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Ek villain
संसद के भीतर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव तो अक्सर देखने को मिल जाता है लेकिन ऐसे अवसर कम ही मिलते हैं जब ठेका ओं की गूंज सुनाई दे पिछले दिन राज्यसभा में एक ऐसा ही नजारा देखने को मिला हुआ यह कि वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े विधायक पर चर्चा चल रही थी पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश इसके कुछ बिंदुओं में बदलाव चाहते थे इससे पहले उन्होंने स्थाई समिति में भी कुछ इस विधायक में बदलाव की सिफारिश की थी लेकिन सरकार उसे लेकर तैयार नहीं हुई ©Ek villain #humanrights संसद में गूंजा ठेकेदारों के नाम
सुसि ग़ाफ़िल
जो निर्दोष थे वो खामोश ही रहे , गुनहगारों ने चारों दिशा गूंजा दी! जो निर्दोष थे वो खामोश ही रहे , गुनहगारों ने चारों दिशा गूंजा दी!
कवि मनीष
राम नाम के नाम से आज फिर गूंजा जग सारा, आज से नभ केसरी होगा और होगा केसरी हर सितारा, राम लला की आज से गूंजेगी किलकारियाँ, आज से अयोध्या हुआ
mummy_s_prince
ये कैसी उलझन है? ना चाहते हुए भी आख़िर ऐसा क्यों होता है, मैं सोचता हूं कुछ़ और कुछ़ ओर हो जाता है। अज़ीब सी कश्मकश छाई हुई मेरे मन पर है, ना जाने ये कैसी उ
Shubham Mishra (Raj)
पड़ गईं बेड़ियां.. पग में, पड़नी जिनमें पायल थी ।। छन छन से... गूंजा था घर आंगन जो, खड़ी है सहमी सी अब उस आंगन के कोने में।। शेर सी जन्मी थी वो .. बाघों सा उसका चिंघाड़ था... हर विपदा से लड़ने को, जो थी तैयार खड़ी... चेहरा देखो उसका... मंडप में है कैसी मायूस पड़ी ।। जोश था, वतन पर मर मिटने का ... देखो कोई जी उसका.. मजबूर है अब वो हर रोज़ मरने को!! ©Shubham Mishra (Raj) पड़ गईं बेड़ियां.. पग में, पड़नी जिनमें पायल थी ।। छन छन से... गूंजा था घर आंगन जो, खड़ी है
मुरखनादान
mere Bhai..or Mere Dear Friend Ka Lekh 06-01-2021 Aaj Uski Gf Ka B'day Hai... Jo Usse Kafa Hai... जिन्मदिन की बहुत बहुत सुभकामनाये ओर बधाई हो हमेशा मुस्कुराते रहे आप भले ही आपकी किसी से भी जुदाई हो खुशिया ही खुशिया बरसे आपके जीवन मे ओर आपके ऊपर खुदा की खुदाई हो कामयाबी आकर चुम्बे कदम तुम्हारे ओर हमे माफ करना बाबू शायद अब हम हो गए है दुश्मन तुम्हारे चलो कोई बात ना हम तो फिर भी यही हुआ करते है आपकी ज़िंदगी मे कभी कोई गम ना हो आपकी आंखें कभी नम ना हो मिले आपको ज़िंदगी की सारी खुशी भले ही उस ख़ुशी में हम ना हो ओर बस लास्ट की लाइन में गूंजा इतना ही कहूंगा जुग-जुग जिये तू ये दुआ हमारी है की जुग-जुग जिये तू ये दुआ हमारी है ओर तू ना हमेशा ख़ुश रहा कर Laddo क्योकि तेरी खुशी में ही तो खुशी हमारी है....! Rohit kushwaha...✍ ©Rahul R.J..!♥️ mere Bhai..or Mere Dear Friend Ka Lekh 06-01-2021 Aaj Uski Gf Ka B'day Hai... जिन्मदिन की बहुत बहुत सुभकामनाये ओर बधाई हो हमेशा मुस्कुराते
