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श्री शिव चालीसा पाठ जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। #Quotes

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©KP TAILOR HD श्री शिव चालीसा पाठ

जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 15 भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। जननी #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
                     दोहा – 15

भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥15॥
हे माता! रामचन्द्रजी के बानरूप अग्नि के आगे इस राक्षस समूह को आप पतंग के समान जानो और इन सब राक्षसो को जले हुए जानकर मन मे धीरज धरो ॥15॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

अंधकार जैसे राक्षस और सूर्य जैसे श्री राम के बाण
जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
रामबान रबि उएँ जानकी।
तम बरूथ कहँ जातुधान की॥1॥
हे माता ! जो रामचन्द्रजी को आपकी खबर मिल जाती तो प्रभु कदापि विलम्ब नहीं करते क्योंकि रामचन्द्रजी के बानरूप सूर्य के उदय होने पर राक्षसो की सेना रूपी अंधकार कहाँ रह सकता है?॥

हनुमानजी भगवान् राम की आज्ञा के बारें में कहते है
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई।
प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥2॥
हनुमानजी कहते है की हे माता!मै आपको अभी ले जाऊं, परंतु करूं क्या?रामचन्द्रजी की आपको ले आने की आज्ञा नहीं है।इसलिए मै कुछ कर नहीं सकता।यह बात मै रामचन्द्रजीकी शपथ खाकर कहता हूँ॥इसलिए हे माता! आप कुछ दिन धीरज धरो।
रामचन्द्रजी वानरोंकें साथ यहाँ आयेंगे ॥

हनुमानजी का विशाल स्वरुप
हनुमानजी का छोटा रूप देखकर माता सीता को वानर सेना पर शंका
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना॥3॥
और राक्षसों को मारकर आपको ले जाएँगे। तब रामचन्द्रजी का यह सुयश तीनो लोकोमें नारदादि मुनि गाएँगे॥
हनुमानजी की यह बात सुन कर सीताजी ने कहा की हे पुत्र!सभी वानर तो तुम्हारे ही समान (नन्हे-नन्हे से) होगे और राक्षस बड़े योद्धा और बलवान है। फिर यह बात कैसे बनेगी? ॥

हनुमानजी सीताजी को अपना विशाल स्वरुप दिखाते है
मोरें हृदय परम संदेहा।
सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा।
समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥
इसका मेरे मनमे बड़ा संदेह है।(कि तुम जैसे बंदर राक्षसो को कैसे जीतेंगे!)।
सीताजी का यह वचन सुनकर हनुमानजी ने अपना शरीर प्रकट किया॥हनुमानजी का वह विराट शरीर
सुवर्ण के पर्वत के समान विशाल ,
युद्ध के बीच बड़ा विकराल,रणके बीच बड़ा धीरज वाला,युद्ध मे शत्रुओ के हृदय मे भय उत्पन्न करने वाला,अत्यंत बलवान् और वीर था ॥

बजरंगबली का विशाल रूप देखकर सीताजी को वानर सेना पर विश्वास
सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥5॥
हनुमानजी के उस शरीरको देख कर
सीताजी के मन में पक्का भरोसा आ गया।तब हनुमानजी ने अपना छोटा स्वरूप धर लिया॥

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 610 से 621 नाम

610 श्रीधरः जिन्होंने श्री को छाती में धारण किया हुआ हैं
611 श्रीकरः भक्तों को श्रीयुक्त करने वाले हैं
612 श्रेयः जिनका स्वरुप कभी न नष्ट होने वाले सुख को प्राप्त कराता है
613 श्रीमान् जिनमे श्रियां हैं
614 लोकत्रयाश्रयः जो तीनों लोकों के आश्रय हैं
615 स्वक्षः जिनकी आँखें कमल के समान सुन्दर हैं
616 स्वङ्गः जिनके अंग सुन्दर हैं
617 शतानन्दः जो परमानंद स्वरुप उपाधि भेद से सैंकड़ों प्रकार के हो जाते हैं
618 नन्दिः परमानन्दस्वरूप
619 ज्योतिर्गणेश्वरः ज्योतिर्गणों के इश्वर
620 विजितात्मा जिन्होंने आत्मा अर्थात मन को जीत लिया है
621 विधेयात्मा जिनका स्वरुप किसीके द्वारा विधिरूप से नहीं कहा जा सकता

