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Divyanshu Pathak
जातियाँ ( समय के गर्त में और गर्भ में ) 1. राजपूत 🗡🏹 वेद,उपनिषद,स्मृति और हमारे प्राचीन ग्रंथों में 'जाति' को प्राथमिकता नहीं दी गई थी।'राजपूत' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'राजपुत्र' से हुई है।जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया तो उसने भी यहाँ के राजाओं को 'क्षत्रिय' लिखा और कहीं कहीं राजपूत कहा।श्री जगदीश सिंह गहलोत ने लिखा है कि- "मुसलमानों के आक्रमण से पहले यहाँ के राजा 'क्षत्रिय' कहलाते थे।बाद में इनका बल टूट गया तो स्वतंत्र राजा के स्थान पर सामन्त, नरेश बनकर रह गए।इसी समय में ही शासक राजाओं के लिए 'राजपूत' या 'रजपूत' शब्द सम्बोधन के लिए प्रयोग में लिया जाने लगा।आठवी शताब्दी तक इस शब्द का प्रयोग कुलीन क्षत्रियों के लिए किया जाता था।चाणक्य,कालिदास और बाणभट्ट के 'राजपुत्र' मुसलमानों के समय अपने राज्य खो कर 'राजपूत'बन गए। राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कह
vaishali
होऊ अबला सबला अष्टाक्षरी काव्य ---–------------------------ होऊ अबला सबला लेकी सावित्रीच्या आम्ही खूप सोसला अन्याय नका हे विसरू तुम्ही लढू अन्याय विरुद्ध आता बनून सबला कमजोर नाही कोणी नाही कोणीच अबला कष्ट करुनी जिद्दीने क्षेत्र सारी सर केली चंद्रावर पोहचले कुठे ना कमी पडली स्वतः निघाले शोधण्या हरवले जे अस्तित्व दाखवण्या जगाला हे माझे खरे व्यक्तिमत्त्व अष्टाक्षरी काव्य#मराठी काव्य
jyoti gurjar
जिस से कुछ लोग जलते हैं, उस से चार कदम दूर से चलते हैं। _ज्योति गुर्जर #काव्य
Parasram Arora
काव्य ... हमारे भीतर भाव का उद्रेक है एक भावभीनी तरंग है काव्य अप ने से जुड़ने की पहली प्रतीति है पहला साक्षीत्कार है काव्य क़े बिना हमारे जीवन मे वह जो ह्रदय और अदृश्य क़े बीच का सेतुः है वह निर्मित नहीं हो पाताहै. काव्य एक इंद्रधनुष को पृथ्वी और आकाश से जोड़ क़र सारे ध्वदो को मिटा देता है वही काव्य दो किनारो को दो नहीं रहने देता एक कर देता है काव्य क़े लिए ह्रदय को नाचने की कला आनी चाहिए ©Parasram Arora काव्य
Durga Deshmukh
काव्य काव्यातुन पुन्हा पुन्हा तुझी माझी कळी खुलु दे चांदण्या राती हात हाती तुझ्या सोबत झोपाळ्यावर झुलु दे तु प्रेमाचा सागर तुला भेटण्याची ओढ खळखळुन वाहते गंगामाई तिर्थ अमृताहुन गोड तुला भेटण्या आतुर वाट पहाते चंद्र भागा दर्शन दे रे भगवंता तुझ्या चरणाशी जागा दुर्गा देशमुख ©Durga Deshmukh काव्य