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Aditya Kumar Bharti
एक पेड़ मेरे सपने में आया मुझे देखा तो थोड़ा मुस्कुराया मुस्कुराकर मुझसे पूछा-और क्या हाल है? मैंने कहा मत पूछिए-यहां की गर्मी फटेहाल है आदमी बेहाल है लगता है गर्मी में जबरदस्त उछाल है मुझे ऐसा लग रहा है कि आप लोगों की हड़ताल है सवाल तो तुम्हारा है सौ प्रतिशत खरा लेकिन धरती को तुम लोगों ने कहां रहने दिया हरा पेड़ों से विहिन हो रही है धरा और तुम कहते हो तापमान से तप्त है वसुंधरा जरा एक बात मुझे समझाओ हम हैं ही कितने ऊंगली पर गिनकर हमारी संख्या बताओ हम बचे ही कहां है तुम लोगों के प्रकोप से मन करता है उड़ा दें तुम सब लोगों को तोप से काटे जा रहे हो रोज जोरदार लगातार और पर्यावरण में चाहिए उत्कृष्ट सुधार तुम लोग आदमी कहलाने के लायक नहीं हो बस नालायक हो, खलनायक हो, नायक नहीं हो अनिल कपूर नहीं अमरीश पुरी हो रामबाण नहीं,बहते हुए नासूर की धुरी हो अभी सुना है एक और जंजाल कोयले की चाहत में करोगे हमें और कंगाल हम नहीं रोज तुम मर रहे हो लालच में देखो हद से गुज़र रहे हो दो लाख पेड़ काटने का है प्रावधान ऐसे ही करोगे पर्यावरण की समस्या का समाधान अरण्य की भूमि में हम फिर लाखों मारे जायेंगे तुम लोगों को भी दिन में तारे नज़र आयेंगे हम हैं तो दवा है हम हैं तो हवा है हम हैं तो है फल, फूल और अनाज वरना भूख से मर जाओगे कल नहीं तो आज अरे भूख की बात छोड़ो सांस लोगे कैसे तड़प जाओगे बिन पानी मछली तड़पे है जैसे करोना में ऑक्सीजन की कमी आई थी तब तुम्हारी आत्मा तुम्हें प्रकृति की गोद में लायी थी दिन बित गये भूल गए हो वो बात नहीं तो इतनी आसानी से हमें काटने को बढ़ते नहीं तुम्हारे हाथ याद रखना हम पूजा में देते हैं आशिर्वाद और नाराज़ हुए तो कर देंगे तुम्हें बर्बाद देंगे ऐसा श्राप कि आप की सात पुस्तें भी नहीं धो पायेंगी ये पाप खोट तो आपकी सोच में है आपका ही है दोष हम तो शुद्ध है, निर्विकार हैं और हैं सौ प्रतिशत निर्दोष प्रकृति के संतुलन से मत करो खिलवाड़ नहीं तो खुल जायेगा महाप्रलय का किवाड़ रखना अपना ध्यान कहीं हम ध्यान मग्न हो गये तो तुम्हें भी कर देंगे अंतर्ध्यान ©Aditya Kumar Bharti #अरण्य बचाओ
Aditya Kumar Bharti
कोयले के लिए लाखों पेड़ों को मौत की नींद सुला रहे हो अरण्य के जंगल को अपनी आरी और कुल्हाड़ी से डरा रहे हो विकास की राह में पर्यावरण की ही जीवित बलि चढ़ा रहे हो छ.ग.