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Neha soni
गर्मी में गर्म और सर्दी में सर्द बातें कर दिया करती थी अक्सर, जब नादान थी मैं अब बड़ी हुई हूं जब से सीख लिया है वातानुकूलित बातें करना --nehasoni #वातानुकूलित_बातें
Vandana
कुछ पानी की बूंदों से अखंड गर्मी की शीतलता अब सूरज दहकने लगा है मौसम सूखने लगा है बदल गया दृश्य सारा चारों तरफ प्रचंड धूप का कहर बरस पड़ा है,,,,,, चारों तरफ उदासी सुखा सुखा सन्नाटा स
Finance With Eha
रजनीश "स्वच्छंद"
जन जन भाव हूँ मैं।। तुम बाल्मीक से विद्व रहे, मैं तो तुलसी का दास हुआ, तुम रहे उलझते शब्दों में, मैं तो सबका आभास हुआ। मैं तो जन जन के पास रहा, उनके रुधिरों में बहता हूँ, तुम रहे सिमटते कमरों में, चर्चा तुम्हारा खास हुआ। वातानुकूलित कमरे तेरे, नम आंखें कहाँ तुमने देखी, तुम दरबारी बन बैठे, कब इसका तुम्हे अहसास हुआ। छल कपट और क्लेश द्वेष ही तुमने शब्दों में बांटें हैं, दमड़ी तेरा भाव लगा और जनजन का उपहास हुआ। थी राजसी थाली तेरी, लाशों पे रोटियां सेंकीं थीं, तुमने तो बोटियाँ नोचीं थीं, उनका तो उपवास हुआ। जिनकी ख़ातिर तुम लिखते, कब उनका उद्धार हुआ, तुमने पायी बंगला गाड़ी, उनका जीवन वनवास हुआ। मैं कवि नहीं, कोई दम्भ नहीं, मानव धर्म निभाउंगा, मानव धर्म का मरना भी तेरी कविता में लाश हुआ। बिकने को तुम जीते हो, कलम भी ये व्यापार हुआ, मैं कवि नहीं पर भावउत्पति अंदर अनायास हुआ। है फिक्र नहीं दुनिया मे कितना मैं और मेरा ज़िक्र हुआ, मेरे शब्द हंसाएं उनको जिनका बेघर उल्लास हुआ। भावों से शब्द उपजते हैं, कोई मोल नहीं है शब्दों का, महिमण्डित जो शब्द हुए, साहित्यों का ही ह्रास हुआ।। ©रजनीश "स्वछंद" जन जन भाव हूँ मैं।। तुम बाल्मीक से विद्व रहे, मैं तो तुलसी का दास हुआ, तुम रहे उलझते शब्दों में, मैं तो सबका आभास हुआ। मैं तो जन जन के पास
Anita Saini
(Read In Caption) जाति त्रेता युग में, सीता की हुई अग्नि परीक्षा..! घोर कलयुग, अब हनुमान की भी शुरू हुई परीक्षा ..! किस धर्म कौन जात, इस पे मचा रखा बवाल.
Jaya Prakash
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया… -पीयूष मिश्रा Read caption कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया… वो काम भला क्या काम हुआ जिस काम का बोझा सर पे हो वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो… वो
Unconditiona L💓ve😉
{««Full Delivered hai Caiption me »»} 😊😊 सोंचा कुछ माहौल बनाते हैं आज.😊😊. बहुत दिन हो गया, न ठीक से लिख पाये और न ही आप देवियों और सज्जनों को ठीक से पढ़ पाये.. इस हेतु हमें क्षमा कजि
R.S. Meena
इन्द्रियाँ इन्द्रियों को वश में करना अब किसी के बस में नहीं। कर सके जो भीष्म सी प्रतिज्ञा, ऐसा तो जग में नहीं।। आधुनिकता का दोष है इसमें या है कोई पागलपन, बात-बात पर ताप बढ़ जाएँ, हो ज्वर से जलता तन। ज्वार-भाटा की घड़ी आने पर, पकड़ से दूर जाता मन, उतरे जब ज्वर शरीर का, प्रायश्चित करने को जाता वन। चैन की नींद खरीदने की ताकत किसी धन में नहीं। इन्द्रियों को बस में करना अब किसी के बस में नहीं। आविष्कारों की भेंट चढ़ गई प्रकृति की अनुपम छाया, बहुमंजिला इमारतों में वातानुकुलित यंत्रों को अद्भुत माया। प्राकृतिक फलों के रस को छोड़ के, पीते कृत्रिम पदार्थ जहर से जहर बने शरीर में, जो पल में हो जाएँ चरितार्थ। शुद्ध हवा में विष मिलाना, अब किसी के हक में नहीं। इन्द्रियों, को बस में करना अब किसी के बस में नहीं। संस्कृति की राह छोड कर, धुमिल हो रही भूमि पावन, खान-पान का समय ना जाने, दुषित करते अपना दामन। वाणी पर फिर संयम खोते, मद में रहते पीके नशीला पाणी, मर्यादा की कोई बात ना सुने, विनाश की ओर जाता प्राणी। मर्यादा में रह ले, ऐसी भावना किसी के मन में नहीं। इन्द्रियों को बस में करना अब किसी के बस में नहीं। #rsmalwar #yqdidi इन्द्रियाँ इन्द्रियों को वश में करना अब किसी के बस में नहीं। कर सके जो भीष्म सी प्रतिज्ञा, ऐसा तो जग में नहीं।। आधुनिकता