बहुत सहनशील है धरती कोई कष्ट नहीं होता क्या उसे होता है परंतु-भूलकर वह अपनी पीड़ाएं सारी/ चिंता करती है सिर्फ़ और सिर्फ समस्त प्राणियों की, जीव जंतुओं की और मानव की भी!! ( मोहम्मद मुमताज़ हसन ) #धरती #कविता
Ravindra Singh
तुझे चाहने की वजह नहीं कोई , वस तुझे चाहता हूँ तो चाहता हूँ । ©Ravindra Singh तुझे चाहने की वजह नहीं कोई , वस तुझे चाहता हूँ तो चाहता हूँ ।