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D.P. Singh
हार गए कोई बात नहीं, हम आज नहीं कल जीतेंगे, जिन चालों से थे हार गए, हर दांव हार से सीखेंगे । जीत नहीं तो हार सही, मैदान उतरकर देखेंगे, शीशे की शमशीर सही, हम इस से ही लोहा लेंगे ।। रण
Kanupriya Rishimum
कोन कहता है बंद किस्मत वालो की कोई ताली नहीं होती.... सूखे पेड़ो पर ....क्या कभी कोई डाली नहीं होती.... अरे जो झुक जाता है अपने माँ-बाप के पैरो में…... सुन......उस इंसान की किस्मत... कभी खाली नहीं होती.... वक्त लगता है...चीजों को,.हालातों को सुधरनें में .. घर में छुपे अस्तीनो के सांपों को पकड़ने में... जो मतलब के लिए अपनों को बेबाक डसते हैं दूध का कर्ज़ क्या ही है ? वो अपनों की मौतों का भी..... हिसाब रखते हैं मां बाप तो.. उनके लिए.....बस !!! पैसे को चाबी है... स्नेह,प्यार,विश्वास, सब समय की बरबादी है... बेशर्म घूमते हैं अपने दो गले मुखौटो के साथ.. और सबसे कहते है..... कि अब तो हो गए हैं अनाथ... वो सबकुछ पाकर भी अपने दुख का रोना रोते हैं बस धन, दौलत, ज़मीन, पाने का षडयंत्र बोते हैं... अरे...मूर्ख अपनों के लिए तो अपने..अपना सब कुछ वार देते हैं... रिश्ते बचाने के लिए अपना...सब कुछ हार लेते हैं याद कर लेना तुम वो धर्म युद्ध...... महाभारत का वो रण और वो कृष्ण की चेतावनी.... जहां धर्म ने अधर्म पर विजय प्राप्त की थी .... अभी तो बस ...ये रण की शुरुवात है... हर पल, हर पग, हर समय.... कौरवों की पांडवो से......हर हाल में बस मात है.... © Kanupriya Rishimum रण....
Babli BhatiBaisla
भूल में है तू अगर तो याद कर ले ध्यान से कमजोर नहीं मौन है स्त्री अपने स्वभाव से बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla रण
gauri kulkarni
कधी कधी मी मांडते जुन्या आठवणींचा पसारा हरवते काही क्षण मिरवते काही क्षण कधी कधी उलगडतो पट अलवार जपलेल्या नात्यांचा गुंत्यात गुंतते नकळत मन सापडतात मग सोनेरी पान कधी कधी झेपत नाही अपेक्षांचं ओझं लुटुपुटूच्या भांडणात होतंच की तुझं-माझं अश्रूंचा बांध फुटला की आवरता आवरत नाही अन् अबोल्यातुन काही सावरता सावरत नाही कधी कधी मात्र आकाश निरभ्र असतं स्वच्छशा मनाच्या तळाशी प्रेमच साठलेलं दिसतं हळुवार हातांनी तू त्या प्रेमाला कुरूवाळतोस स्पर्शाच्या भाषेतून सगळं दुःख विरघळून टाकतोस कधी कधी भेटतो आपण अनोळखी होऊन अन् वळणावरून चालताना जातो एकमेकांत हरवून तुझं माझं अस्तित्व आता वेगळं उरत नाही सुखं दुःख वाटून घेताना आयुष्य आपल्याला पुरत नाही #कधी कधी
its.vedee
कधी कधी.. शब्द नाही ,भावना असाव्या लागतात ओढं नाही,साथ हवी असते संवाद नसला तरी विश्वास असावा लागतो अबोला असलं तरी प्रेम असावं लागत.. ©its.vedee कधी कधी..
कवी - के. गणेश
कधी रात्र रात्र जागून शब्दांना कुरवाळत असतो, शब्द कागदावर उतरताना मनात दरवळत असतो.! @kganesh कधी कधी शब्दासाठी..