के फेफड़े को ऑक्सीजन सिलेंडर का मास्क पहना रहे हो मैंने सही सुना है बुजुर्गों से लोग पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं और तुम तो सीधे ही सीने पर बेरहम कुल्हाड़ी चला रहे हो नेक नीयत की सरकारें जब इतने सुनहरे ख्वाब आंखों को दिखाती है ऐसी संकट की घड़ी में आदिवासियों की आंखों में नींद कहां आती है निजी कंपनियां इन आदिवासी बाहुल इलाकों पर अपनी गिद्ध नज़र गड़ाती है राजस्थान के लिए बिजली आपूर्ति की समस्या जहां सूरसा सा मुंह फैलाती है वहीं बिजली के लिए कोयला और कोयले के लिए पेड़ कटाई का गणित बैठाती है समस्या अत्यंत गंभीर है जो सरकारों की कार्यशैली पर प्रतिपल यक्ष प्रश्न उठाती है प्रकृति के प्रणेता प्रकृति के लिए प्राणघातक प्रतिनायक वाला प्रतिमान दिखा रहे हो पानी नहीं होगा हवा नहीं होगी सोचो तुम मौत को कितने करीब से आजमा रहे हो सरकारों के चुभते फैसले वहां रहने वालों के दिलों को बहुत आहत पहुंचाती है सुरक्षित रहेगा"जल, जंगल और ज़मीन"के वादों से जनता जब जबरदस्त धोखा खाती है "मत छीनो हमारा अधिकार"के नारों से संकट की काली घनघोर घटा छाती है "अरण्य में प्रवेश वर्जित है"की सूचना आदिवासियों को दिन रात सताती है सरकारें गूंगी, बहरी,अंधी, लंगड़ी और विकलांग नहीं दिव्यांग है यही बात बताती है दो लाख पेड़ों के कटाई की भरपाई वाली बात न्यायालय की समझ से भी परे हो जाती है हे स्वार्थसिद्धि हस्त ! संसाधन के लोभ में सारा का सारा पारिस्थितिक तंत्र ही हिला रहे हो अपनी सांसों का सौदा कोयला सौदागरों के हाथों में करके मुस्कुरा रहे हो अजी लाखों घरों को विस्थापन की समस्या खून के आंसू रोज रुलाती है जंगल से जीवन यापन होता था किसी का आज ये कहानी मां बच्चे को सुनाती है धरना, हड़ताल, प्रदर्शन, आंदोलन,पद यात्रा, रैली ये सब सरकारों को परेशान कराती है जब सरकारें ही रक्षक से भक्षक बने तो खुदा जाने कौन सी बला जान बचाती है कुछ लोगों के लिए अरण्य केवल कोयला है और बहुत लोगों के लिए अरण्य जीवन का साथ निभाती है "आदित्य"लिख तो रहा है अरण्य की कहानी जो कविता बनकर समस्या की लौ जलाती है मेरी कविता क्या तुम स्वप्न में डूबे निश्चेतन पथभ्रष्ट सरकारों को जगा रहे हो हे सजग कृतिकार! क्या तुम प्रशासन को न्यायसंगत सद्मार्ग पर खींचकर ला रहे हो ©Aditya Kumar Bharti #अरण्य बचाओ #Trees
Aditya Kumar Bharti
मेरे घर के पेड़ की चाह अरण्य को बचाने की राह मेरे घर के पेड़ ने मुझसे कहा जब उसका दिल खामोश नहीं रहा मैं कितना खुशनसीब हूं जो तेरे आंगन में हूं हर वक्त आजाद हूं चाहे कितने भी बंधन में हूं अरण्य के आंगन में होता तो कट जाता मिट जाता मेरी अर्थी भी कौन उठाता मेरा अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाता उन पेड़ों पर है मुझे बहुत तरस आता तू क्यों नहीं वहां जाता उनकी जान बचाता वो भी तो मेरे अपने हैं तेरी आंखों में भी तो जीने के सपने हैं फिर क्या सोच रहा है? किसे खोज रहा है? तुझे मेरी आत्मा का वास्ता तु निकाल उनको बचाने का रास्ता मेरा आशिर्वाद तेरे साथ है तेरे सर पर उन सभी पेड़ों का हाथ है तु बचा,बना नयी कहानी वरना तेरी रगों में खून की जगह है पानी और बेकार है फिर तेरी जवानी बस इतनी ही बात थी तुझे बतानी अगर नहीं बचाया तुने मेरा परिवार तो फिर चाहे जितना भी लिख सब है वाहियात और बेकार ©Aditya Kumar Bharti #अरण्य बचाओ #standout