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
                     दोहा – 15

भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी

Vikas Sharma Shivaaya'

सुंदरकांड दोहा – 2 सुरसा, हनुमानजी को प्रणाम करके चली जाती है:- राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। आसिष देइ गई #समाज

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सुंदरकांड
                    दोहा – 2

सुरसा, हनुमानजी को प्रणाम करके चली जाती है:-
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥
तुम बल और बुद्धि के भण्डार हो,सो श्रीरामचंद्रजी के सब कार्य सिद्ध करोगे-ऐसे आशीर्वाद देकर, सुरसा तो अपने घर को चली,और हनुमानजी प्रसन्न होकर, लंका की ओर चले ॥2॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

मायावी राक्षस का प्रसंग:-
समुद्र में छाया पकड़ने वाला राक्षस निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥1॥
समुद्र के अन्दर एक राक्षस रहता था- वह माया करके आकाश मे उड़ते हुए पक्षी और जंतुओको पकड़ लिया करता था ,जो जीव जन्तु आकाश में उड़कर जाता,उसकी परछाई जल में देखकर परछाई को जल में पकड़ लेता॥

हनुमानजी ने मायावी राक्षस के छल को पहचाना
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥2
परछाई को जल में पकड़ लेता,
जिससे वह जीव  जंतु फिर वहा से सरक नहीं सकता-इस तरह वह हमेशा, आकाश मे उड़ने वाले जीव जन्तुओ को खाया करता,उसने वही कपट हनुमान् जी से किया।/-हनुमान् जी ने उसका वह छल तुरंत पहचान लिया॥

हनुमानजी समुद्र के पार पहुंचे:-
ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥3॥
धीर बुद्धिवाले पवनपुत्र वीर हनुमानजी
उसे मारकर समुद्र के पार उतर गए- वहा जाकर हनुमानजी वन की शोभा देखते है कि भँवरे मधु (पुष्प रस) के लोभसे गुंजार कर रहे है॥

हनुमानजी लंका पहुंचे:
नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥4॥
अनेक प्रकार के वृक्ष, फल और फूलोसे शोभायमान हो रहे है-पक्षी और हिरणोंका झुंड देखकर तो वे मन मे बहुत ही प्रसन्न हुए॥वहां सामने हनुमानजी एक बड़ा विशाल पर्वत देखकर,निर्भय होकर उस पहाड़ पर कूदकर चढ़ बैठे॥

भगवान् शंकर पार्वतीजी को श्रीराम की महिमा बताते है:-
उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥5॥
भगवान् शंकर पार्वतीजी से कहते है कि हे पार्वती! इसमें हनुमान की कुछ भी अधिकता नहीं है।यह तो केवल रामचन्द्रजीके ही प्रताप का प्रभाव है कि,जो काल को भी खा जाता है॥
पर्वत पर चढ़कर हनुमानजी ने लंका को देखा,तो वह ऐसी बड़ी दुर्गम है की,
जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता॥
.....आगे शनिवार को .....,

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 56 से 66 नाम 🙏
56 शाश्वतः जो सब काल में हो
57 कृष्णः जिसका वर्ण श्याम हो
58 लोहिताक्षः जिनके नेत्र लाल हों
59 प्रतर्दनः जो प्रलयकाल में प्राणियों का संहार करते हैं
60 प्रभूतस् जो ज्ञान, ऐश्वर्य आदि गुणों से संपन्न हैं
61 त्रिकाकुब्धाम ऊपर, नीचे और मध्य तीनो दिशाओं के धाम हैं
62 पवित्रम् जो पवित्र करे
63 मंगलं-परम् जो सबसे उत्तम है और समस्त अशुभों को दूर करता है
64 ईशानः सर्वभूतों के नियंता
65 प्राणदः प्राणो को देने वाले
66 प्राणः जो सदा जीवित है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' सुंदरकांड
                    दोहा – 2