Tughlabadi
कभी बड़े न हुऐ और ता उम्र ख़ेल में काटी..!! जज़्बात दिल में क़ैद रखे ज़िन्दगी जेल में काटी..।। मैं ज़मीं पर सोया और सलाखों को हमसफ़र माना.. उसने मुलाकातें भी हमसे काटी तो बेल में काटी..।। उसे क्या खबर के उसके बग़ैर कैसी कट रही है.. जब हमने फर्श पर काटी और उसने महल में काटी..।। सूखी रोटी, पानी की दाल, और कच्चे चावल.. जब तक मौत न आई ज़िन्दगी ज़हर में काटी..।। न तारीख़ पर कोई आया, न कभी मिलाई पर नाम गूंजा.. मानो राहगीर थे हम और एक उम्र अनजान शहर में काटी..।। मुम्किन है के उन्हें हमारा नाम याद रहे, न रहे.. पर हमने सज़ा भी काटी तो उनकी फ़िक्र में काटी..।। मुंसिफ ने करी तारीफ़ अदालत में हमारे शेर की.. तुग़्लाबादी फिर बची कूची जेल हमने इसी ग़ज़ल में काटी..।। तुग़्लाबादी✒ "जेल" कभी बड़े न हुऐ और ता उम्र ख़ेल में काटी..!! जज़्बात दिल में क़ैद रखे ज़िन्दगी जेल में काटी..।। मैं ज़मीं पर सोया और सलाखों को हमसफ़र
रजनीश "स्वच्छंद"
स्वातंत्र्य भाव वर्णन।। ये शीश तर्पित आज है, ये वीर वर्णित आज है। कण कण लहु में ज्वार है, ये काव्य छन्दित आज है। कम्पित नहीं हुंकार है, वाणी में भी ललकार है। कोटि कोटि स्वजनों में, आह्लादित ये जयकार है। ये भाव स्तंभित आज है, ये जग अचंभित आज है। जो पूत तेरे बढ़ चले, सृष्टि भी कम्पित आज है। ये धीर अंगद पांव है, रौद्र मन का ही ठाँव है। हम अडिग जो हैं खड़े, मातृ आँचल की छांव है। वो वीर जो सरहद डटे, हैं धूप बारीश जो खड़े। उनको नमन पभु आज है, जो देश ख़ातिर है लड़े। स्वातंत्र्य वेदी है ये पावन, है गूंजता जो मुक्त गायन। खग विहग तरु ताल नदियां, हैं झूमते मानो हो सावन। स्वरचित जन भाव संचित, दारिद्र्य-रहित, न कोई वंचित। मुक्ति स्वर नभ में जो गूंजा, पुनः हुआ ये प्रण स्पंदित। ये दृष्टि लक्षित आज है, ये सार गर्भित आज है। ये शीश तर्पित आज है, ये वीर वर्णित आज है।। ©रजनीश "स्वछंद" स्वातंत्र्य भाव वर्णन।। ये शीश तर्पित आज है, ये वीर वर्णित आज है। कण कण लहु में ज्वार है, ये काव्य छन्दित आज है। कम्पित नहीं हुंकार है,
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जब भी मुझे सहारे की जरूरत पड़ी तुम मेरा हौसला बनकर खड़े रहे । जब जब मेरे कदम लड़खड़ाते सम्भाल लिया तुमने पर आज जब तुम्हारे सबसे बड़े सहारे की जरूरत थी मुझे रूखसत हो गये तुम। ( पुरी कविता caption में पढ़ें ) जब भी मुझे सहारे की जरूरत पड़ी तुम मेरा हौसला बनकर खड़े रहे । जब जब मेरे कदम लड़खड़ाते सम्भाल लिया तुमने पर आज जब तुम्हारे सबसे बड़े सहा