HP
पद सत्ता और अधिकार के लोभ में उतने ही अनर्थ होते हैं जितने धन लिप्सा से होते हैं। अनर्थ
Rishika Srivastava "Rishnit"
लक्ष्मण को आग्रह देकर राम माता सीता का ख़्याल रखना स्वर्ण मृग के पीछे उसे पकड़ने चल पड़े मायावी मारीच ने ऐसा जाल बिछाया राम को बहुत दूर ले गए और अपनी माया से भगवान राम की आवाज़ में सीता ,लक्ष्मण से रक्षा करने की गुहार लगाई राम के ईस तरह की पीड़ा भरी आवाज़ सुनकर माता सीता का मन हो उठा बिचलित उन्होंने ने लक्ष्मण को आदेश दे डाला भैया के पीछे जाने की माता के आदेश को लक्ष्मण अनदेखा नहीं कर पाए कुटिया के चारों तरफ लक्ष्मण रेखा पार लक्ष्मण रेखा के भीतर रहने का कहकर हृदय में धीरज धरने को कह डाले.. लखन गए प्रभु के पीछे रावण आया साधु रूप में वहीं दिखावा वही छलावा घिरा अँधेरा तेज धूप में बन भिखारी भिक्षा माँग झोपड़ी द्वारे टेर लगाया लक्ष्मण रेखा के भीतर माता ताजा फल लेकर आई जैसे रावण ने कदम बढ़ाया पावक लपटे घिर आयी रावण ने फिर माता सीता से कहा.. रेखा के भीतर शिद्ध योगी भिक्षा लिया नहीं करते और द्वार पे आये भिखारी को बिना भीख दिए बिदा नहीं करते रघुकुल की आन की खतिर माता सीता ने कदम बढ़ाया कपटी रावण ने मौका पाकर सीता को अपनी पुष्पक विमान में बिठा आकाश मार्ग से लंका ले जाने लगा। रास्ते में सीता की पुकार सुनकर वहीं वृद्ध बैठा जटायु ने रावण का रास्ता रोका साहस दिखाकर जटायु ने दशानन को युद्ध के लिए है ललकारा अपनी पैनी चोंच से उसने वार करके दशानन को चोट पहुचाई मगर दशानन ने अपनी तलवार निकाल कर जटायु के पंख है काट डाले। ©rishika khushi अरण्य कांड(जटायु वध) #NojotoRamleela #NojotoRamleela #Nojotowritters #NojotoEnglish #अरण्यकांड
Makwana Vijay
जय असुर अनार्य मूलनिवासी राजा की
manoj kumar jha"Manu"
धन के कारण पन्द्रह अनर्थ धन के उपार्जन, वृद्धि, रक्षण, व्यय तथा नाश और उपभोग में निरन्तर भय, परिश्रम, चिन्ता और भ्रम से ही जूझना पड़ता है। चोरी, हिंसा, झूठ, दिखावा, काम, क्रोध, गर्व, अहंकार, भेदबुद्धि, वैर, अविश्वास, स्पर्धा, लम्पटता, जुआ और मदिरापान- इन पन्द्रह अनर्थों का हेतु अर्थ अर्थात धन है। अतः कल्याण चाहने वाले को इन अनर्थों के हेतु अर्थ को त्याग देना चाहिए।- भगवान श्री कृष्ण का वचन श्रीमद्भागवत पुराण ११/२३/१७-२० पापपूर्ण धन अनर्थ है
Mokshada mishra
mohabbat ki ahat ko aur ishq ki likhawat ko badal pana aasan nahi hai ae dost ज़रा सी समझ की फेर में अर्थ का अनर्थ कर देती हैं । कलम with mishraji ©Mokshada mishra अर्थ का अनर्थ #Morning