सुरसा, हनुमानजी को प्रणाम करके चली जाती है:-
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 18 हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 18
हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥18॥
हनुमानजी ने कुछ राक्षसों को मारा और कुछ को कुचल डाला और कुछ को धूल में मिला दिया और जो बच गए थे वे जाकर रावण के आगे पुकारे कि
हे नाथ! वानर बड़ा बलवान है।उसने अक्षय कुमार को मार कर सारे राक्षसों का संहार कर डाला ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

मेघनाद और ब्रह्मास्त्र का प्रसंग
रावण मेघनाद को भेजता है
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥
रावण राक्षसों के मुख से अपने पुत्र का वध सुन कर बड़ा गुस्सा हुआ और महाबली मेघनादको भेजा॥और मेघनाद से कहा कि हे पुत्र!उसे मारना मत किंतु बांध कर पकड़ लें आना,
क्योंकि मैं भी उसे देखूं तो सही वह वानर कहाँ का है॥

मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाने के लिए आता है
चला इंद्रजित अतुलित जोधा।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥
इन्द्रजीत (इंद्र को जीतनेवाला) योद्धा मेघनाद
असंख्य योद्धाओ को संग लेकर चला।
भाई के वध का समाचार सुनकर उसे बड़ा गुस्सा आया॥हनुमान जी ने उसे देख कर यह कोई दारुण भट (भयानक योद्धा) आता है
ऐसे जानकार कटकटा के महाघोर गर्जना की और दौड़े॥

हनुमानजी ने मेघनाद के रथ को नष्ट किया
अति बिसाल तरु एक उपारा।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा।
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥
एक बड़ा भारी वृक्ष उखाड़ कर
उससे लंकेश्र्वर रावण के पुत्र मेघनाद को विरथ अर्थात रथहीन, बिना रथ का कर दिया॥उसके साथ जो बड़े बड़े महाबली योद्धा थे,उन सबको पकड़ पकड़ कर हनुमान जी ने अपने शरीर से मसल डाला॥

हनुमानजी ने मेघनाद को घूंसा मारा
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई।
ताहि एक छन मुरुछा आई॥

ऐसे उन राक्षसों को मारकर हनुमानजी मेघनाद के पास पहुँचे।फिर वे दोनों ऐसे भिड़े कि मानो दो गजराज आपस में भीड़ रहे है॥हनुमानजी मेघनाद को एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और
मेघनाद को उस प्रहार से एक क्षण भर के लिए मूर्च्छा आ गयी।

मेघनाद हनुमानजी से जीत नहीं पाया
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥
फिर मेघनाद ने सचेत होकर बहुत माया रची, अनेक माया ये फैलायी
पर वह हनुमानजी से किसी प्रकार जीत नहीं पाया॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 718 से 729 नाम 
718 महामूर्तिः जिनकी मूर्ति बहुत बड़ी है
719 दीप्तमूर्तिः जिनकी मूर्ति दीप्तमति है
720 अमूर्तिमान् जिनकी कोई कर्मजन्य मूर्ति नहीं है
721 अनेकमूर्तिः अवतारों में लोकों का उपकार करने वाली अनेकों मूर्तियां धारण करते हैं
722 अव्यक्तः जो व्यक्त नहीं होते
723 शतमूर्तिः जिनकी विकल्पजन्य अनेक मूर्तियां हैं
724 शताननः जो सैंकड़ों मुख वाले है
725 एकः जो सजातीय, विजातीय और बाकी भेदों से शून्य हैं
726 नैकः जिनके माया से अनेक रूप हैं
727 सवः वो यज्ञ हैं जिससे सोम निकाला जाता है
728 कः सुखस्वरूप
729 किम् जो विचार करने योग्य है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 18
हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल
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